बाजार सुबह-सुबह ओवरसोल्ड हो गया क्योंकि कुछ ट्रेडरों व एफआईआई ने ब्याज दर में 50 आधार अंक (0.50 फीसदी) वृद्धि का अंदाज लगाकर शॉर्ट सौदे कर लिए। औरों को 25 आधार अंक बढ़ने की उम्मीद थी। जाहिर है शॉर्ट सेलर सही निकले तो उन्हें कवरिंग की जरूरत नहीं पड़ी। बाजार गिरता गया। वैसे भी, बाजार 20 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) के करीब पहुंच चुका है, हालांकि वो 200 दिनों के सामान्य मूविंग औसत (एसएमए) को तोड़कर नीचे जा चुका है। बाजार में 6030 व 6170 तक बढ़ने का दमखम है क्योंकि इतनी लांग पोजिशन नहीं हैं जो ऐसी रैली को रोक सकें। शॉर्ट सौदों की स्थिति भी रैली या तेजी की स्थिति को बल दे रही है।
कैश बाजार/सेगमेंट में फिलहाल एकदम ठंडक छा गई है। वहां जान तभी लौट सकती है जब निफ्टी 6000 को पार कर जाएगा। इस बीच विंडसर मशींस में नई-नई बातें हो रही हैं। कुछ शेयरधारकों ने देश की तकरीबन हर एजेंसी से इस बात की शिकायत की है कि कैसे सरकार को कोई टैक्स दिए बगैर 360 करोड़ रुपए के शेयर बनाने की कोशिश हो रही है। सरकार निश्चित रूप से इस पर गौर करेगी और इस मामले की जांच करेगी। कुछ शेयरधारों ने कंपनी का दौरा किया और पाया कि ईजीएम (असामान्य आमसभा) बुलाने की सारी स्कीम झूठी व गुमराह करनेवाली है। बीआईएफआर विंडसर मशींस के पुनर्गठन की स्कीम को खारिज कर चुका है। फिर भी ईजीएम की नोटिस में इसका कोई उल्लेख नहीं है। अब कंपनी प्रवर्तक 7.7 करोड़ शेयर पाने के लिए दोबारा बीआईएफआर को पटाने में लगे हैं।
प्रवर्तक आमतौर पर बीआईएफआर की स्कीमों का फायदा उठाते हैं क्योंकि शेयरधारक आसानी से इस सरकारी संस्था तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे मामलों में अधिकांश निवेशक अपनी किस्मत को दोषी ठहरा देते हैं और उन्हें चुनौती नहीं देते। पहले हम देख चुके हैं कि कैसे 4-5 फीसदी इक्विटी निवेश वाले एक एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशक ने बगैर किसी संरक्षण के अकेले लड़ने की कोशिश की थी। यह इंडिया फॉयल्स का मामला था। ऐसे वाकये जेके एग्री व दूसरे तमाम मामलों में हो चुके हैं। इन घटनाओं से कैश स्टॉक्स में निवेशकों का भरोसा घटता चला जाता है। इस सिलसिले को किसी न किसी तरह रोकना जरूरी है। निवेशक अब तक संबंधित अधिकारियों से सीधे शिकायत करने में डरते रहे हैं।
मैं यह कॉलम रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर बिना कायदे से गौर किए लिख रहा हूं क्योंकि ब्याज दरें तो बढ़नी ही थीं और बाकी ऐसा कुछ है नहीं, जिस पर मगजमारी की जाए। हां, इतना जरूर है कि इससे बाजार की सांस तेजी से ऊपर-नीचे होती है। चंचलता या वोलैटिलिटी बढ़ जाती है। तेजी और गिरावट बाजार के स्वभाव का हिस्सा है। मुद्रास्फीति और कच्चे तेल का मसला बना रहेगा। हम साबित कर चुके हैं कि इनके रहते हुए भी बाजार (सेंसेक्स) 17,000 से बढ़कर 19,700 तक जा सकता है। हम इसी माहौल में 20,000 को भी पार कर जाएंगे। हालांकि इसका वक्त बाजार के खिलाड़ियों के करतब से तय होगा।
मैंने केयर्न के बारे में लिखा था और ऑफर के बाद भी उसका भाव बढ़ गया है। इसमें एक और ऑफर 400 रुपए के मूल्य पर आएगा। एक बार यह फिर हमारे कायदे-कानून और सिस्टम की खामियों को उजागर करता है जिसका इस्तेमाल प्रवर्तकों व मर्चेंट बैंकरों ने भेदियो के साथ मिलकर किया है। हमेशा ओपन ऑफर को संशोधित करने के पहले ही बाजी सजा ली जाती है। केवल अंदर की जानकारी रखनेवाले ही बढ़ने की उम्मीद के साथ खरीदते हैं और नोट बनाते हैं। पहले ओपन ऑफर में अपने शेयर पेश करनेवाले निवेशक को कम मूल्य मिलते हैं, जबकि दूसरे व तीसरे ऑफर वाले मौज करते हैं।
कानून को सभी शेयधारकों को समान मूल्य पर बाहर निकलने का मौका देना चाहिए। शेयरधारकों के बीच में फर्क करना व्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है, जिसे साजिश भी कह सकते हैं। लेकिन किसको कहां इसकी परवाह है? और करे भी क्यों? उसे तो माल मिल ही जाता है। बाकी शेयरधारक मरें तो मरें!
जहां हैं, वहां मस्त रहें क्योंकि हमारे-आपके चिंता करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जिनके चिंता करने से फर्क पड़ सकता है, वे तो खुद मस्ती में चूर हैं।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)