पैसा और पूंजी
जिसके पास पैसा है, उसके पास पूंजी हो, जरूरी नहीं। जिसके पास पूंजी है, वह अमीर हो, जरूरी नहीं। पैसा उद्यम में लगता है तो पूंजी बनता है। दृष्टि सुसंगत बन जाए, तभी पूंजी किसी को अमीर बनाती है।और भीऔर भी
आंखों की दृष्टि
देखती हैं आंखें, दिखाते हैं हम। माइक्रोस्कोप से देखा तो असंख्य बैक्टीरिया नजर आ जाते हैं। टेलिस्कोप से देखा तो दृष्टि से ओझल सितारा दिख जाता है। असली सच नंगी आंखों से देखे गए सच से बहुत बड़ा होता है।और भीऔर भी
सार-निस्सार
हम सभी मूलतः साधु स्वभाव के हैं। औरों की बातों से अपने काम का ‘सार’ ही ग्रहण करते हैं। लेकिन आलोचना को बिना विचलित हुए सुनना और गुनना जरूरी है क्योंकि अक्सर उनसे नई दृष्टि मिल जाती है।और भीऔर भी
खोटी है आत्म-मुग्धता
आप अपनी बनाई चीज पर फिदा हैं। आपकी निगाह में बहुत कीमत है उसकी। लेकिन इससे क्या होता है? कीमत तो दूसरे की निगाह में होनी चाहिए। दूसरा ही तय करेगा कि आपकी चीज की औकात क्या है, आप नहीं।और भीऔर भी
संतुलन कर्म व सोच का
अगर आपके पास विचार ही विचार है, लेकिन आप हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तो आप दिवास्वप्न में जी रहे हैं। आप अगर बिना किसी विचार या दृष्टि के काम किए जा रहे हैं तो वह एक दिन दुःस्वप्न साबित होगा।और भीऔर भी