स्पीक एशिया का सिंगापुर में मुख्य बैंक खाता फ्रीज हो चुका है। भारत में उसका अपना कोई पक्का पता-ठिकाना है नहीं तो उसके अपने नाम में कोई बैंक खाता भी नहीं है। लेकिन आयकर विभाग ने स्पीक एशिया से एजेंट, फ्रेंचाइजी या किसी अन्य रूप में जुड़े पूरे तंत्र की जांच शुरू कर दी है। बावजूद इसके स्पीक एशिया आसानी ने भारत का धंधा छोड़ने को तैयार नहीं है और अपने लगभग 20 लाख पैनेलिस्टों को शांत करने के लिए सफाई पर सफाई और दावे पर दावे किए जा रही है।
हाल ही में छपी एक खबर के मुताबिक आयकर विभाग ने करीब तीन हफ्ते की तहकीकात के बाद आईसीआईसीआई बैंक और आईएनजी वैश्य को पत्र लिखकर भारत में उन पंजीकृत फर्मों की जानकारी मांगी है जो स्पीक एशिया को भारत से धन इकट्ठा करके सिंगापुर भेजने में मदद करती रही हैं। मनीलाइफ की इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि स्पीक एशिया भारत से धन बाहर भेजने के लिए मुख्य रूप से तीन फर्मों के खातों का इस्तेमाल करती रही है। ये फर्में हैं – ट्यूलिसयट टेक प्रा. लिमिटेड, कृतंज मैनेजमेंट और स्टार एंटरप्राइसेज। इसमें से ट्यूलिसयट का बैंक खाता आईसीआईसीआई बैंक में है।
इन फर्मों को अन्य कई बैंकों में खुलवाए गए कम से कम 20 अन्य फर्मों के खातों से धन मिलता था। इन बैंकों में सिटी बैंक, इलाहाबाद बैंक, यस बैंक, एचडीएफसी बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और एक्सिस बैंक जैसे कई प्रमुख नाम शामिल हैं। पहले सैकड़ों करोड़ रुपए ट्यूलिसयट टेक व कृतंज मैनेजमेंट में बैंक खातों में एकत्र किए गए। फिर उन्हें सिंगापुर स्थित हरेन वेंचर्स के नाम ट्रासंफर कर दिया गया।
यह भी पता चला है कि रिजर्व बैंक ने 23 मई 2011 को सभी बैंकों को एक सर्कुलर भेजकर स्पीक एशिया के तौर-तरीकों के बारे में आगाह किया था और कहा था कि वे ऐसी स्कीमों से संबंधित खाते खोलने में सावधानी बरतें क्योंकि ये प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन एक्ट 1978 के अंतर्गत आती हैं। हालांकि इस सर्कुलर को रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक नहीं किया है। कुछ बैंकों ने अपनी तरफ से प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय से संबंद्ध फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) को स्पीक एशिया की गतिविधियों के बारे में कई संदिग्ध सौदों की रिपोर्टें (सस्पिशस ट्रांजैक्शन रिपोर्ट या एसटीआर) भी भेजी थीं। लेकिन एफआईयू ने इनको तवज्जो नहीं दी और स्पीक एशिया देश के करीब 20 लाख लोगों से करीब 500 करोड़ रुपए जुटाकर बाहर ले जाने में कामयाब हो गई।
इस बीच स्पीक एशिया ने अपनी वेबसाइट पर खुद पर लगे तमाम आरोपों की सफाई दी है। उसने कुछ सच स्वीकार किए हैं और कुछ से इनकार किया है और कुछ को आधी-अधूरी जानकारी देकर छिपा दिया है। जैसे उसने माना है कि स्पीक एशिया की होल्डिंग कंपनी ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में पंजीकृत कंपनी पोडियम रिंग इंटरनेशनल लिमिटेड है। उसने कहा है कि भले ही मीडिया में हल्ला मच रहा हो कि रिजर्व बैंक, सेबी, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) उसके कामकाज की जांच कर रहे हैं। लेकिन भारत सरकार के किसी भी विभाग ने अभी तक उससे संपर्क नहीं किया है।
स्पीक एशिया ने सफाई दी है कि वह भारत में पैनेलिस्टों से कोई कमाई नहीं कर रही है। बल्कि वह तो इन्हें सही सर्वे भरने और अन्य गतिविधियों के लिए रिवॉर्ड प्वॉइंट देती है। उसका कहना है कि वह कोई सामूहिक निवेश स्कीम (सीआईएस) नहीं चला रही है। वह अपनी ऑनलाइन पत्रिका – सर्वे टुडे के सब्सक्रिप्शन के रूप में छह महीने के 6000 और बारह महीने के 11,000 रुपए लेती है। यह कोई निवेश नहीं है। उसका बिजनेस मॉडल देश में कार्यरत करीब 4200 मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनियों जैसा कतई नहीं है।
उसने माना है कि सिंगापुर में 17 मई 2011 तक यूनाइटेड ओवरसीज बैंक (यूओबी) में उसके बैंक खाते थे। भारत में उसका कोई बैंक खाता नहीं है। अगस्त 2011 तक वह यहां अपना स्थाई दफ्तर बना लेगी। उसके बाद यहां बैंक खाता भी खुलवाएगी। एक चैनल की इस रिपोर्ट पर भी उसने सफाई दी है कि सिंगापुर में उसके मुख्यालय में महज नौ कर्मचारी, वो भी एकाउंटेंट कार्यरत हैं और उसका कोई सर्वर फार्म है ही नहीं। उसने कहा है कि सर्वर फार्म कभी भी कॉरपोरेट मुख्यालय में नहीं होते। सिंगापुर में उसके नौ ही कर्मचारी हैं क्योंकि इससे ज्यादा उसे जरूरत नहीं है।
अंत में, स्पीक एशिया कैसे सवालों को उठाकर आधा सच खा जाती है, इसका एक बानगी। सवाल – पैनलिस्टों द्वारा जमा कराई गई सब्सक्रिप्शन राशि किनके बैंक खातों में जमा कराई जाती है? क्या स्पीक एशिया ने सेबी से सुनिश्चित रिटर्न देनेवाली सीआईएस चलाने के लिए इजाजत ली है? इसका जवाब देते हुए वह सवाल के पहले व महत्वपूर्ण हिस्से पर चुप्पी साध गई है, जबकि दूसरे हिस्से पर कह दिया है कि वह कोई सीआईएस नहीं चला रही, बल्कि ई-पत्रिका लोगों को बेचती है।
स्पीक एशिया के अनुसार भारत में उसके तीन अधिकृत कानूनी सलाहकार हैं। इनके नाम हैं – ए के सिंह एंड कंपनी, फीनिक्स लीगल और कशिश इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ग्रुप। लेकिन सलाहकारों का कोई पता-ठिकाना या लिंक उसने अपनी साइट पर नहीं दिया है। जो भी हो, स्पीक एशिया को इस बात के लिए दाद देनी पड़ेगी कि उसने अपने खिलाफ उठे लगभग सारे सवालों का जवाब दिया है। आप इनसे संतुष्ट न हों तो मनोज कुमार से संपर्क कर सकते हैं जो भारत में स्पीक एशिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि मनोज कुमार से संपर्क करने का कोई सूत्र कंपनी ने नहीं घोषित किया है।