स्पीक एशिया अपनी जिस साप्ताहिक ई-पत्रिका सर्वेज टुडे के सब्सक्रिप्शन के नाम पर अपने पैनलिस्टों से साल के 11,000 और छह महीने के 6000 रुपए लेने का दावा करती है, वैसी उसकी कोई ई-पत्रिका है ही नहीं। फिर भी कंपनी यह दावा इसलिए करती है ताकि उसके फ्रेंचाइजी या एजेंटों को यहां जमा की गई रकम को सिंगापुर भेजने का वाजिब आधार मिल जाए। असल में ये एजेंट व फ्रेंचाइजी अभी तक खुद को सर्वेज टुडे का वितरक बताकर ही पत्रिका की ग्लोबल वितरक हरेन वेंचर्स पीटीई लिमिटेड (एचवीपी) को धन भेजते रहे हैं। वैसे पत्रिका की बात तो छोड़िए, स्पीक एशिया के पास सर्वे का अपना कोई सॉफ्टवेयर तक नहीं है। वह सर्वेमंकी नाम के मुफ्त ऑनलाइन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है।
हमने मुंबई में स्पीक एशिया के एक फ्रेंचाइजी, स्पीक मुंबई से जब ई-पत्रिका सर्वेज टुडे के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि अभी यह उपलब्ध नहीं है और इसके पुराने अंक भी वे नहीं दिखा सकते। लेकिन दो हफ्ते में वेबसाइट पर इसका फार्मेट मिल जाएगा। बता दें कि मुंबई व नवी मुंबई में ही स्पीक एशिया के 15 से ज्यादा फ्रेंचाइजी हैं। हमने गोरखपुर, लखनऊ, मुंबई, लुधियाना, दिल्ली व मेरठ में बिखरे करीब दर्जन भर ‘स्पीकएशियंस’ से पता किया तो उनका कहना था कि उनका वास्ता व दिलचस्पी हर हफ्ते मिलनेवाले सर्वे और उसके रिवॉर्ड प्वॉइंट में है, न ही सर्वेज टुडे पत्रिका में। इनमें से किसी एक भी नहीं बताया कि उसने इस ई-पत्रिका का कोई अंक देखने को मिला है।
वैसे दुख की बात यह भी है कि स्पीक एशिया ने आधिकारिक तौर पर सूचित किया है कि वह अपने पैनलिस्टों को 6 जुलाई से 19 जुलाई 2011 तक कोई सर्वे नहीं भेजेगी क्योंकि वह अपनी वेबसाइट को एकदम नया लुक दे रही है। मौजूदा वेबसाइट से नए लुक वाली वेबसाइट पर जाने का काम रविवार, 10 जुलाई को किया जाएगा। पैनलिस्टों को नए सर्वे बुधवार, 20 जुलाई से मिलने लगेंगे। बीच की अवधि में छूट गए सर्वे के लिए सभी को तय अवधि में दो हफ्ते का एक्सटेंशन दिया जाएगा। वैसे पिछले करीब दो महीनों से स्पीक एशिया अपने पैनिलस्टों को रिवॉर्ड प्वाइंट के एवज में उनके बैंक खाते में धन जमा कराने के बजाय गिफ्ट वाउचर भेज रही है। फिलहाल वो प्रोवोग के गिफ्ट वाउचर बांट रही है। साथ ही उसने लोगों को लैपटॉप, टेलीविजन व सेलफोन देने का वादा देकर भी बांधे रखा है। स्पीक एशिया के भारत में घोषित तौर पर 19 लाख पैनलिस्ट हैं।
गौरतलब है कि आप स्पीक एशिया के सर्वे में तभी भाग ले सकते हैं जब आप उसके स्टैंडर्ड या प्रीमियम पैनलिस्ट हैं और आपके पास ई-पत्रिका के सब्सक्रिप्शन का समय बचा हुआ है। स्टैंडर्ड पैनलिस्ट बनने के लिए सर्वेज टुडे के 26 अंकों के लिए 120 रिवॉर्ड प्वाइंट (6000 रुपए) और प्रीमियम पैनलिस्ट बनने लिए पत्रिका के 52 अंकों के लिए 220 रिवॉर्ड प्वाइंट (11,000 रुपए) क्रेडिट कार्ड वगैरह के जरिए देने पड़ते हैं। कंपनी का कहना है कि दो अन्य तरीकों से भी लोग मुफ्त में पैनलिस्ट बनकर उसके सर्वे में भाग ले सकते हैं। लेकिन वे दोनों ही तरीके इतने दुरूह हैं कि उन्हें अपनाया नहीं जा सकता।
नोट करने की बात यह है कि कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर साफ-साफ लिख रखा है कि आप स्पीक एशिया के पैनलिस्ट तभी तक रह सकते हैं और उससे रिवॉर्ड प्वॉइंट तभी तक हासिल कर सकते हैं, जब तक ई-पत्रिका सर्वेज टुडे का सब्सक्रिप्शन चालू है। इसलिए अधिक से अधिक 12 महीने बाद आप फिर से ई-पत्रिका को सब्सक्राइब करने के बाद ही उसके पैनलिस्ट बनकर साप्ताहिक सर्वे से कमाई कर सकते हैं। कंपनी का कहना है कि अगर आपको रिवॉर्ड प्वॉइंट कमाते रहना है तो ई-पत्रिका का सब्सक्रिप्शन खत्म होने से कम से कम एक हफ्ते पहले रिन्यू करवा लेना होगा।
अंत में एक छोटी-सी सूचना जो कंपनी ने आधिकारिक तौर पर एक दस्तावेज के रूप में उपलब्ध करा रखी है। इसके मुताबिक भारत में कृतंज मैनेजमेंट एंड एलायड सर्विसेज स्पीक एशिया की ई-पत्रिका सर्वेज टुडे की मास्टर डिस्ट्रीब्यूटर है। इस दस्तावेज के अनुसार 24 मासिक अंकों का सब्सक्रिप्शन 220 डॉलर 11,000 रुपए है। कमाल की बात है कि कंपनी अन्य जगहों पर 52 साप्ताहिक अंकों के लिए 11,000 रुपए लेने की बात करती है!! मास्टर डिस्ट्रीब्यूटर ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूटर हरेन वेंचर्स को रकम भेजता है और सामान्य फ्रेंचाइजी या डिस्ट्रीब्यूटर भारत में जमा धन कृतंज मैनेजमेंट एंड एलायज सर्विसेज के बैंक खातों में डालते हैं। हर डिस्ट्रीब्यूटर को एडवांस सिक्यूरिटी के रूप में मास्टर डिस्ट्रीब्यूटर के पास तीन लाख रुपए जमा कराने होते हैं। सोचिए, केवल डिस्ट्रीब्यूटरों की सिक्यूरिटी डिपॉजिट से कृतंज ने कितने करोड़ों जमा कर लिए होंगे!!
स्पीकएशिया द्वारा डिस्ट्रीब्यूटर/फ्रेंचाइजी के साथ किया गया जानेवाला अनुबंध: SpeakAsia franchisee agreement
ईश्वर हम सबको सद्बुद्धि दे और ऐसे धोखेबाज़ लोगों से सावधान रहने की और लोगों को जागरूक बनाने की।