अजीब विडंबना है। ऑप्शन मूल्य के ब्लैक-शोल्स मॉडल को भले ही दो नोबेल पुरस्कार विजेता गणितज्ञों ने तैयार किया हो, पर यह पूरे सच को नहीं पकड़ पाता। ऑप्शन का स्ट्राइक मूल्य, संबधित स्टॉक/इंडेक्स का बाज़ार मूल्य, रिस्क-फ्री ब्याज की दर और एक्सपायरी में बची अवधि या लाभांश यील्ड जैसे कारकों के आंकड़ों को लेकर किसी भ्रम या दुविधा की गुंजाइश नहीं। पर इस फॉर्मूले से ऑप्शन का जो भाव निकलता है, वह बाज़ार में चल रहेऔरऔर भी

किसी भी स्टॉक या डेरिवेटिव के भाव में अनिश्चितता का एक ही स्रोत होता है, वह है उसके मूल्य की वोलैटिलिटी या स्टैंडर्ड डेविएशन। इन अनिश्चितता को या तो स्टॉक व डेरिवेटिव के मूल्य के समीकरणों को आपस में काटकर खत्म किया जा सकता है या इसे स्थिर मानकर इसके झंझट से ही निजात पाई जा सकती है। ब्लैक-शोल्स मॉडल में वोलैटिलिटी को स्थिर मान लिया गया है। पर, वास्तव में यह बराबर बदलती रहती है क्योंकिऔरऔर भी

जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी, वित्त मंत्री ने बजट 2010-11 में वह काम कर दिखाया। सभी को यही लग रहा था कि क्योंकि प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्स कोड) लागू होनी है, इसलिए शायद प्रणब मुखर्जी इस बार व्यक्तिगत आयकर की दरों या स्लैब में कोई तब्दीली नहीं करेंगे। बहुत हुआ तो करमुक्त आय के लिए होम लोन के ब्याज की सीमा को 1.5 लाख रुपए के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर देंगे।औरऔर भी