उनको इतनी मिर्ची लग जाएगी, अंदाजा नहीं था। दुख इस बात का है कि छल-प्रपंच में लगी स्पीक एशिया की तरफदारी ऐसे लोग कर रहे हैं जो बड़ी ईमानदारी व मेहनत से घर-परिवार चलाते हैं। मानस कुमार भले ही स्पीक एशिया के घोटालेबाज टीम से सदस्य हों, लेकिन महेश, हरप्रीत, रंजीत, अजीत, धीरज रावत, नितेश और ‘बेनामी’ झलक तक हमारे-आप जैसे लोग हैं जो अपनी व अपनों की जिंदगी में खुशियां बिखेरना चाहते हैं। झलक की यह बात सुनकर वाकई दिल भर आया कि, “अरे, एक आदमी अपनी सैलरी में अपना घर बड़ी मुश्किल से चलाता है। सोचता है, कहीं से कोई इनकम का जुगाड़ हो जाए तो कर लेता है कोई स्मार्ट वर्क। वो उसका खुद का फैसला होता है, करना या नहीं करना।”
दिक्कत यह है कि इसी आदमी को स्पीक एशिया की हरेन्द्र कौर उर्फ हरेन अपने चंगुओं की फौज के साथ जिबह करने निकली हैं। हम इनके बहकावे और अपनी लालच में इतने अंधे हो जाते कि इनका परचम ऐसे ढोने लगते हैं जैसे वो राष्ट्र के झंडे से भी बड़ा हो। शशिकांत जैसे लोग जोश से कह बैठते हैं – जीत के दिखलाएंगे हम मिलकर हर जंग, स्पीकएशियंस ही होते हैं जांबाज और दबंग। अरे! कालिदास तो जिस डाल पर बैठे थे, उस डाल को काट रहे थे। आप तो अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हो और वो भी अपने लूटनेवालों की जय-जयकार करते हुए! आप धन्य हैं और आपको धिक्कार है।
और मानस कुमार जी, जो बातें आप बता रहे हैं, उन्हें मैं खुद 16 मई को आयोजित प्रेस कांफ्रेस में देख-समझ चुका हूं। इन आंकड़ों से आप मुझे नहीं छल सकते। मुझे तो स्पीक एशिया के बारे में लिखने में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। मेरा काम तो देश की उस 41.03 फीसदी आबादी को वित्तीय रूप से साक्षर बनाना है जो हिंदी में बोलती, समझती और सोचती है। वित्तीय व आर्थिक पत्रकारिता में अपने बीस सालों के अनुभव से मैं जानता हूं कि उद्योगों में ही वैल्यू क्रिएशन होता है और इक्विटी बाजार ही निवेशकों को अधिकतम रिटर्न दे सकता है। लेकिन इस रिटर्न की भी चक्रवृद्धि दर 20-30 फीसदी से ज्यादा कभी नहीं हो सकती।
ऐसे में जो कोई भी 120-130 फीसदी रिटर्न का दावा करता है, वो ठग है। मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनियां इसी तरह लोगों को हलाल करती हैं। अतीत में बार-बार यह बात साबित हो चुकी है। लेकिन अपने यहां कानून लचर होने के कारण वे राक्षस रक्तबीज की तरह फिर-फिर उग जाती हैं। कुछ साल पहले उड़ीसा जैसे गरीब राज्य के आम लोगों में बैंकों के जरिए बचत स्कीम चलाई गई, जिसमें कहा गया कि आप 10,000 रुपए जमा करेंगे तो आपको हर महीने 1000 रुपए मिलेंगे और साल के अंत में आपका 10,000 रुपए का मूलधन भी वापस हो जाएगा। बस इसमें हर जमाकर्ता को दो नए जमाकर्ता पकड़ने थे। स्कीम का पर्दाफाश हुआ तो बैंक खाते जब्त हो गए। जमाकर्ताओं को जारी किए गए एडवांस चेक बाउंस होने लगे तो जालसाजों ने कहा कि फिक्र मत करो, हम तुम्हें कैश देंगे। बाद में पता चला गया कि उन लोगों ने जितने भी नोट बांटे थे, वे सारे के सारे नकली थे।
स्पीक एशिया का बिजनेस मॉडल कहने-दिखाने को कुछ और है और खाने को कुछ और है। जैसे, वे कहते हैं कि वे तो ऑनलाइन सर्वे मैगजीन के 52 अंकों के लिए लोगों से 11,000 रुपए लेते हैं। इसमें वे इन पैनलिस्टों को ट्रेनिंग भी देते हैं। उनका कहना है कि उनके पैनलिस्ट तीन तरीके से कमाते हैं – सर्वे में भागीदारी से, सब्सक्रिप्शन की रेफरल आय से और उत्पादों के रेफरल से। फिर इसके आगे रिवॉर्ड प्वाइंट्स का गठित चलता है।
स्पीक एशिया के ‘चांदमार्का’ प्रतिनिधि नारायणन राजगोपालन ने 16 मई को प्रेस कांफ्रेस में दावा किया था कि उनके 19 लाख पैनलिस्ट में से अधिकांश मध्य वर्ग के हैं। आप और हम भी भारत के विशालकाय मध्य वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। मुझे आप दिल पर हाथ रखकर बताइए कि आप साल भर में पत्र-पत्रिकाओं पर कितना खर्च करते हैं। क्या आप किसी सर्वे से जुड़ी ऑनलाइन पत्रिका के लिए साल भर में 11,000 रुपए खर्च करेंगे? लेकिन स्पीक एशिया कहती है – हां। लोग खर्च कर रहे हैं और उसका मूल धंधा भारत में यह ई-पत्रिका ही बेचने का है। लेकिन हम-आप जानते हैं कि हम स्पीक एशिया की पत्रिका इसीलिए सब्सक्राइब करते हैं ताकि रेफरल व सर्वे से हम जितना निवेश करते हैं, उससे ज्यादा कमा सकें।
प्रेस कांफ्रेंस मे एक दिन पहले ही स्पीक एशिया के सीईओ बननेवाले मनोज कुमार ने कहा था कि सर्वे में भागीदारी के लिए कोई पैसा देने की जरूरत नहीं है, न ही उनकी ई-पत्रिका को सब्सक्राइब करने की जरूरत है। चलिए मान लेते हैं। आपने बताया कि मई 2010 में काम शुरू करने के बाद स्पीक एशिया ने भारत में तीन तिमाहियों में 8.05 करोड़ डॉलर (365 करोड़ रुपए) कमाए हैं और इसमें से 5.20 करोड़ डॉलर (235 करोड़ रुपए) 12 लाख पैनलिस्टों में बांट दिए हैं।
यहीं पर राजोगोपालन का वह स्लाइड आपको दिखाना चाहता हूं जिसमें उन्होंने बताया था कि पैनलिस्टों की गंभीरता सुनिश्चित करने के लिए स्पीक एशिया हर पैनलिस्ट से छह महीने के लिए 5000 रुपए और 12 महीने के लिए 10,000 रुपए जमा करवाती है। मान लीजिए 19 लाख पैनलिस्ट में से सात लाख मुफ्त के पैनलिस्ट थे तो जिन 12 लाख पैनलिस्टों के बीच कंपनी ने 235 करोड़ रुपए बांटे हैं, उनसे कंपनी ने छह महीने की दर से कम से कम 600 करोड़ रुपए कमाए होंगे। यह सीधा-सा गणित है जिसे कोई भी समझ सकता है। कहां गए पैनलिस्टों के बाकी 365 करोड़ रुपए? क्या कोई मनोज कुमार या राजगोपालन या हरेन कौर इसका जवाब देगा?
बात लंबी है, जगह छोटी है। मेरा एक मोटा-सा मानक है जो खटाखट बेशर्मी से झूठ बोल देता हो, न तो वह इंसान सच्चा हो सकता है और न ही उसकी कंपनी। उस दिन प्रेस कांफ्रेंस में बाद में मनोज कुमार पैनलिस्टों से जमा लेने की बात से साफ मुकर गए, जबकि राजगोपालन के स्लाइड में यह बात प्रमुखता से रखी गई है। किसी ने उनसे पूछा कि बांग्लादेश में स्पीक एशिया के कुछ लोगों को चंद दिन पहले गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बिना पलक झपकाए कहा कि बांग्लादेश में स्पीक एशिया की कोई सक्रियता नहीं है। उसी दिन शाम को स्पीक एशिया की तरफ से जो आधिकारिक विज्ञप्ति जारी हुई, उसमें बताया गया है कि स्पीक एशिया की रणनीतिक उपस्थिति मलयेशिया, इंडोनेशिया, भारत, वियतनाम, फिलीपींस, बांग्लादेश और सिंगापुर में है।
आप ईमानदारी से देखेंगे तो पाएंगे कि स्पीक एशिया न तो सर्वे कंपनी है, न डायरेक्ट मार्केटिंग कंपनी और न ही ई-पत्रिका की विदेशी पब्लिशर। उनकी नजर उन आम भोलेभाले भारतीयों पर है जिनके पास थोड़ी-बहुत बचत होने लगी है और वे उसे जल्दी से जल्दी बढ़ाने के लिए बेताब हैं। स्पीक एशिया उन्हें अपने ही भाई-बंधुओं को जोड़कर लाने को कहती है। उनसे सब्सक्रिप्शन या जमा के नाम पर धन लेती है। उसमें से एक हिस्सा हर ऊपरवालों को मिलता रहता है। सबसे ऊपर जो है, उसे सबसे ज्यादा मिलता है। तीसरी-चौथी कड़ी तक लोगों की कमाई होती रहती है। बाकी के लोग जो भी कमाई होती है, उसे फिर से ज्यादा कमाई के चक्कर में स्पीक एशिया में ही लगा देते हैं।
अरे भाई! यह तो देखिए कि आप अपनों की कमाई लूटकर किसकी जेब भर रहे हैं? इस तरह की एमएलएम कंपनियों की ज्यादा से ज्यादा उम्र पांच-छह साल होती है। किसी भ्रम के शिकार न बनिए। निवेश के सही माध्यमों में अनुशासन से बचत का नियोजन कीजिए। अनजाने में लोगों को मारकर उनकी जेब काटने से बाज आइए क्योंकि इससे आपको ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। वो जिसके नाम पर आप – जो चिड़िया नल बाज लड़ावा तो गोविंद सिंह नाम कहावा, का नारा लगा रहे हैं वो तो किसी दिन सिंगापुर में बैठी किसी रक्तपिपासु ड्रैकुला की तरह मौज कर रही होगी और यहां आपको रोने से फुरसत नहीं मिलेगी।
थोड़ा कहा ज्यादा समझना। मुझे स्पीक एशिया से कोई लेना-देना नहीं। न ही मुझे कहीं से कमाई करनी है। निःस्वार्थ सेवा में लगा हूं। कबीर व बुद्ध की परम्परा में यकीन रखता हूं। इस देश से भगत सिंह जैसी मोहब्बत करता हूं। आम आदमी हूं तो अपने लोगों का छला जाना बड़ी तकलीफ देता है। इसलिए इन तथाकथिक ‘स्पीक एशियंस’ का जवाब दे रहा हूं। अरे बंधुओं, पहले अपने घर के बन जाओ, समाज के बन जाओ, देश के बन जाओ, तब किसी संस्था के अलम्बरदार बनो। नहीं तो, बंदरों की तरह इस तरह उछलना-कूदना आपको शोभा नहीं देता।
अनिल जी चोर कि अम्मा सबसे ज्यादा चिल्लाती है, ये इन सब ने साबित कर दिया है दोस्तो इस वित्तिय उद्योग में हमें प्राय: एसे लोग पूरे वर्ष मिलते रहते हैं, जो अपनी मेहनत की कमाई, को ’किसी’ कम्पनी में लगाते हैं जो हर महिने दुगने चेक की बात करती हैं या दो लोग जोडये और उंट से उंट मिलाये..और न जाने कितनी काल्पनिक आय के प्रोप्रगेन्डे, अब जब हम इस पेशे में है जो वित्तिय परामर्श से जुडा है तो हमने सोचा क्यों न हम ही सही मार्गदर्शन की पहल करें, और अनिल जी ने इस बहस को जो अभी तक सिर्फ हमारे तक ही सीमित थी, को सार्वजनिक कर इसी दिशा में पहला प्रयास किया है, बाकि इतिहास को खुद को इसिलिए दोहराता कि हम उससे कुछ नहीं सिखते है ।
तो मुद्दे पर आते है, निवेश या बचत लाभ की ऐसी संभावना होती है जिसका मजबूत आधार होता हैं। बचत के नतीजे दिमागी क्षमता, कठोर परिश्रम, लगन और धैर्य की देन होती है, संयोग की नहीं। इस कठोर परिश्रम और सब्र के अच्छे नतीजे देर-सवेर आते ही आते हैं। यह किस्मत का नहीं, समझ, तर्क और सम्भावनाओं का सांईस है।
कम अक्लों ऑरकुट या फेसबुक पर जिसके 150 से उपर दोस्त होते उसे क्या मानते हो? जो भी हो जेनुइन तो नहीं मानते हो, और यहॉं खुशफहमी या खुदकुशी।
ये डेटा देखिये कि अगर MLM का सब्सक्रिबर MLM LIFE CYCLE में मात्र दो (2) की रेफरल ही लाये
Month Total Subscriber FRESH Subscriber
Month 1 1 1
Month 2 3 2
Month 3 6 4
Month 4 12 8
Month 5 24 16
Month 6 48 32
Month 7 96 64
Month 8 192 128
Month 9 384 256
Month 10 768 512
Month 11 1,536 1024
Month 12 3,072 2048
Month 13 6,144 4096
Month 14 12,288 8192
Month 15 24,576 16384
Month 16 49,152 32768
Month 17 98,304 65536
Month 18 1,96,608 131072
Month 19 3,93,216 262144
Month 20 7,86,432 524288
Month 21 15,72,864 1048576
Month 22 31,45,728 2097152
Month 23 62,91,456 4194304
Month 24 1,25,82,912 8388608
Month 25 2,51,65,824 16777216
Month 26 5,03,31,648 33554432
Month 27 10,06,63,296 67108864
Month 28 20,13,26,592 134217728
Month 29 40,26,53,184 268435456
Month 30 80,53,06,368 536870912
तीस महिने में 80करोड, टाटा-बिडला-रिलायंस तो चूक गये बेवकूफ थे जो सालो लग गये ब्रांड बनने में इतना बडा तंत्र होते हुये भी ये मैथ्मेटिक किसी को सुझी ही नहीं, बस आप लोग हो स्मार्ट! एलियन आप या ये लोग?
कौन सा सर्वे,हॉ बीमा कंपनीयों के कॉरपोरेट एजेण्टों के फोन आते थे, जिसमें उनके सर्वे रिजल्ट (जिसका सर्वे हमें तो कभी आया ही नही) में फ़्री गिफ्ट के हकदार होते है, जिसे पाने के लिए एक लाख का बिमा करो, फिर गिफ्ट जाने कहॉ ? जान लिजिये 92% सर्वे पेड होते हैं,कौन डेटा लेने जाता है। माफ करें देश का सबसे बडा सर्वे जनगणना, जैसे होती है सबको पता है, नहीं हो तो सुबह कि लोकल ट्रेन में आध्यापकों को फ़िगर भरते दिख लिजिये।
धन्यवाद गुरु जी