हर कोई कहे जा रहा था कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ा देगा। फिर भी देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के चेयरमैन ओ पी भट्ट की तरह बाजार को भी लग रहा था कि शायद ऐसा न हो। इसी उम्मीद में बाजार थोड़ा गिरकर तो खुला, लेकिन फिर पूरी तरह सुधर गया, जबकि दुनिया के बाजार गिरे हुए थे। लेकिन 11 बजे के बाद बजार में हवा-सी चल गई कि ब्याज दरें बढ़नी हीऔरऔर भी

निराशावादी चिंतन का कोई अंत नहीं है। निवेश फंडों या ब्रोकरेज हाउसों के सरगना अपने निहित स्वार्थों के चलते बाजार को लेकर जैसी निराशा फैला रहे हैं, उसका भी कोई अंत नहीं है। लेकिन मैं इनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करता क्योंकि मैं कोई ब्रोकिंग के धंधे में तो हूं नहीं। फंड अपने फैसलों को जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि वे जन-धन का प्रबंधन कर रहे हैं। सच यह है कि फंडऔरऔर भी

जापान में परमाणु बिजली संयंत्रों में धमाकों के बाद हो रहे रेडियोएक्टिव विकिरण से वहां के जन-जीवन पर खतरा बढ़ता जाएगा। इससे पूरे पूर्वी एशिया की जलवायु तक बिगड़ सकती है। फिर भी यह कारण नहीं बन सकता. बाजार को छोड़कर भाग जाने का। हमेशा देखा गया है कि जब भी कोई संकट आता है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बाजार से बेचकर निकल लेते हैं। अगर मान लें कि वे जापान से बड़े पैमाने पर निवेशऔरऔर भी

जापान में भयंकर भूकंप और सुनामी से जानमाल का भारी नुकसान हुआ है और इसमें सारी दुनिया से जापान को सहयोग व मदद मिलनी चाहिए। हालांकि जापान सरकार ने जिस तरह राहत व बचाव के लिए खटाक से 18,600 करोड़ डॉलर निकाल लिए हैं, वो वाकई सराहनीय कदम है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि जापान इस संकट से उबर जाएगा, भले ही इसमें थोड़ा वक्त लगे और उसे तकलीफ उठानी पड़े। असल में जापान में पुनर्निर्माणऔरऔर भी