जिस तरह ड्रग-एडिक्ट नशे के बिना पसीना-पसीना हो जाता है, उसी तरह हम भी धन और घर की चक्की के ऐसे आदी हो जाते हैं कि उसके बिना सब सूना लगने लगता है। फुरसत हमें काटने दौड़ती है और हम उसी चक्की की ओर दौड़े चले जाते हैं।और भीऔर भी

सारी दुनिया दौलत के पीछे भाग रही है। काम, काम, काम। भागमभाग। लगे रहो ताकि धन बराबर आता रहे। लेकिन इससे कहीं ज्यादा अहम है इसकी चिंता करना कि हम अपने घर-परिवार के साथ ज्यादा भावपूर्ण रागात्मक ज़िंदगी कैसे जी सकते हैं।और भीऔर भी

टेक्नोलॉजी रिश्तों को घर-परिवार की सीमा से निकालकर अनंत वर्चुअल विस्तार दे देती है। लेकिन उसका हल्का-सा ग्लिच भी इन रिश्तों को खटाक से तोड़ देता है। फिर बच जाती है एक कचोट और यह अहसास कि हम कितने असहाय हो गए हैं।और भीऔर भी