एक तरफ वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बुधवार को लोकसभा में पक्ष-विपक्ष के सांसदों को समझा रहे थे कि जीएसटी (माल व सेवा कर) के आने से किस तरह पेट्रोलियम पर ज्यादा कराधान से लेकर आम आदमी को परेशान कर रही महंगाई तक की समस्या हल हो जाएगी, वहीं दूसरी तरफ राजधानी में ही राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति ने अपनी बैठक के बाद जीएसटी से जुडे संविधान संशोधन विधेयक के मौजूदा प्रारूप को खारिज कर दिया।
समिति के अध्यक्ष व पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने संवाददाताओं को बताया कि, “जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन का प्रारूप विधेयक अपने मौजूदा स्वरूप में राज्यों को मंजूर नहीं है।” असल में इस प्रारूप में राज्यों से संबंधित मामलों में केंद्रीय वित्त मंत्री को वीटो पावर दी गई है। यानी, वे राज्यों के किसी भी फैसले की जगह अपना फैसला लागू कर सकते हैं। राज्यों का कहना है कि यह प्रावधान देश के संघीय स्वरूप की भावना के खिलाफ है।
दासगुप्ता का कहना था कि राज्य इसे अपनी वित्तीय स्वायत्तता में अनुचित दखल मानते हैं। उन्हें विधेयक में जीएसटी परिषद और जीएसटी विवाद प्राधिकरण से जुड़े कई प्रावधानों पर भी एतराज है। उधर लोकसभा में प्रणब मुखर्जी यही कहते रहे कि अगले वित्त वर्ष से इस नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को लाने के राज्यों का सहयोग जरूरी है। उन्होंने कहा कि जिन सभी राजनीतिक पार्टियों ने आम आदमी की तकलीफ और महंगाई पर गंभीर चिंता जताई है, वे जीएसटी को तहेदिल समर्थन देकर इस चिंता को असल कार्रवाई में बदल सकते हैं। इसमें सभी की जीत है।
प्रणब दा ने अपनी तरफ से सफाई दी कि राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति की तरफ से उठाए गए मसलों पर सावधानी से विचार करने के बाद केंद्र सरकार जीएसटी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने को तैयार हो गई है। हमने पुरानी सोच से पीछे हटकर इसे अपनाने के दौर में दोहरी दरों की व्यवस्था को भी स्वीकार कर दिया है। अभी 99 चीजें वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) से मुक्त है। राज्य इन्हें अपने जीएसटी से भी मुक्त रखना चाहते हैं। केंद्र ने इसे मान लिया है। इसी तरह सोना-चांदी समेत बहुमूल्य धातुओं जैसे अन्य जिंसों पर राज्य व केंद्र का जीएसटी 1-1 फीसदी रखा गया है। यह भी तय हो चुका है कि दस लाख रुपए तक कारोबार वाले डीलरों को राज्य व केंद्र दोनों के जीएसटी से मुक्त रखा जाएगा। यह छूट सेवाओं के कारोबार पर भी मिलेगी।