छल-छद्म, झूठ, तिकड़म और विज्ञापन से राजनीति में झांसा दिया जा सकता है। लेकिन अर्थनीति में नहीं। इसमें बड़े-बड़े विज्ञापन देकर और झूठ बोलकर भी सच को छिपाया नही जा सकता। कुछ दिन पहले अखबारों में मोदी के साथ नौजवान लड़कों व लड़कियों का फोटो लगाकर पूरे पेज़ के विज्ञापन में दावा किया गया कि नौ साल में 1.59 लाख से ज्यादा स्टार्ट-अप बने हैं। इन्हें करीब ₹13 लाख करोड़ की फंडिंग मिली और इनमें सीधे-सीधे 17.2औरऔर भी

निवेश और युद्ध में वही सफल होता है जो रणनीति व योजना बनाकर चलता है। सबसे सफल निवेशक वो बनता है जो संकट का पहला संकेत मिलते ही घबराता नहीं। वो बाज़ार की हर तरह की स्थिति के लिए पहले से योजना बनाकर चलता है। साथ ही अड़ियल नहीं, बल्कि बाज़ार की स्थिति के अनुरूप लचीला रुख अपनाने को तैयार रहता है। यह भी जान लें कि बाज़ार में केवल जानकर या सटीक ज्ञान से भी नहींऔरऔर भी

भारत की सबसे बड़ी सम्पदा है उसकी मानव पूंजी। यही वो पूंजी है जो जीवन सुधारने की आशा में आज महाकुंभ में कोरोड़ों की तादाद में टूट पड़ी है। प्रयाग के संगम पर आस्था में डूबा सैलाब हिलोरे मार रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने अब तक के लगभग 11 साल में उसे सही दिशा में लगाने पर ध्यान नहीं दिया। मोदी सरकार मेक-इन इंडिया के नाम पर विदेशी पूंजी के पीछे फूलों का गुलदस्ता लेकर दौड़तीऔरऔर भी

कहां है गरीबी, कहां है दरिद्रता और बेरोजगारी? मोदी सरकार कहती है कि उसने 2013-14 से 2022-23 के बीच के दस सालों में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाल लिया है। अब देश में 29.17% के बजाय केवल 11.28% लोग ही गरीब रह गए हैं। भारतीय शेयर बाज़ार का पूंजीकरण सितंबर के बाद बराबर गिरने के बावजूद अब भी जीडीपी का 130% है। देश में 21 करोड़ पंजीकृत निवेशक और 11.5 करोड़ अलग याऔरऔर भी

ये हमारी-आपकी बची-खुची पूंजी में निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। नियामक संस्था सेबी जल्दी ही 250 रुपए या इससे भी कम 100 रुपए की एसआईपी का रास्ता साफ करने की तैयारी में है। यह लालच दिखाकर कि म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में नियमित धन लगाकर गरीब से गरीब देशवासी भी कॉरपोरेट की बढ़ती कमाई में हिस्सेदार बन सकता है। उसे एफडी, पीपीएफ या डाकघर जैसी बचत योजनाओं से असल में घाटा ही होता है क्योंकिऔरऔर भी

बीते हफ्ते शुक्रवार-शनिवार को एनएसई के सभागार में सेबी व एनआईएमएस ने दो दिन का सिम्पोजियम आयोजित किया। सम्वाद नाम की इस संगोष्ठी का केंद्रीय विषय था – कैपिटल फॉर ग्रोथ या संवृद्धि के लिए पूंजी। इसमें सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच से लेकर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन तक के शिरकत की। साथ ही आए फाइनेंस की दुनिया के तमाम दिग्गज। इनमें आईआईएम बैंगलोर में फाइनेंस के प्रोफेसर वेंकटेश पंचपागेशन औरऔरऔर भी

मोदी सरकार इन दिनों बहुत परेशान है। जीडीपी की विकास दर घटकर चार साल के न्यूनतम स्तर पर। जिस विदेशी पूंजी पर भरोसा किया, वो देश छोड़कर भागे जा रही है। देश में शुद्ध एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) 12 साल के न्यूनतम स्तर पर। कोविड के बाद से सरकार ने खुद पूंजी व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को जो फौरी आवेग दिया था, उसका दम फूलने लगा है। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 11,11,111 करोड़ रुपए केऔरऔर भी

न जीवन, न समाज और न ही निवेश की दुनिया फॉर्मूलों में बंधकर चलती है। इसलिए सार्थक जीवन जीने और सफल निवेश के लिए हमेशा सतर्क रहना पड़ता है। यह भी जान लें कि पढ़े-लिखे होने का मतलब वित्तीय साक्षरता नहीं। केरल देश का सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य है। लेकिन वहां के सबसे ज्यादा लोग लॉटरी खेलते हैं जो शुद्ध रूप में गंवाने का उपक्रम है, कमाने का नहीं। जिस दिन सभी लोग लॉटरी जीतने लगेंगे, उसऔरऔर भी

हमारा जीडीपी तब तक नहीं बढ़ सकता, जब तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ता। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की दुर्दशा इसलिए हुई पड़ी है क्योंकि मांग के अभाव में न देशी निवेश आ रहा है और न ही विदेशी। फिर भी सरकार झांकी सजाए हुए है। 12 दिसंबर 2024 को वाणिज्य मंत्रालय ने प्रेस रिलीज जारी की कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में 42.1 अरब डॉलर का रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया है और अप्रैल 2020औरऔर भी

दस साल से बनाया गया आर्थिक विकास का तिलिस्म अंततः ताश के पत्तों की तरह भरभराकर गिरने लगा है। सरकारी संस्थान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) का चालू वित्त वर्ष 2024-25 के बारे में पहला अग्रिम अनुमान है कि इस बार जीडीपी के विकास की दर 6.4% रह सकती है जो चार साल की न्यूनतम दर है। इस बार जुलाई 2024 में चालू वित्त वर्ष का बजट पेश करते हुए नॉमिनल या सतही विकास के 10.5% रहने काऔरऔर भी