पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी सरकार को उन 500 से ज्यादा कंपनियों के नाम उपलब्ध कराएगी जिन्होंने सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) के नियमों को तोड़ते हुए निवेशकों से भारी धन जुटाया है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट (पीटीआई) के संवाददाता को बताया कि ऐसी कंपनियों के निदेशकों के नाम भी कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) को दिए जाएंगे ताकि इन कंपनियों और लोगों को किसी नई कंपनी के साथ जुड़ने से रोका जा सके।
गौरतलब है कि ऐसी सभी सामूहिक निवेश स्कीमें (सीआईएस), जिनमें कोई कंपनी किसी खास मकसद से निवेशकों से धन जुटाती है और फिर अपनी आय या मुनाफा उनके बीच बांटती है, सेबी के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। अनुमान है कि देश में ऐसी 500 से ज्यादा कंपनियां या संस्थाएं हैं जिन्होंने सेबी के नियमों को धता बताते हुए सीआईएस चला रखी हैं। सेबी अतीत में इनमें से कइयों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की शुरुआत कर चुकी है।
सेबी के उक्त अधिकारी ने बताया कि सेबी की नजर में आने से पहले ही ऐसी अधिकांश कंपनियां और उनके कर्ताधर्ता किसी नए नाम से वैसा ही धंधा शुरू कर देते हैं और लाखों निवेशक लालच में आकर उनके जाल में फंसते चले जाते हैं। सेबी ने एमसीए ने यह भी अनुरोध किया है कि धांधली करनेवाली सभी सीआईएस कंपनियों व उनके निदेशकों की सूची देश भर के कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालयों (आरओसी) को भेज दे ताकि उनसे जुड़े लोग कोई नई कंपनी न बना सकें। सेबी का यह भी मानना है कि मौजूदा सीआईएस नियमन में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है। जरूरत है कि वे सारे नुक्ते बंद कर दिए जाएं, जिनका फायदा उठाकर ऐसी स्कीमों में मासूम निवेशकों को छला जाता है।
सेबी यह मुद्दा वित्तीय स्थायित्व व विकास परिषद (एफएसडीसी) की बैठक में भी रखेगी। इस परिषद की अध्यक्षता खुद वित्त मंत्री करते हैं और इसमें रिजर्व बैंक के गवर्नर के साथ ही सेबी, बीमा नियामक संस्था आईआरडीए और पेंशन फंड नियामक संस्था पीएफआरडीए के चेयरमैन शामिल हैं। यह भी नोट करनेवाली बात है कि देश में इस समय सैकड़ों कंपनियां सीआईएस चला रही हैं। लेकिन उनमें से एक ने अपना पंजीकरण सेबी के पास करा रखा है। यह कंपनी है अहमदाबाद (गुजरात) की गिफ्ट कलेक्टिव इनवेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड जिसके कर्ताधर्ता कोई दीपेश शाह नाम के सज्जन हैं। मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) की एक और कंपनी एमपीएस ग्रीनरी डेलपवर्स को अस्थाई पंजीकरण मिला हुआ है।
सेबी के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक सामूहिक निवेश स्कीमों में धोखा खानेवाले एक लाख से ज्यादा निवेशकों की शिकायतें उसके पास लंबित पड़ी हैं। लेकिन ज्यादातर मामलें अदालत की कार्यवाही में उलझ गए हैं। निवेशकों को ठगनेवाली सीआईएस में मुख्य रूप से रीयल एस्टेट, प्लांटेशन, आर्ट फंड, टाइम शेयरिंग और मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) से जुड़ी स्कीमें शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने 1990 के दशक में कृषि आधारित व प्लांटेशन कंपनियों की निवेश स्कीमों का शोर उठने के बाद सीआईएस नियम बनाए और 1997 में इनका नियमन सेबी को सौंप दिया। तय किया गया कि ऐसी हर सामूहिक निवेश स्कीम चलानेवाली कंपनी को सेबी में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। नहीं तो उन्हें अपना बोरिया-बिस्तर समेटना होगा। सेबी के आंकड़ों के अनुसार 1998-99 में 664 सीआईएस कंपनियों से निवेशकों से 3518 करोड़ रुपए जुटाए। इनमें से 54 ने बाद में अपना धंधा समेटकर निवेशकों को धन वापस कर दिया। जिन नई कंपनियों ने सेबी के पास पंजीकरण के लिए अर्जी लगाई, उन्हें नियमों के तहत काबिल नहीं पाया गया तो कोई नई कंपनी सूची में जुड़ी नहीं।
सेबी ने बाकी बची 610 कंपनियों को निर्देश दिया कि वे निवेशकों को तय रिटर्न के साथ उनका धन लौटा दें। इसके बाद 21 और कंपनियां बंद हो गईं। धीरे-धीरे इनकी संख्या साल 2010 तक एक पर आ गई है। असल में ऐसी कंपनियां सैकड़ों में नहीं, हजारों में हैं। लेकिन वे कोई न कोई कानूनी नुक्ता बताकर सेबी के अंकुश से बच जाती हैं। इनमें स्पीक एशिया से लेकर राम सर्वे और पर्ल इंडिया जैसी बहुचर्चित कंपनियां शामिल हैं।