पहले नाम बड़ा था – गुजरात हैवी केमिकल्स लिमिटेड। अब छोटे में जीएचसीएल लिमिटेड हो गया है। 1988 से चल रही कंपनी है। रसायनों से लेकर टेक्सटाइल्स तक में सक्रिय है। 2009-10 में 1213.96 करोड़ रुपए की बिक्री पर 140.85 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में दिसंबर तक के नौ महीनों में उसकी बिक्री 1051.05 करोड़ और शुद्ध लाभ 91.18 करोड़ रुपए रहा है। अगर ठीक पिछले बारह महीनों की बात करें तो उसका ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 15.4 रुपए है।
कंपनी का 10 रुपए अंकित मूल्य का शेयर (बीएसई – 500171, एनएसई – GHCL) अभी 42.85 रुपए का है। इस भाव पर उसका शेयर मात्र 2.78 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू 118.46 रुपए है। इस लिहाज से इस शेयर के दोगुना होने की भरपूर गुंजाइश है। लेकिन दिक्कत यह है कि यह लंबे समय से 5 से कम पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। दिसंबर 2009 में 5 के पी/ई अनुपात पर था। उसके बाद कभी इससे ऊपर नहीं गया। हां, जनवरी 2007 में यह 22.90 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था और तब इस शेयर का भाव 174 रुपए तक गया था। अभी की बात करें को 52 हफ्ते का इसका उच्चतम स्तर 54.20 रुपए है जो इससे ठीक साल भर पहले 29 अप्रैल 2010 को हासिल किया था। इसने इस साल 10 फरवरी 2011 को 36.20 पर अपना न्यूनतम स्तर पकड़ा है।
धंधे की बात करें तो कंपनी के रसायन डिवीजन में मुख्यतः सोड़ा ऐश बनाया जाता है। साबुन, डिटरजेंट, ग्लास, सोडियम सॉल्ट और डाईज बनाने में सोड़ा ऐश का इस्तेमाल मुख्य अवयव के रूप में होता है। टेक्सटाइल, कागज, मेटलर्जिकल व डीसैलिनेशन उद्योगों में इसका उपभोग होता है। खास बात यह है कि अगले साल सोडा ऐश के दाम बढ़ने की पक्की संभावना है। कुछ ग्लास कंपनियां तो अभी से इस हिसाब के अपने धंधे का अनुमान लगाने लगी हैं। बता दें कि कंपनी डिटरजेंट, ग्लास निर्माण व अन्य संबंधित उद्योगों की जरूरत को पूरा करने के लिए सोडियम ट्राई प्रोपिफॉस्फेट, लीनियल एल्काइल बेंजीन, बोरैक्स, सोडियम सल्फेट, जियोलाइट, ऑप्टिकल ब्राइटनर व हाइड्रोजन पेरॉक्साइड जैसे रसायन भी बनाती है।
कंपनी की टेक्सटाइल डिवीजन में यार्न से लेकर शर्टिंग, बेडशीट व परदे वगैरह बनाए जाते हैं। उसकी दो स्पिनिंग इकाइयां तमिलनाडु में हैं। कंपनी इन उत्पादों को घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात भी करती है। होटलों, घरों और अस्पतालों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वो अपने टेक्सटाइल उत्पाद बनाती है। स्पिनिंग मिलों की जरूरत की बिजली वह खुद विंड पावर के जरिए बनाती है।
कंपनी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह रही है कि उसके ऊपर कर्ज का भारी बोझ था। मार्च 2010 में उसके ऊपर 1314 करोड़ रुपए का कर्ज था। अभी कितना है, यह पता नहीं। लेकिन अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दिसंबर 2010 तक के नौ महीनों में कंपनी ने ब्याज की मद में ही 83.94 करोड़ खर्च किए हैं। लेकिन कंपनी कर्ज का बोझ हल्का करने में जुट गई है। उसने बीते महीने 18 मार्च तक सात लाख डॉलर के विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड (एफसीसीबी) वापस खरीद लिए हैं और 80 लाख डॉलर के एफसीसीबी की ब्याज व मूलधन समेत अदायगी कर दी है। इस तरह उसने करीब 39.15 करोड़ रुपए का ऋण उतार दिया है।
कंपनी की कुल इक्विटी 100.19 करोड़ रुपए है। इसका 82.96 फीसदी पब्लिक के पास है और प्रवर्तकों के पास सिर्फ 17.04 फीसदी शेयर हैं। एफआईआई ने इसकी 0.24 फीसदी और डीआईआई ने 6.57 फीसदी इक्विटी खरीद रखी है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 74,031 है। इसके बड़े शेयरधारकों को एलआईसी (3.14 फीसदी), यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस (2.17 फीसदी), जे पी फाइनेंशियल (3.44 फीसदी) और इंडियानिवेश सिक्यूरिटीज (2.52 फीसदी) शामिल हैं।
कुल मिलाकर इतना साफ है कि जीएचसीएल कोई नए उभरते जमाने की कंपनी नहीं है। पारंपरिक धंधा है। दूसरे धंधा पीक पर हो, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है। बल्कि पिछले साल तो उसकी बिक्री घटी ही थी। कंपनी के पास रिजर्व ठीकठाक हैं। लेकिन कर्ज का बोझ भी ठीकठाक है। ऐसे में पूरा आगा-पीछा देखकर ही इसके स्टॉक में निवेश किया जाना चाहिए। हां, इसी उद्योग की अन्य कंपनी कंपनी गुजरात अल्कलीज पर गौर कर लीजिएगा। निवेश से पहले खुद भी जांच लीजिएगा कि सोडा ऐश की क्या स्थिति चल रही है। बाकी आप खुद समझदार हैं। मुझे पता है कि आप मेरे या किसी के कहने पर नहीं, अपने बुद्धि-विवेक से ही निवेश करते हैं। यह बहुत अच्छी बात है। इस स्वभाव को बनाए रखिए।