शेयर खरीदना साबुन-तेल या जीन्स खरीदने जैसा नहीं है कि जाना-पहचाना व आजमाया ब्रांड डिस्काउंट देख कर खरीद लिया। यकीनन यहां भी नाम की अपनी भूमिका है। लेकिन केवल नाम ही खुद में पर्याप्त नहीं है। हमें देखना पड़ता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों के लिए मूल्य पैदा कर रही है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि खाली हवाबाज़ी करके प्रवर्तकों की जेब भरने का इंतज़ाम किया जा रहा है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

ठीक पांच साल पहले हमने इसी जगह नवीन फ्लूवोरीन को छांटकर पेश किया था। तब उसका शेयर 260 के आसपास था और यह कॉलम पेड नहीं, खुला था। हमने साफ-साफ कहा था कि वो तलहटी में पड़ा है। वही शेयर 18 नवंबर को 2010 तक जाने के बाद फिलहाल 1715 पर है। पांच साल में 569.6% रिटर्न। यही है सही भाव और सही वक्त पर पुख्ता कंपनियों में निवेश का कमाल। तथास्तु में एक और संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

4 दिसंबर 2014 से 4 दिसंबर 2015 के बीच बीएसई-500 सूचकांक 5.5% गिरा है। लेकिन इन 500 कंपनियों में से 130 ऐसी हैं जिन्होंने 15% से ज्यादा रिटर्न दिया है। सबसे ज्यादा 296.7% रिटर्न राजेश एक्सपोर्ट्स ने दिया है। साफ है कि गिरते बाज़ार में भी चयन सही हो तो कमाने के भरपूर मौके हैं। लेकिन हर चमकनेवाली चीज़ सोना नहीं होती क्योंकि राजेश एक्सपोर्ट्स से भी मजबूत कंपनी उसी के उद्योग में है। आज यही कंपनी…औरऔर भी

वॉरेन बफेट कायदे से समझने से पहले कंपनी को हाथ नहीं लगाते। भरपूर रिसर्च के बाद उन्होंने 2011 में आईबीएम का शेयर खरीदा। तब वो 170 डॉलर पर था। अभी 138 डॉलर पर है। जिन चार सालों में एस एंड पी 500 सूचकांक 1285 से 62.5% बढ़कर 2088 पर पहुंच गया, उसी दौरान आईबीएम से बफेट को 18.8% का घाटा! फिर भी बफेट को अफसोस नहीं क्योंकि उन्होंने सुरक्षित मार्जिन पर खरीदा था। अब आज की कंपनी।औरऔर भी

भारतीय अर्थव्यवस्था में अगले बीस सालों तक ठहराव या मंदी आने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि 125 करोड़ की आबादी में से अभी तक 100 करोड़ का बाज़ार तो खुला ही नहीं है। हमारा जीडीपी इस साल मरी-गिरी हालत में भी 7.4% बढ़ना चाहिए। वो भी तब, जब कृषि की विकास दर शायद 0.1% भी न रहे। सोचिए, कृषि अगर 4% सालाना बढ़ने लगे तो जीडीपी कहां पहुंच जाएगा! आज कृषि से जुड़ी एक जानदार कंपनी…औरऔर भी

अप्रैल 2011 में 115 पर खरीदने को सुझाया सुप्रीम इंडस्ट्रीज अप्रैल 2015 में 745 पर पहुंच गया। मई 2014 में 45 पर सुझाई गई कंपनी अभी 100 के आसपास है। चाहें तो हम दावा कर सकते हैं, हमारी निवेश सलाह सबसे अच्छी होती हैं। लेकिन सबसे अच्छा निवेश जैसी कोई चीज़ नहीं होती। रिस्क और रिटर्न का अभिन्न नाता ही निवेश की आत्मा है। 100 पर पहुंची कंपनी दे सकती है और 40% रिटर्न…और भीऔर भी

बाज़ार का गिरना लंबे समय के निवेशकों के लिए अक्सर अच्छा होता है क्योंकि इस दौरान तमाम मजबूत कंपनियों के शेयर भी गिर जाते हैं। ऐसे मौके पर इन्हें पकड़ लेना मुनाफे का सौदा साबित होता है। आज हम तथास्तु में ऐसी कंपनी पेश कर रहे हैं, मजबूती के बावजूद जिसके शेयर गिरकर इधर अपने अंतर्निहित मूल्य के काफी करीब पहुंच गए हैं। इसमें अभी निवेश करना तीन साल में 35% से ज्यादा रिटर्न दे सकता है।औरऔर भी

बाज़ार में हर गिरा हुआ शेयर सस्ता नहीं होता। लेकिन बिजनेस मॉडल संभावनामय हो तो किन्हीं वजहों से गिरावट से सस्ता हुआ शेयर कंपनी में निवेश करने का अच्छा मौका देता है। आज हम तथास्तु में एक ऐसी ही कंपनी पेश कर रहे हैं जिसके शेयर इधर बाज़ार में गिरे हुए हैं। कंपनी को अपने कुछ हालिया फैसलों से घाटा उठाना पड़ा है। लेकिन अगले दो-तीन सालों में इसमें किया गया निवेश अच्छा रिटर्न दे सकता है।औरऔर भी

खेती-किसानी का ज़माना लद गया। अब उद्योग-धंधे का ज़माना है। कृषि में भी बढ़ना है तो उसे घर की नहीं, उद्योग व समाज की खपत से जोड़ना पड़ेगा। खेती में परिवार की जायदाद अमूमन परिवार को ही मिलती थी। वहीं उद्योग में, खासकर लिस्टेड कंपनियों का स्वामित्व खुला है। कंपनी जम जाए तो कोई भी उसके मालिकाने में ‘शेयर’ खरीद सकता है। तथास्तु में हम ऐसी ही कंपनियां छांटने में मदद करते हैं। अब आज की कंपनी…औरऔर भी

पोर्टफोलियो प्रबंधन का सिद्धांत कहता है कि अगर अगल-अलग तरह की 40 कंपनियों में निवेश किया जाए तो पूरे निवेश में कंपनियों का खास अपना रिस्क मिट जाता है और केवल शेयर बाज़ार का आम रिस्क बचा रह जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आम निवेशकों को एक समय में कितनी कंपनियों में निवेश रखना चाहिए। व्यवहार कहता है कि इनकी संख्या 15 से 40 रहे तो बेहतर है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी