ट्रेनिंग की सीमा
शिक्षा व ट्रेनिंग से किसी को अच्छा मैनेजर बनाया जा सकता है, अच्छा विश्लेषक व अच्छा वक्ता तक बनाया जा सकता है, पर अच्छा इंसान नहीं। अच्छा इंसान तो घर-परिवार के संस्कारों और निरंतर अपनी कतरब्योंत से ही बनता है।और भीऔर भी
शिक्षा व ट्रेनिंग से किसी को अच्छा मैनेजर बनाया जा सकता है, अच्छा विश्लेषक व अच्छा वक्ता तक बनाया जा सकता है, पर अच्छा इंसान नहीं। अच्छा इंसान तो घर-परिवार के संस्कारों और निरंतर अपनी कतरब्योंत से ही बनता है।और भीऔर भी
शरीर है, तभी सब है। घर-परिवार। सुख-समृद्धि। ज्ञान-ध्यान। सबकी शुरुआत इसी से होती है और इसी के साथ इससे जुड़े हर भाव का अंत हो जाता है। बर्तन ही नहीं तो अमृत रखेंगे कहां? इसलिए सबसे पहले शरीर की शुद्धता व पात्रता जरूरी है।और भीऔर भी
न जाने कितने जिरहबख्तर बांधे फिरते हैं हम। कभी भगवान, कभी परिवार, कभी परंपरा तो कभी नौकरी का कवच कुंडल हमारी हिफाजत करता रहता है। बहादुर वो है जो इस सारी सुरक्षा को तोड़कर सीधे सच का सामना करता है।और भीऔर भी
भगत सिंह 23 साल ही जीकर अमर हो गए। 39 साल के जीवन में विवेकानंद दुनिया पर अमिट छाप छोड़ गए। ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपने लिए नहीं, उन अपनों के लिए जिए जो परिवार तक सीमित नहीं थे।और भीऔर भी
घर-परिवार से लेकर काम-धंधे तक स्वार्थों की दुनिया फैली है। इनमें कुछ गिने-चुने लोग ही होते हैं जो आपकी परवाह करते हैं। ऐसे हमदर्द दोस्त बड़े नसीब वालों को ही मिलते हैं। इसलिए इनकी कद्र जरूरी है।और भीऔर भी
जिंदगी में तमाम छोटी-छोटी चीजों से हमारा सुख व दुख निर्धारित होता है। इनमें से कुछ का वास्ता हमारे व्यक्तित्व, परिवार व दोस्तों से होता है, जबकि बहुतों का वास्ता सरकार व समाज के तंत्र से होता है।और भीऔर भी
अकेले दम पर धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा और शोहरत सब पाई जा सकती है। लेकिन पारिवारिक संबंधों की रागात्मकता के बिना वो खुशी नहीं मिल सकती है जो क्षीर सागर में विराजे विष्णु को हासिल थी।और भीऔर भी
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