ज्ञान-विज्ञान की सारी जद्दोजहद प्रकृति व परिवेश के साथ पूरा तादात्म्य बनाने के लिए है। जो है, उसे समझने के लिए है। लेकिन एक के जानते ही पुराना बदल जाता है। इसलिए ज्ञान की यात्रा अनवरत है।और भीऔर भी

बाजार पलटकर उठा। सुबह-सुबह सेंसेक्स 18,672.65 और निफ्टी 5604.95 तक चला गया। निफ्टी का यूं 5600 के स्तर को पार करना बड़ी बात थी। लेकिन दोपहर बारह बजे के बाद बाजार अपनी बढ़त को बनाए नहीं रख। माना जा रहा था कि निफ्टी के 5580 के ऊपर पहुंचते ही टेक्निकल एनालिस्ट और बाजार के पंटर भाई लोग लांग होने या खरीद की भंगिमा अपनाने जा रहे हैं। लेकिन शर्त यही है कि निफ्टी को इससे ऊपर बंदऔरऔर भी

हर जीव प्रकृति के साथ एक खास संतुलन में जन्मता, पलता व बढ़ता है। संतुलन न बिगड़े तो जीवन चक्र पूरा चलता है। इंसान भी चाहे तो मूल तत्वों के सही संतुलन से खुद को स्वस्थ रख सकता है।और भीऔर भी

हमारा काम बस इतना है कि हम बीज और मिट्टी को, आग और घी को, सिद्धांत व व्यवहार को, भगवान व इंसान को खींचकर एकदम करीब ले आएं। बाकी काम प्रकृति व समाज के नियम अपने आप कर लेंगे।और भीऔर भी

आपकी नजर ही हद क्या है? कहां तक देख पाते हो आप? अपने तक, परिवार तक, समुदाय तक, समाज तक, देश-दुनिया तक या हर तरफ फैली प्रकृति तक। इसी से तय होता है आपके सुखी होने का स्तर।और भीऔर भी

वे लोग बड़े बदकिस्मत होते हैं जिनमें प्यार की उदात्त भावना नहीं होती, जो प्यार न ले पाते हैं, न प्यार दे पाते हैं। प्यार तो वो नेमत है जो प्रकृति ने किसी भी दूसरे जीव को नहीं, सिर्फ इंसानों को बख्शी है।और भीऔर भी

प्रकृति से कैसे निपटना है, यह तो हर जीव की तरह हम मां के पेट से सीखकर आते हैं। समाज से निपटने की शुरुआती सीख हमें घर-परिवार, स्कूल व परिवेश से मिलती है। फिर जंग में हम अकेले होते हैं।और भीऔर भी

निराशावादी चिंतन का कोई अंत नहीं है। निवेश फंडों या ब्रोकरेज हाउसों के सरगना अपने निहित स्वार्थों के चलते बाजार को लेकर जैसी निराशा फैला रहे हैं, उसका भी कोई अंत नहीं है। लेकिन मैं इनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करता क्योंकि मैं कोई ब्रोकिंग के धंधे में तो हूं नहीं। फंड अपने फैसलों को जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि वे जन-धन का प्रबंधन कर रहे हैं। सच यह है कि फंडऔरऔर भी

प्रकृति ने हर इंसान को मौलिक बनाया है। एक ही मां-बाप की संतानों में जीन्स का भिन्न समुच्चय। फिर भी अनुकृतियों से भरा समाज! दोष किसका? थोड़ा हमारा तो बहुत सारा जीने की शर्तों का।और भीऔर भी

शेर चालाकी करता है, लेकिन लोमड़ी चालाक होती है। यह फर्क हमें इंसानों के बीच भी समझना चाहिए। जिनका मूल स्वभाव ही चालाकी हो, उनसे कोई दूसरी अपेक्षा करना खुद को धोखे में रखना है।और भीऔर भी