ऑक्टोपस या धृतराष्ट्र
एक तो मानव मस्तिस्क की संरचना, ऊपर से वर्तमान के खांचे में कसी सोच की धृतराष्ट्री जकड़। सो, वर्तमान की सार्थक आलोचना और भविष्य की तार्किक दृष्टि तक हम पहुंच ही नहीं पाते और आगे बढ़ने की कोशिश में हमेशा मुंह की खाते रहते हैं।और भीऔर भी
हद भविष्यवाणी की
हम वर्तमान की जमीन पर खड़े होकर, उसी के फ्रेम में रहकर भविष्य का अनुमान लगाते हैं। भविष्य में यह फ्रेम खुद कैसे बदल जाएगा, इसका पता नहीं रहता। इसीलिए बड़े-बड़े विशेषज्ञों तक की भविष्यवाणियां बाद में हास्यास्पद साबित हो जाती हैं।और भीऔर भी
चिंता कल की
कल जो हुआ, सो हुआ। कल क्या होगा, चिंता इसकी है। कारण, करने व सोचने का तरीका एकदम सही होने के बावजूद हम गलत साबित हो सकते हैं क्योंकि हम अतीत को नहीं, बल्कि भविष्य को साध रहे होते हैं और भविष्य में हमेशा रिस्क होता है।और भीऔर भी
निर्मोही, निरपेक्ष, निडर
हम अक्सर अतीत के प्रति मोह, वर्तमान के प्रति खीझ और भविष्य के प्रति डर से भरे रहते हैं। कल, आज और कल को साधना जरूरी है। लेकिन उसके लिए हमें निर्मोही, निरपेक्ष और निडर बनना होगा।और भीऔर भी
पुराने कर्म
अतीत से चिपके रहे तो वर्तमान को ठीक से नहीं जी सकते। अतीत को ठुकरा दिया, तब भी वर्तमान को ठीक से नहीं जी सकते क्योंकि अतीत ही हमें अपने कर्मों के सही-गलत होने का भान कराता है।और भीऔर भी
ये भविष्यवाचक!
वे रेखाएं या आहट देखकर भविष्य बांचने का काम औरों का नहीं, अपना भविष्य संवारने के लिए करते हैं। भविष्यवाणी करना उनके पापी पेट का सवाल है। इससे हमें ढाढस के सिवा कुछ नहीं मिलता।और भीऔर भी