दुनिया में हर अच्छी चीज का दुरुपयोग हुआ है। इसके लिए दोषी वो चीज नहीं, बल्कि वे चालबाज इंसान हैं जो अपने हितसाधन की अंधी दौड़ में लगे हैं। इनकी अंधेरगर्दी को रोकने के लिए कानून बनते हैं। पर इनसे बचने के लिए वे सत्ता में आ जाते हैं।और भीऔर भी

कानून ही लंबे समय में व्यापक सामाजिक स्वीकृति पाने के बाद नैतिकता बन जाते हैं। फिर भी नैतिकता सर्वकालिक नहीं होती। किसी नैतिक मानदंड के सही होने का एक ही पैमाना है कि वह व्यापक समाज के वर्तमान व भावी हित में है या नहीं।और भीऔर भी

जहां कुछ करने के लिए कुछ न करनेवालों की मंजूरी लेनी पड़े, जहां बिचौलियों की मौज और रिश्वत का बोलबोला हो, जहां कानून भी उन्हें ही बचाता हो, वैसे तंत्र का नाश आज नहीं तो कल अवश्यसंभावी है।और भीऔर भी

नैतिकता आसमान से नहीं टपकती। मूल्य हवा से नहीं आते। सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए कानून बनाए जाते हैं। यही कानून जब व्यापक स्वीकार्यता हासिल कर लेते हैं तो नैतिक मू्ल्य बन जाते हैं।और भीऔर भी

अगर कोई नीति कभी भी लागू नहीं हो पा रही है तो पक्की बात है कि उस नीति में कोई बुनियादी खामी है। इसलिए जो कानून लागू नहीं हो पा रहे हैं, उनमें यह तलाशने की जरूरत है कि उनका नट-बोल्ट कहां से ढीला है।और भीऔर भी