वित्त मंत्रालय कोई न कोई स्कीम चलाकर निवेशकों से सामूहिक रूप से धन जुटानेवाली कंपनियों पर नियंत्रण रखने के लिए अलग नियामक संस्था बनाने पर विचार कर रहा है। इसके दायरे में स्पीक एशिया जैसी कंपनियां भी आ जाएंगी जो किसी न किसी बहाने आम लोगों को लुभाती हैं और कानूनी कमियों को फायदा उठाकर उनका धन लेकर चंपत हो जाती है। ऐसा होने जाने पर सहारा समूह भी पहले की तरफ लोगों से धन नहीं जुटा सकेगा. न ही प्लांटेशन कंपनियां 90 के दशक की तरह लोगों को झांसा दे पाएंगी।
ऐसी सभी कंपनियों को कोई स्कीम लाने से पहले संबंधित नियामक संस्था से मंजूरी लेनी पड़ेगी। अभी तक ऐसी सामूहिक निवेश स्कीमों (सीआईएस) पर नजर रखने की जिम्मेदारी पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी की है। 1999 में इस बाबत अलग से सेबी के रेगुलेशन आ चुके हैं। लेकिन सामूहिक स्कीमें चलानेवाली कंपनियां कोई न कोई नुक्ता निकालकर सेबी के चंगुल से बचती रही हैं। वित्त मंत्रालय इन खामियों को अब खत्म करने की सोच रहा है।
इस बाबत सेबी ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिस पर मंगलवार 3 जनवरी को उसका बोर्ड विचार करनेवाला है। बोर्ड की बैठक के बाद सेबी की तरफ से सीआईएस के नियमन के बारे में कुछ साफ घोषणा हो सकती है। बता दें कि अभी तक कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के तहत कंपनियों की सारी गतिविधियां आती हैं। लेकिन इसके नीचे सेबी, रिजर्व बैंक और राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर निगरानी रखती हैं। रिजर्व बैंक आमतौर पर पब्लिक से डिप़ॉजिट लेनेवाली कंपनियों पर नियंत्रण रखता है। लेकिन स्पीक एशिया जैसी कंपनियां उसके चंगुल से इसलिए बच जाती है क्योंकि वे कानूनी अर्थ में लोगों से ‘डिपॉजिट’ नहीं लेतीं। माना जा रहा है कि नई व्यवस्था में इन खामियों को दूर कर लिया जाएगा।
गौरतलब है कि स्पीक एशिया देश के करीब 23 लाख निवेशकों से लगभग 2000 करोड़ रुपए जुटाकर चंपत हो चुकी है। उसके कई अधिकारी इस समय मुंबई पुलिस की गिरफ्त में हैं। लेकिन मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मनोज कुमार अभी तक पकड़ में नहीं आया है, जबकि शीर्ष सरगना हरेंदर कौर तो सिंगापुर में बैठी मौज कर रही हैं।