पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि सरकार वनवासियों के अधिकारों का संरक्षण करने के प्रावधान वाले वनाधिकार कानून की ही तर्ज पर मछुआरों के लिए भी एक अलग कानून बनाएगी। उन्होंने राजधानी दिल्ली में शुक्रवार को तटीय नियमन क्षेत्र अधिसूचना 2011 जारी होने के मौके पर कहा, ‘‘इस अधिसूचना को तैयार करने वाली डॉ. एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने एक महत्वपूर्ण सिफारिश की है कि सरकार को मछुआरों व तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के अधिकारों और हितों का संरक्षण करने के लिए कानून बनाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मछुआरों के संगठनों ने इस सिफारिश का समर्थन किया है। पर्यावरण और वन मंत्रालय इस कानून के लिए एक मसौदा पहले ही तैयार कर चुका है और उसे टिप्पणियों तथा सुझाव के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है।’’
रमेश ने कहा कि वनाधिकार कानून 2006 के तहत वन क्षेत्र पर निर्भर रहने वाले स्थानीय लोगों के अधिकारों के संरक्षण का प्रावधान है। इसी तर्ज पर मछुआरों के लिए भी अलग कानून बनाया जाएगा। कानून के मसौदे को कृषि मंत्रालय के सहयोग के साथ तैयार किया गया है। अब इस बारे में कैबिनेट फैसला करेगी कि एक बार कानून बन जाने पर इसका अमल पर्यावरण मंत्रालय करेगा या कृषि मंत्रालय।
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि मछुआरों ने यह भी मांग की है कि तटीय नियमन क्षेत्र की अधिसूचना के बजाय सरकार को इस संबंध में कानून ही बना देना चाहिए। हम इस पर भी विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि नई अधिसूचना के तहत विकास निषिद्ध क्षेत्र की सीमा समुद्र तट से 200 मीटर की दूरी से घटाकर 100 मीटर कर दी गई है ताकि मछुआरों व अन्य तटीय समुदायों की आवास संबंधी जरूरतों की पूर्ति की जा सके।