इस महीने छुट्टियां बहुत हैं। कल से लेकर 6 अक्टूबर सोम तक बाज़ार बंद। फिर 23-24 गुरु-शुक्र को लक्ष्मी पूजन व दिवाली बलि प्रतिपदा। याद करें, छह साल पहले 24 अक्टूबर 2008 को पूरे बाज़ार का दीवाला निकल गया था। उस दिन वैश्विक वित्तीय संकट का झटका बड़ी ज़ोर से लगा और निफ्टी 13% टूटा था। क्या वैसा संकट फिर नहीं आ सकता? ऐसे संकट तक में कमाते हैं ऑप्शन ट्रेडर। अब इस सप्ताह का आखिरी ट्रेड…औरऔर भी

विदेशी संस्थागत निवेशकों का खेल बड़ा व्यवस्थित होता है। कैश सेगमेंट में कोई स्टॉक खरीदा तो डेरिवेटिव सेगमेंट में उसके अनुरूप फ्यूचर्स बेच डाले। दोनों के भाव में 10% सालाना का अंतर हुआ तो वे मजे में आर्बिट्राज करते हैं। उनका लक्ष्य है रुपए डॉलर की विनिमय दर के असर के बाद कम से कम 6-8% कमाकर वापस ले जाना। टैक्स उन्हें देना नहीं होता। जेटली ने कृपा और बढ़ा दी। उनसे सीखते हुए अभ्यास आज का…औरऔर भी

बहुत से लोगों में डर बैठा हुआ है कि अभी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के दम पर शेयर बाज़ार जिस तरह उठ रहा है, वह 16 मई को एनडीए की सरकार न बनने पर बैठ सकता है। यकीनन ऐसा होगा। पर ज्यादा समय के लिए नहीं क्योंकि दुनिया के पेंशन फंड भारत में निवेश नहीं करेंगे तो जरूरी रिटर्न हासिल नहीं कर सकते। इसलिए भारत में निवेश एफआईआई की मजबूरी है। अब समझते है मंगलवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

हमारी सोच यकीनन एकतरफा हो सकती है। लेकिन बाज़ार कभी एकतरफा नहीं होता। हम जब कोई शेयर खरीदने की सोचते हैं, तभी किसी को लगता है कि यह अब और नहीं बढ़ेगा, इसलिए इसे बेच देना चाहिए। इसी तरह बेचने वक्त भी सामने कोई न कोई खरीदार रहता है। यिन-यांग की इसी जोड़ी से सृष्टि ही नहीं, बाज़ार भी चलता है। एक सही तो दूसरा गलत। निरपेक्ष कुछ नहीं। जिसने कमाया, बाज़ी उसकी। अब शुक्र का ट्रेड…औरऔर भी

खबर यकीकन शेयर बाज़ार और संबंधित शेयरों के लिए अहमियत रखती है। लेकिन बनने से लेकर हमारे पास पहुंचने तक वो गुल खिला चुकी होती है। उस पर खेलनेवालों की तेज़ी को हम मात नहीं दे सकते है। इसलिए खबर हमारे जैसे आम निवेशकों का ट्रेडिंग टूल कतई नहीं बन सकती। जिस दिन बड़ी खबर हो, उस दिन बाज़ार से दूर रहना बेहतर। बासी खाना और बासी खबर हमारे लिए त्याज्य है। देखें अब बुध का बाज़ार…औरऔर भी

हमें डिस्काउंट की आदत है। लेकिन शेयर बाज़ार में यह सोच कभी-कभी भारी पड़ सकती है क्योंकि यहां कोई स्टॉक सस्ता क्यों है और महंगा क्यों, इसकी बड़ी स्पष्ट वजहें होती हैं। अच्छा स्टॉक कभी किसी निगाह से छूटता नहीं। लोग उसे लपकने लगते हैं और फ्लोटिंग स्टॉक सीमित होने के कारण खट से शेयर चढ़ जाता है। याद रखें, सस्ती चीजें हमेशा अच्छी नहीं होतीं और अच्छी चीजें कभी सस्ती नहीं होतीं। अब बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

बीएसई में कल कुल 2950 प्रपत्रों या स्क्रिप्स में ट्रेडिंग हुई। इनमें से चार ने अब तक का ऐतिहासिक उच्चतम स्तर हासिल कर लिया। ये हैं – तिलक फाइनेंस, कृष्णा वेंचर्स, इंडियन ब्राइट और सुलभ इंजीनियर्स। ये चारों ही टी ग्रुप की कंपनियां हैं जिनमें कोई सट्टेबाजी नहीं चलती और 100 फीसदी डिलीवरी लेना जरूरी है। दूसरी तरफ कल 175 कंपनियों के शेयर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। इससे एक इशारा तो यहऔरऔर भी

यूं तो शेयरों के भाव वर्तमान को नहीं, हमेशा भविष्य को पकड़कर चलते हैं। लेकिन किसी कंपनी के भविष्य का आकलन इतना आसान नहीं होता। गहरी रिसर्च और जासूसी का काम होता है यह। फिर भी कभी-कभी कंपनी का अतीत और वर्तमान ही इतना मजबूत होता है कि भविष्य से बेफिक्र होकर उसमें निवेश किया जा सकता है। सीईएससी लिमिटेड का मामला कुछ ऐसा ही है। आरपीजी समूह की कंपनी है। 1899 में गठित हुई। तब सेऔरऔर भी

जब भी कभी बाजार गिरता है और हर तरफ से बेचो-बेचो की पुकार आने लगती है तब मैं बाजार के बर्ताव और निवेशकों व ट्रेडरों के मनोविज्ञान पर मुस्कुराने लगता हूं। ऐसा लेहमान ब्रदर्स के दीवालिया होने की खबर के बाद भी हुआ था, जब बाजार में जबरदस्त बिकवाली चली थी। असल में आप इसी तरह हवा में बहकर बाजार को नीचे-नीचे पहुंचा देते हैं और दूसरों को अपने ऊपर सवारी गांठने का मौका दे देते हैं।औरऔर भी