संख्याएं कभी झूठ नहीं बोलती क्योंकि उनमें कोई भावना नहीं होती। इसी तरह भाव हमेशा सच और सच ही बोलते हैं। लेकिन उनके पीछे छिपी बाज़ार भावनाओं को पकड़ना हमारा काम है। भावों के पीछे की भावना को समझने के लिए हमें भावना-मुक्त होना पड़ता है। पर सहज इंसान होने के नाते यह काम बेहद मुश्किल है। भावनाओं से ऊपर उठने के लिए साधना करनी पड़ती है जो अभ्यास से सधती है। अब देखें सोम का व्योम…औरऔर भी

दीर्घकालिक निवेश के लिए आप ‘तथास्तु’ जैसी किसी ईमानदार सेवा पर निर्भर रह सकते हैं। हालांकि यहां भी अपनी तसल्ली के लिए कंपनी पर रिसर्च करना ज़रूरी है। लेकिन ट्रेडिंग के लिए नामी सलाहकार फर्म की भी सेवा महज एक इनपुट है। इसमें बुनियादी रिसर्च व मानसिक तैयारी आपको ही करनी पड़ती है। दुनिया में कोई भी ट्रेडर दूसरों की रिसर्च पर सफल नहीं हुआ तो आप कैसे होंगे! अब संधिकाल के इस हफ्ते का आखिरी ट्रेड…औरऔर भी

साल 2015 में ट्रेडिंग का पहला दिन; तो, कुछ बातें दिमाग में साफ-साफ बैठा लेनी चाहिए। सबसे पहले, ट्रेडिंग पूंजी को कभी इतना न उड़ने दें कि उतना वापस कमाना मुश्किल हो जाए। दूसरे, इसमें आपकी जीत पर कोई हारता और आपकी हार पर कोई जीतता है। सारा प्रायिकता का खेल है। तीसरे, यहां फायदा वही कमाता है जो आम व्यापार की तरह थोक के भाव खरीदता और रिटेल के भाव बेचता है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

2014 के पहले दिन से आखिर से एक दिन पहले तक सेंसेक्स 28.86% और निफ्टी 30.89% बढ़ा है। निवेशक इस बढ़त से कमाते हैं। वहीं इसी दौरान सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव का अंतर 44.38% और निफ्टी के उतार-चढ़ाव का अंतर 45.39% रहा है। ट्रेडर इस अंतर से कमाते हैं। इस तरह गुजरा साल निवेशकों व ट्रेडरों दोनों के लिए ही अच्छा रहा। लेकिन उन्हीं के लिए जिन्होंने धैर्य, रिस्क और बुद्धि का इस्तेमाल लिया। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

जो सभी कर रहे हैं, उसे करना समझदार ट्रेडर का काम नहीं हो सकता। पहली बात, इस धंधे में झुनझुनवाला या कोई भी बड़ा संस्थागत निवेशक, कभी वो नहीं बताता जो वाकई करता है। दूसरी बात, ट्रेडर अगर वही करने लगा जो दूसरे कर रहे हैं तो कमाएगा किनकी बदौलत! दरअसल, ट्रेडर की मानसिक बुनावट ऐसी होनी चाहिए जो उसे वैसा करने को निर्देशित करे जैसा दूसरे नहीं कर रहे। अब कोशिश मंगलवार का बाज़ार पकड़ने की…औरऔर भी

दस-बारह साल पहले तक इंट्रा-डे ट्रेडरों का मंत्र था कि किसी भी शेयर को बिड प्राइस (जिस पर कोई खरीदना चाहता है) पर खरीदो और आस्क प्राइस (जिस पर कोई बेचना चाहता हो) पर बेच दो। अमूमन आस्क प्राइस बिड प्राइस से ज्यादा होता है तो ट्रेडर इस अंतर से कमा लेते थे। लेकिन जब से अल्गोरिदम आधारित हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेड होने लगे तो रिटेल ट्रेडर पिटने लगा और स्विंग ट्रेड उसका सहारा बना। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

एक कोशिका के अमीबा से लाखों करोड़ कोशिकाओं वाले इंसान तक। जीवन व उससे जुड़ी चीज़ें ऐसे ही जटिल से जटिलतर होती जाती हैं। अमूमन लोग ट्रेडिंग में इंट्रा-डे, स्विंग, मोमेंटम या पोजिशनल ट्रेड तक जानते हैं। हालांकि, इधर लोग डेरिवेटिव ट्रेड भी आजमाने लगे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि कुछ ट्रेडर निफ्टी के स्पॉट और फ्यूचर्स भाव के अंतर पर ही खेलते हैं। इन्हें प्रोग्राम ट्रेडर कहते हैं। अब पकड़ते हैं शुक्रवार का ट्रेड…औरऔर भी

कुछ लोग निफ्टी का टारगेट ही बताते फिरते हैं। हो गया तो ढिंढोरा, नहीं तो चुप्पी। कोई जवाबदेही तो है नहीं। दसअसल, यह केवल खुद और दूसरों को भ्रम में रखने जैसा फितूर है क्योंकि कोई अल्गोरिदम या अत्याधुनिक गणना बाज़ार की भावी चाल का सटीक आकलन नहीं कर सकती। फिर असल बात यह नहीं कि निफ्टी कहां जाएगा, बल्कि यह है कि बाज़ार कहीं भी जाए, उससे नोट कैसे बनाए जाएं। अब चलाएं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

कोई शख्स बुनियादी सिद्धांत को समझ ले तो तरीके खुद-ब-खुद निकाल सकता है। पर मात्र तरीकों को पकड़ने की कोशिश उसे बरबाद कर सकती है। व्यवहार में अक्सर होता यह है कि लोग तरीकों के पीछे भागते हैं। छाया को पकड़ने की कोशिश करते हैं, काया की परवाह नहीं करते तो माया गंवाते रहते हैं। वित्तीय प्रपत्रों या उनके डेरिवेटिव्स की ट्रेडिंग से पहले उनके बुनियादी सिद्धांत को समझना बहुत ही ज़रूरी है। अब मंगलवार की नज़र…औरऔर भी

संस्थाओं की बात अलग है। लेकिन हमारे-आपके लिए ट्रेडिंग समूह का नहीं, व्यक्ति का खेला है। हर किसी का कौशल, मनोविज्ञान और व्यक्तित्व अलग होता है। हमें अपनी महारत के हिसाब से ट्रेडिंग रणनीति बनानी होती है, तभी हम सफल हो सकते हैं। यहां नकल नहीं चलती। किसी बाहरी सेवा या गुरु से इनपुट मिल सकता है। लेकिन उसे हर ट्रेडर को अपने हिसाब से ढालना, अपनी रिसर्च में जोड़ना होता है। अब परखें सोम का व्योम…औरऔर भी