किसी अच्छी चीज की सप्लाई बंधी-बंधाई हो और लोग-बाग उसे खरीदने लगें तो उसके भाव बढ़ जाते हैं। यह बहुत मोटा-सा, लेकिन सीधा-सच्चा नियम है। लेकिन जब खरीदने के काम में निहित स्वार्थ वाले खिलाड़ी लगे हों और लोगबाग उधर झांक भी नहीं रहे हों तो यह नियम कतई नहीं चलता। हमारे शेयर बाजार में यही हो रहा है। इसका एक छोटा-सा उदाहरण बताता हूं। गुरुवार को कोलकाता से बाजार के एक उस्ताद का एसएमएस 12 बजकर 23 मिनट पर आया कि गार्डन सिल्क खरीद लो। मैंने सोचा कि देखेंगे। करीब पौने दो बजे उनका फोन आया कि खरीदा या नहीं। मैंने कहा नहीं तो बोले, अब मत खरीदना क्योंकि यह 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुका है।
कमाल की बात यह है कि जब उन्होंने बताया था, तब यह 85 रुपए के आसपास था और पौने दो बजे तक यह 94 रुपए के करीब पहुंच चुका था। मैने पूछा कि ऐसा कैसे हुआ तो उनका कहना था कि एक फंड हाउस की खरीद साढ़े बारह बजे होनी थी। उसी के चलते गार्डन सिल्क इतना बढ़ा है। हालांकि गार्डन सिल्क कमजोर शेयर नहीं है क्योंकि उसकी बुक वैल्यू 129.75 रुपए है, जबकि ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 12.51 रुपए है और इस भाव पर शेयर महज 7.03 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।
लगता है कि जब सारा खेल बड़े खिलाड़ियों और ऑपरेटरों का ही है तो फंडामेंटल के आधार पर निवेश की सलाह का क्या मतलब? अगर रिटेल निवेशकों की भारी संख्या बाजार में सक्रिय होती तो यकीनन बाजार में अच्छाई और मांग-सप्लाई का नियम चलता। अभी तो हर शेयर चंद लोगों के इशारे पर उठता-बैठता है। लेकिन इस चक्कर में हमारे-आप जैसे लोग निवेश नहीं करेंगे तो रिटेल निवेशकों की संख्या बढ़ेगी नहीं और यह संख्या नहीं बढ़ी तो निहित स्वार्थों का खेल चलता रहेगा। इसे ही अंग्रेजी में कैच-22 की स्थिति कहते हैं। इसे हिंदी में सांप-छछूंदर की गति नहीं कहा जा सकता।
इस सूरते-हाल में हमें लगता है कि कुछ दिन या महीनों के निवेश में हम ज्यादातर गच्चा खाएंगे। लेकिन कम से कम साल-दो साल की सोचकर चलें तो शेयरों में निवेश से कंपनियों की समृद्धि में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं। आज खास चर्चा सुज़लॉन एनर्जी की। शुक्रवार 27 अगस्त को यह साल भर के न्यूनतम स्तर 47.40 रुपए पर पहुंच गया और बंद हुआ है 47.70 रुपए पर । महीने भर पहले यह 60 रुपए के आसपास था। इस दौरान ऐसा क्या हुआ जो यह अब तलहटी पर है? असल में 13 अगस्त को उसने पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं जिसमें पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में उसकी आय घटकर करीब आधी (4171.35 करोड़ से 2404.44 करोड़) और घाटा बढ़कर दोगुना (452.67 करोड़ से 912.22 करोड़) हो गया है।
लेकिन यह भी सच है कि उसकी कार्यशील पूंजी की जरूरत में लगभग 950 करोड़ रुपए की कमी की है और 10,690 करोड़ रुपए के कर्ज का इंतजाम पूरा हो गया है। उसके पास 7938 करोड़ रुपए के ऑर्डर हाथ में हैं। कंपनी ने इसी जून महीने में राइट्स इश्यू से 1188 करोड़ रुपए जुटाए हैं जिसमें उसने अपने शेयर 63 रुपए (2 रुपए अंकित मूल्य पर 61 रुपए का प्रीमियम) पर जारी किए थे। सुज़लॉन एनर्जी भारत की उभरती बहुराष्ट्रीय कंपनी है। वह दुनिया में विंड पावर टरबाइन की तीसरी सबसे बड़ी निर्माता है। 25 देशों में सक्रिय है।
जानकारों का आकलन है कि अगले वित्त वर्ष 2011-12 में कंपनी का ईपीएस घाटे से उबरकर कम से कम 3 रुपए रुपए रहेगा और इसका शेयर 100 रुपए तक जा सकता है। कंपनी के शेयर बीएसई (कोड – 532667) और एनएसई (कोड – SUZLON) दोनों में लिस्टेड हैं। इसकी बुक वैल्यू 36.49 रुपए है। कंपनी के प्रवर्तक तुलसी आर तांती हैं जिन्हें अच्छा-खासा तंत्री माना जाता है।