इंसान की नज़र की सीमा है कि वह रैखिक ही देख सकता है। इसलिए रैखिक ही सोचना सहज है। लेकिन हकीकत यह है कि इस दुनिया में ही नहीं, पूरी सृष्टि में हर चीज का आकार आखिरकार गोल है। इसलिए सहज सोच अक्सर कारगर नहीं साबित होती।और भीऔर भी

अपने-आप में तो हर कोई पूर्ण है। जानवर भी पूर्ण, इंसान भी पूर्ण। ओस की बूंद तक एकदम गोल। प्रकृति ने संतुलन का नियम ही ऐसा चला रखा है। पर बाहर से देखो तो सब कुछ अपूर्ण। गुमान तोड़कर देखने पर ही यह अपूर्णता नज़र आती है।और भीऔर भी

हम बहुत सारी चीजों को देखते हुए भी देख नहीं पाते क्योंकि उन्हें हम सरसरी व सामान्य नज़र से देखते हैं। हमें उनकी विशिष्टता का बोध नहीं होता। उसी तरह जैसे सब कुछ समान होते हुए भी घोड़े, कुत्ते और चूहे को अलग-अलग दिखता है।और भीऔर भी

समय के साथ चलो तो चीजें बड़ी स्थिर या धीमी दिखती हैं। कहीं कोई खटका नहीं। सब कुछ सामान्य गति से चलता है। लेकिन समय से पीछे छूट जाओ तो सब कुछ तेज़ी से भागता हुआ नज़र आता है।और भीऔर भी

जो भी मंत्र, तंत्र या वस्तु हमारी बुद्धि व दृष्टि को तेज करती हो, उसका स्वागत है। लेकिन नजर को धुंधला और शक्ति को धूमिल करनेवाली हर चीज त्याज्य है क्योंकि वह किसी चालबाज का फेंका जाल है।और भीऔर भी