बाज़ार में गिरावट का आलम हो तो अच्छी कंपनियों के शेयर भी गिर जाते हैं, लेकिन उनका अंतर्निहित मूल्य नहीं गिरता। सो, बुद्धिमान निवेशक गिरावट के ऐसे मौकों की बेसब्री से बाट जोहते हैं क्योंकि तब उन्हें अच्छी कंपनियों के शेयर सस्ते में खरीदने का मौका मिल जाता है। वैसे भी समय के साथ अपने उत्पाद व सेवाओं को अपग्रेड करती कंपनियां निवेश के लिए हमेशा माकूल रहती हैं। तथास्तु में आज एक ऐसी ही मजबूत कंपनी…औरऔर भी

सत्रह जनवरी 2012 को जब हमने इस दवा कंपनी में निवेश को कहा था, तब उसका शेयर 14.35 रुपए पर था। इसी महीने उसका शेयर 322.50 तक उठने के बाद फिलहाल 285 रुपए पर है। तीन साल में 1886% रिटर्न! इसके पीछे कोई ऑपरेटर नहीं, बल्कि कंपनी के बिजनेस की ताकत है। वह शोध पर जमकर निवेश करती है। उसके पास तमाम दवाओं के पेटेंट हैं। अब भी यह दीर्घकालिक निवेश के लिए एकदम मुफीद कंपनी है…औरऔर भी

ट्रेडिंग में हम किसी शेयर के तात्कालिक आवेग को भुनाते हैं। इसलिए हफ्ते, दस दिन या महीने, दो महीने में फायदा कमाकर वहां से निकल लेते हैं। लेकिन, जब हम अच्छे प्रवर्तक की बढ़ते धंधे में लगी उभरती कंपनी में निवेश करते हैं तो फटाफट निकलने की कतई नहीं सोचनी चाहिए क्योंकि उसका बिजनेस बराबर बढ़ते जाना है जिसके ताप से उसका शेयर भी चढ़ता चला जाता है। आज तथास्तु में ऐसी ही एक और संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

तमाम निवेश सलाहकार और म्यूचुअल फंड के लोग कहते हैं कि हमें इक्विटी या शेयरों में लॉन्ग टर्म के लिए निवेश करना चाहिए। लेकिन यह नहीं बताते कि लॉन्ग टर्म मतलब कितना? साल-दो साल या पांच-दस साल! हमारा मानना है कि हर कंपनी के बढ़ने का एक चक्र होता है। उसी चक्र के हिसाब से हमें निवेश की मीयाद तय करनी चाहिए। मसलन, आज तथास्तु में बताई गई कंपनी का उठाव चक्र दो-तीन साल का ही है…औरऔर भी

शेयरों के भाव कभी न कभी अपने अंतर्निहित मूल्य तक पहुंचते ही हैं। चढ़ा हुआ स्टॉक नीचे उतरता है और गिरा हुआ स्टॉक ऊपर भी उठता है। फिर, निवेश करते वक्त सुरक्षित मार्जिन भी लेकर चलना होता है। अगर किसी स्टॉक में ऐसा मार्जिन न दिखे तो फिलहाल उसमें निवेश नहीं करना चाहिए और हमें उसके गिरने की बाट जोहनी चाहिए। नहीं गिरे तो उसका मोह छोड़ देना ही श्रेयस्कर है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में भरोसे का भयंकर अकाल है। तमाम ब्रोकरेज़ हाउस व एनालिस्ट घनेरों सलाह देते हैं। लेकिन, वे जो कहते हैं, खुद उसका उल्टा करते हैं। उनका मकसद किसी तरह निवेशकों का शिकार करना होता है। निवेशकों की हालत यह है कि दूध का जला, छाछ भी फूंककर पीता है। ऐसे में निष्पक्ष व ईमानदार सलाह का पता लगते ही लोग उसके दीवाने हो सकते हैं। मगर, उन्हें पता तो लगे! तथास्तु में नई संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

महीने भर पहले हमने एक कंपनी में 225-234 की रेंज में निवेश को कहा था, लक्ष्य तीन साल में 450 तक पहुंचने का है। इस दौरान इसका शेयर 206 तक गिर गया तो कुछ सब्सक्राइबर चिंतित हो उठे। वैसे, 6 फरवरी को बेहतर नतीजों के बाद यह उठने लगा है। दरअसल, भारतीय अर्थव्यवस्था और अच्छी कंपनियों में इतनी संभावना है कि हमें महीने या तिमाही की गिरावट से परेशान नहीं होना चाहिए। तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

हम चाहकर भी सारे काम अकेले नहीं कर सकते। कुछ काम दूसरों को सौंपना ही पड़ता है। आपस की इसी निर्भरता से बनता है समाज और चलते हैं व्यापार और उद्योग-धंधे। काम की चीज़ सेवा भी हो सकती है और कोई उत्पाद भी। उत्पाद आम खपत का भी हो सकता है और औद्योगिक खपत का भी। उत्पाद ऐसा हो जिसके बिना काम नहीं चल सकता तो उसका धंधा फलता-फूलता है। तथास्तु में ऐसी ही संभावनामय छोटी कंपनी…औरऔर भी

शेयरों के भाव बढ़ते हैं तो लोगबाग बावले हो जाते हैं और उनमें खरीदने की होड़ मच जाती है। चालू वित्त वर्ष 2014-15 में दिसंबर तक के नौ महीनों में इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीमों में धन लगानेवालों की संख्या 12.12 लाख बढ़ गई। लेकिन अगस्त 2013 में जब बाज़ार गिरा हुआ था, तब सभी दुबके पड़े थे। समझदारी इसमें है कि निवेश के लिए भावों के गिरने का इंतज़ार किया जाए। तथास्तु में इसका एक जानदार उदाहरण…औरऔर भी

पब्लिक सेक्टर को गरियाना फैशन बन गया है। लेकिन महान सांख्यिकीविद व नेहरू के करीबी महलनोबिस ने 1956 के औद्योगिक नीति प्रस्ताव में माना था कि 15 साल बाद, यानी 1971 से यह क्षेत्र सरकार को इतना लाभांश देगा कि आम लोगों पर कोई टैक्स लगाने की ज़रूरत नहीं होगी। राजनीतिक भ्रष्टाचार ने उनकी गणना को भले ही नाकाम कर दिया हो, पर अभी भी हैं इस क्षेत्र में तमाम रत्न। तथास्तु में ऐसा ही एक महारत्न…औरऔर भी