जो हुआ, जैसे हुआ, उसे वैसा ही होना था। पछताना क्या? हमारे साथ नहीं होता तो किसी और के साथ होता। बस, नाम बदल जाता। घात-प्रतिघात से ही जीवन बनता है और हमारे कर्मों से संवरता है।और भीऔर भी

कुछ खेल ऐसे होते हैं जिनमें आपकी जीत पूरे देश व समाज की जीत होती है। तो, टुच्चे खेल काहे खेलें! हमें तो ऐसे काम में खुद को लगाना चाहिए जिसमें हमारे जीतने पर करोड़ों चेहरे खिल जाएं।और भीऔर भी

हम सभी ब्रह्म हैं। एक से अनेक होने, एक को अनेक करने की कोशिश करते हैं। नहीं कर पाते तो सिर धुनते हैं। नहीं भान कि दूसरों को मान दिए बिना, दूसरों का साथ लिए बिना अनेक नहीं हो सकते।और भीऔर भी

कोई आपकी सूरत या सीरत में अपना खुदा देखता है तो देखने दीजिए। उसे खुशफहमी है या गलतफहमी, इससे आपको क्या! हां, अगर आप उसकी अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करें तो इसमें आपका ही भला है।और भीऔर भी

जो लोग रिश्तों और दूसरे लोगों की कद्र नहीं करते, उनका हश्र नितांत अकेलेपन और घुटन में होता है। हो सकता है कि वे बहुत ज्यादा पैसे कमा लें। लेकिन पैसे से प्यार तो छोड़िए, खुशी का धेला तक नहीं खरीदा जा सकता।और भीऔर भी

हर कोई अपने में मशगूल है। अपनी भौतिक व मानसिक जरूरतों का सरंजाम जुटा रहा है। आप इसमें मदद कर सकें तो जरूर सुनेगा आपकी। लेकिन खुद नहीं। उसे बताना पड़ेगा कि आप उसके लिए क्या लेकर आए हैं।और भीऔर भी

व्यापक स्तर पर लोग क्या चाहते हैं और उनकी चाहत कैसे पूरी की जा सकती है, जब आप यह जान लेते हैं, तभी से आपका उद्यम आकार लेने लगता है। छोटे से लेकर बड़े उद्यमी का मूल मंत्र यही होता है।और भीऔर भी

आईने में अपनी छवि से लड़ती गौरैया को देखा है! हम भी इसी तरह अक्सर दूसरों में अपनी छवि से ही लड़ते रहते हैं। लड़ने के बाद भी समझ में आ जाता तो भला होता। पर हम तो अपनी तरफ ताकते तक नहीं।और भीऔर भी

सच कहें तो धंधा और कुछ नहीं, बस दूसरों से जुड़ने की कोशिश है। उस समान चीज को पकड़ने का उपक्रम है जो सबमें है, सबकी जरूरत है। कंपनियां सर्वे से इसका पता लगाती हैं और ज्ञानी अपनी अंतर्दृष्टि से।और भीऔर भी

अपने को जानने-समझने के लिए दूसरे को जानना समझना जरूरी है। दूसरे के प्रति आप कितने संवेदनशील हैं, इसी से आपकी संवेदनशीलता का पता चलता है। वरना, अपने प्रति तो हर कोई संवेदनशील होता है।और भीऔर भी