नई आशा व उत्साह के साथ साल 2015 की शुरुआत हुई है। ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक 73% लोग मानते हैं कि इस साल अर्थव्यवस्था की हालत पहले से बेहतर रहेगी। इस उम्मीद का सबसे बड़ा फायदा कॉरपोरेट क्षेत्र को मिलेगा। खासतौर पर यह मजबूत कंपनियों के शेयरों में नज़र आएगा। ऐसे में ‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’ की हालत न रहे, इसके लिए तथास्तु ला रहा है निवेश के लिए नई कंपनियां। इसी की पहली कड़ी…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में आपको वही धन लगाना चाहिए जिसकी ज़रूरत आपको अगले 5-10 साल तक नहीं पड़ने जा रही। यह वो धन होना चाहिए जो आप अपने बाल-बच्चों के लिए छोड़ कर जाना चाहते हैं। अगर आप हर दिन भाव देखने और यह पता लगाने के लिए बेचैन रहते हैं कि आपका पोर्टफोलियो कितना बढ़ा तो आपको शेयर बाज़ार से दूर ही रहना चाहिए। शेयरों में निवेश नियमित कमाई का विकल्प नहीं है। अब आज का तथास्तु…औरऔर भी

अच्छी कंपनियों के शेयर मंथर-मंथर बढ़ते रहते हैं। हमने करीब सवा साल पहले इसी कॉलम में एक मिड-कैप स्टॉक में निवेश की सलाह देते हुए तीन साल में उसके दोगुना होने का आकलन किया था। वो एक साल में ही दोगुना हो गया। अभी अगले दो-तीन साल में उसके कम-से-कम डेढ़ गुना होने की प्रबल संभावना है। इसलिए जो उसमें हैं, बने रहें। बाकी लोग नई खरीद कर सकते हैं। तथास्तु में उसी कंपनी का नया लेखा-जोखा…औरऔर भी

निवेश कोई सबसे ज्यादा रिटर्न पाने की दौड़ नहीं है। यह तो वह तरीका है जिसमें आप अपने धन को सुरक्षित रखते हुए अधिकतम रिटर्न कमा सकते हैं। जिस कंपनी को आप जानते हैं, उसके उत्पादों व सेवाओं से परिचित हैं, उसमें निवेश ज्यादा सुरक्षित रहेगा, बनिस्बत उस कंपनी के, जिसको न आप जानते हैं और न जिसका धंधा आपको समझ में आता है। जैसे, डाबर या कॉलगेट पामोलिव? तथास्तु में आज एक ऐसी ही परिचित कंपनी…औरऔर भी

निवेश का अपना-अपना नज़रिया। सभी लॉन्ग टर्म की बात करते हैं। लेकिन लॉन्ग टर्म मतलब कितना? कहते हैं कि कोई शेयर दस साल नहीं रखना तो दस मिनट भी न रखें। असल बात है आपकी होल्डिंग क्षमता, जरूरत और लक्ष्य। जैसे, साल भर पहले 160 पर तीन साल में 235 तक पहुंचने लक्ष्य के साथ खरीदने को कहा गया पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन 90% बढ़कर 304 पर पहुंच गया है तो बेचकर निकल लें। अब आज का तथास्तु…औरऔर भी

पाप का घड़ा कब भरता है, पता नहीं। लेकिन बिजनेस चैनलों के एनालिस्टों और एंकरों के पाप बढ़ते जा रहे हैं। जिस निवेशक को जागरूक करने की बात करते हैं, डीलिंग-सेटिंग करके वे उसका ही शिकार करवाते हैं। सीएनबीसी के एक ऐसे ही स्टार एंकर अकूत कमाई के बाद फिलहाल आराम फरमा रहे हैं। अफसोस कि ‘आवाज़’ में भी ऐसी हाथ-सफाई चल रही है। इन चैनलों का शिकार होने से बचें। आज तथास्तु में एक लार्जकैप कंपनी…औरऔर भी

बढ़ने का नाम ज़िंदगी। जो ठहरा, वो निपटा। कंपनियों पर भी यह बात बराबर लागू होती है। धंधा लगातार बढ़े तो उसके शेयर चढ़ते हैं। किसको पता था कि फरवरी 1993 में 95 पर जारी इनफोसिस के शेयर इक्कीस साल बाद 4150 तक जानेवाले हैं। वो भी पांच बार 1:1 और एक बार 3:1 में बोनस शेयर के बाद। इसलिए यहां महंगा सस्ता 52 हफ्ते के उच्चतम/न्यूनतम से नहीं तय होता। तथास्तु में एक और संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

उम्मीदें बनती हैं कि आनेवाले पांच-दस साल में कंपनी जमकर मुनाफा कमाएगी। वो उसके शेयर भाव में जज्ब हो जाती है। इसी तरह समग्र रूप से देश की अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास की उम्मीद बनती है तो शेयर बाज़ार चढ़ जाता है। इससे कंपनियों के बाज़ार मूल्य और उन्हें फिर से बनाने की लागत में अंतर आ जाता है तो नए निवेश को प्रेरणा और अल्पकालिक विकास को गति मिलती है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

एफडी में धन लगाते हैं तो मकसद से। सोना खरीदते हैं तो मकसद से। लेकिन शेयर बाज़ार से या तो डरकर भागते हैं या सोचते हैं कि यहां धन को दोगुना-चौगुना दस गुना करना है। शेयरों में निवेश का यह नज़रिया सरासर गलत है। हमें शेयरों में निवेश हमेशा मकसद से जोड़कर करना चाहिए। लक्ष्य पूरा तो बगैर ज्यादा लालच किए बेचकर मकसद के लिए सुरक्षित एफडी या अन्य माध्यम में रख दिया। अब आज का तथास्तु…औरऔर भी

नाम और साख बनाने में सालों लग जाते हैं। इसलिए धंधे में नाम या ब्रांड की बड़ी अहमियत है। लेकिन निवेश करते वक्त केवल नाम के पीछे भागना नुकसानदेह हो सकता है। विजय माल्या और किंगफिशर जैसे किस्से बड़े आम हैं। इसलिए नामी कंपनियों की हकीकत समझने के बाद ही फैसला करें। नाम कभी-कभी कंपनी के संकट से निकलने का भरोसा दिलाता है तो अक्सर भ्रम भी पैदा कर देता है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी