इतिहास गवाह है कि रोम एक दिन में नहीं बनता। न ही हमारे गांवों में पुराने ज़माने के मिट्टी के घर एक झोंक में बन जाया करते हैं। मिट्टी का एक रदा रखो। उसे सूखने दो। फिर अगला रदा रखो। अच्छे निवेश के लिए भी ऐसा ही धैर्य चाहिए। अच्छी से अच्छी कंपनी में भी एकमुश्त निवेश नहीं जमता। थोड़ा अभी, बाकी भावों की लहर माफिक स्तर तक गिरने पर। अब तथास्तु में एक और संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

जो कंपनियां विदेशी बाज़ार पर निर्भर हैं, उनके लिए देश का सूखा खास मायने नहीं रखता। मगर, जो कंपनियां घरेलू बाज़ार पर निर्भर हैं, उनके लिए मानसून का खराब रहना बहुत मायने रखता है। गांवों और खेती-किसानी की हालत खराब होने से बिक्री से लेकर उनके मुनाफे तक को चोट लगती है। लेकिन आशा है कि दो साल बाद इस बार मानसून औसत से बेहतर रहेगा। तथास्तु में आज ऐसी कंपनी, मानसून जिसे गर्दिश से निकाल देगा…औरऔर भी

80-85% भारतीयों के पास ज़रूरी खर्चों को पूरा करने के बाद इतना नहीं बचता कि भविष्य के लिए अलग से बचा सकें। इसीलिए बीमा व पेंशन जैसी सरकारी स्कीमों के ज़रिए सामाजिक सुरक्षा की बड़ी ज़रूरत है। फिर भी निवेश की इस धारणा पर हमें सोचना चाहिए कि खर्च के बाद जो बचे, उसे बचाने के बजाय, बचाने के बाद जो बचे, उसे ही खर्च करना चाहिए। अब तथास्तु में बचत को दौलत बना सकनेवाली एक कंपनी…औरऔर भी

दस साल पहले घी का दाम 120 रुपए/किलो, सोने का दाम 8500 रुपए/दस ग्राम और सेंसेक्स 12,000 अंक पर था। इस समय घी 450 रुपए, सोना 30,000 रुपए और सेंसेक्स 25,225 पर है। इस तरह इन दस सालों में घी 275%, सोना 253% और सेंसेक्स 113% बढ़ा है। सेंसेक्स का इन तीनों में सबसे कम बढ़ना दिखाता है कि अर्थव्यवस्था में दौलत का सृजन नहीं हो रहा है। तथास्तु में आज की कंपनी दौलत बनाने के लिए…औरऔर भी

सभी जानते हैं कि शेयरों में निवेश रिस्की है क्योंकि पता नहीं कि भविष्य में क्या हो जाए। अनिश्चितता को मिटाना कतई संभव नहीं। लेकिन रिस्क से बचने के लिए अनिश्चितता से भाग भी नहीं सकते। फिर करें तो क्या करें? यहां यह समझ बड़े काम की हो सकती है कि रिस्क वो अनिश्चितता है जिसे मापा जा सकता है और अनिश्चितता वो रिस्क है जिसे मापना संभव नहीं। अब तथास्तु में प्रस्तुत है आज की कंपनी…औरऔर भी

शेयरों के भाव का कोई ऊपरी पैमाना नहीं। मुमकिन है कि कोई शेयर 25,000 रुपए का होने के बावजूद सस्ता हो और कोई 25 पर भी महंगा हो। मानते हैं कि कोई शेयर 52 हफ्तों के न्यूनतम स्तर आ जाने पर सस्ता हो जाता है। यह एकदम गलत सोच है। संभव है कि इतना गिरने के बावजूद वो शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से काफी महंगा हो। आज तथास्तु में एक कंपनी जिसे करीब 25% और गिरना पड़ेगा…औरऔर भी

हम नेता बडा सोच-समझकर चुनते हैं। लेकिन दो-ढाई साल में पता चलता है कि वो पूरा हवाबाज़ है तो हम कुछ नहीं कर पाते। कंपनियां भी हम बहुत सोच-समझकर चुनते हैं। पर उन्हें चलाना हमारे नहीं, बल्कि उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है। वो गलत निकल गया तो हमारी उम्मीदें टूट जाती हैं। मगर, नेता और कंपनी में फर्क यह है कि कंपनी से हम बीच में ही निकल सकते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

कंपनी अगर अच्छा लाभ मार्जिन कमाए और बराबर अपना प्रति शेयर लाभ बढ़ाने के जतन में लगी रहे तो उसका शेयर थोड़े बहुत दबाव में आने के बावजूद लंबे समय में बढ़ता है। हमें निवेश के लिए कंपनियां चुनते वक्त खास ध्यान रखना चाहिए कि धंधे पर उनकी पकड़ कितनी है, उसका दायरा कितना बड़ा है और अपने माल पर वो कितना ज्यादा प्रीमियम खींच सकती है। आज तथास्तु में ऐसी ही स्थिति में खड़ी एक कंपनी…औरऔर भी

कहा जाता है कि अच्छी कंपनी में निवेश करो और दस-बीस साल के लिए भूल जाओ। लेकिन हर पल बदलती दुनिया में इतना ज्यादा धैर्य भी अच्छा नहीं होता। निवेश की खेती में पूरी सावधानी के बावजूद फालतू घास के घुसने का खतरा बना ही रहता है। इसलिए अपने पोर्टफोलियो में बराबर काट-छांट करते रहना चाहिए। साल भर के बाद कमज़ोर या खराब प्रदर्शन करने वालों को बाहर निकाल देना चाहिए। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

कंपनियों का धंधा उतनी तेज़ी से नहीं बदलता जितनी तेज़ी से शेयर बाज़ार ऊपर या नीचे होता है। कंपनी का धंधा मजबूत होने के बावजूद उसका शेयर गिर सकता है क्योंकि बाज़ार का मूल्यांकन या पी/ई अनुपात तमाम वजहों से नीचे आ जाता है। यही मूल्यांकन हमें किसी अच्छी कंपनी में घुसने और निकलने का मौका देता है। पी/ई ज्यादा तो बेचकर निकल लिए और पी/ई कम तो निवेश कर लिया। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी