जब देश की 55 प्रतिशत खेती मानसून के भरोसे हो तो किसान आसमान ही नहीं, सरकार की तरफ भी बड़ी उम्मीद से देखता है। इस बार अभी तक मानसून की बारिश औसत से काफी कम रही है तो सरकार से उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं। वैसे भी पांच साल कदमताल करने के बाद पहले से ज्यादा प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्ता में आई सरकार से किसान ही नहीं, सारा देश बेहद ठोस कामों की अपेक्षाऔरऔर भी

पिसान अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है आटा। वाकई, हमारी केंद्र सरकार ने दाल पर ऐसा रवैया अपना रखा है जिससे किसानों का पिसान निकल गया है। इससे यही लगता है कि या तो वह घनघोर किसान विरोधी है या खेती-किसानों के मामले में उसके कर्ताधर्ता भयंकर मूर्ख है। वैसे, शहरी लोग बड़े खुश हैं कि अरहर या तुअर की जो दाल साल भर पहले 180-200 रुपए किलो बिक रही थी, वह अब 60-70 रुपए किलोऔरऔर भी

शरद पवार जैसे बहुरंगी कलाकार की जगह मई 2014 में जब राधा मोहन सिंह को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया तो आम धारणा यही बनी कि ज़मीन से जुड़े नेता होने के नाते वे देश की कृषि अर्थव्यवस्था ही नहीं, किसानों के व्यापक कल्याण का भी काम करेंगे। संयोग से उससे करीब सवा साल बाद मंत्रालय का नाम भी बदल कर कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया गया। लेकिन उसके बमुश्किल महीने भर बाद राधा मोहनऔरऔर भी

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने 2012-13 में 2011-12 की रबी फसलों की खरीद के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) को मंगलवार को मंज़ूरी दे दी। गेहूं का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 1285 रूपए प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह पिछले वर्ष के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की तुलना में 165 रूपए प्रति क्विंटल ज्यादा है। इस तरह गेहूं का समर्थन मूल्य 14.7 जौ का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 200 रूपए प्रति क्विंटल या 25.6 फीसदी बढ़ाकर 980 रूपएऔरऔर भी

सभी लोग कंपनियों के लाभ मार्जिन के कम या ज्यादा होने की बात करते हैं। लेकिन कोई इस बात पर गौर नहीं करता कि देश के अन्नदाता किसानों का लाभ मार्जिन कितना घटता जा रहा है। एक तो वैसे ही 90 फीसदी किसान गुजारे लायक खेती करके जिंदा है, ऊपर से मार्जिन में सुराख ने गरीबी में आटे को और गीला कर दिया है। एक खबर के अनुसार, धान की फसल पर किसानों ने पिछले साल प्रतिऔरऔर भी

खाद्य मंत्री के वी थॉमस अड़ गए हैं कि वे देश से गेहूं का निर्यात नहीं होने देंगे। ऐसा तब जबकि 19 जनवरी तक उनके बॉस रहे कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले ही हफ्ते कहा था कि देश में गेहूं का भारी स्टॉक है और हमें इसके निर्यात की इजाजत दे देनी चाहिए। वैसे, थॉमस ने मंगलवार को कहा कि गेहूं निर्यात के बारे में अगले हफ्ते मंत्रियों का समूह विचार करेगा। मंत्रियों के समूह कीऔरऔर भी

खेती की लागत बढ़ने के कारण किसान समुदाय ने अगले साल से सभी अनाजों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने की मांग की है। कृषि मंत्री शरद पवार ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘देश में सभी इलाकों के किसान खेती की बढ़ती लागत के कारण सभी अनाजों और गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि ईंधन व मजदूरी के बढ़े हुए खर्च के कारण खेती कीऔरऔर भी

कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में आय सृजन के बीच एक तरह का संरचनागत या बुनावटी असंतुलन और बेमेल है जिस तत्काल दूर करना जरूरी है। यह मानना है कृषि राज्यमंत्री प्रो. के वी थॉमस का। उन्होंने बुधवार को प्रोसेस्ड फूड, एग्री बिजनेस व बेवरेजेज पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन की शुरुआत में कहा कि कृषि हमारे देश में 58 फीसदी से ज्यादा आबादी के लिए जीविका का मुख्य स्रोत है, लेकिन जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) मेंऔरऔर भी

दूसरे सरकारी नेताओं को तो छोड़िए, हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी तक दबी जुबान से कहते रहे हैं कि खाने-पीने की चीजों के महंगा हो जाने की एक वजह लोगों की बढ़ी हुई क्रयशक्ति है। खासकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गांरटी जैसी योजनाओं के चलते गरीब लोगों की तरफ से खाद्यान्नों की मांग बढ़ गई। वे पहले से ज्यादा खाने लगे हैं जिसका असर खाद्य मुद्रास्फीति के बढ़ने के रूप में सामने आया है। लेकिन रिजर्व बैंकऔरऔर भी

महंगाई पर काबू पाने की कीमत सरकार अब किसानों से वसूलने जा रही है। खेती की लागत बढ़ने के बावजूद वह इस बार खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने नहीं जा रही है। धान का मूल्य किसानों को वही मिलेगा जो पिछले साल मिला था। जबकि दलहन के मूल्य में की गई वृद्धि नाकाफी है। जिंस बाजार में दलहन की जो कीमतें हैं, उसके मुकाबले सरकार ने एमएसपी लगभग एक तिहाई रखा है। सरकार केऔरऔर भी