हम वर्तमान की जमीन पर खड़े होकर, उसी के फ्रेम में रहकर भविष्य का अनुमान लगाते हैं। भविष्य में यह फ्रेम खुद कैसे बदल जाएगा, इसका पता नहीं रहता। इसीलिए बड़े-बड़े विशेषज्ञों तक की भविष्यवाणियां बाद में हास्यास्पद साबित हो जाती हैं।और भीऔर भी

धरती गोल है। लगती है चौरस। इस तीन आयामी दुनिया में सब कुछ ऐसा ही लगता है। लेकिन जो लगता है, वही सच नहीं होता। सच तक पहुंचने के लिए चौथी विमा या आयाम यानी समय को फ्रेम में लाना जरूरी है।और भीऔर भी

कभी-कभी, जिसे हम किस्मत कहते हैं, वह हमारा इंतजार उस नुक्कड़ पर कर रही होती है जिसकी तरफ हम झांकना बंद कर चुके होते हैं। इसलिए उससे मुलाकात के लिए बने-बनाए फ्रेम को तोड़ते रहना पड़ता है।और भीऔर भी