शायद ऐसा सालों बाद पहली बार हुआ है। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने निवेशकों की शिकायतों का समाधान न करने के लिए पांच लिस्टेड कंपनियों और उनके निदेशकों पर किसी भी तरह प्रतिभूति बाजार में उतरने या प्रतिभूतियों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तरीके से खरीदने-बेचने पर रोक लगा दी है। ये रोक तब जारी रहेगी जब तक ये कंपनियों निवेशकों की शिकायतें सुलझा नहीं देतीं। ये कंपनियां हैं – आशी इंडस्ट्रीज, एईसी एंटरप्राइसेज, सॉलिड कार्बाइड टूल्स, धर्नेंद इंडस्ट्रीज और धर्नेंद्र ओवरसीज लिमिटेड।
लेकिन हकीकत यह है कि इन पांचों कंपनियों में न जाने कब से ट्रेडिंग बंद है। इनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। यहां तक कि या इनकी वेबसाइट नहीं है या है भी उनके पते पर कोई दूसरा काबिज है। जाहिर है इनमें अपनी गाढ़ी कमाई वाले निवेशक फंस चुके हैं। न जाने कब से वे जगह-जगह हाथ-पैर मार रहे होंगे। और, सेबी की नींद अब जाकर 7-8 अप्रैल 2011 को खुली है। सेबी का दावा है कि निवेशकों की हितों की रक्षा में वह मुस्तैद है और अब ये कंपनियां या उनके निदेशक शेयर बाजार का लाभ नहीं ले सकेंगे।
सवाल उठता है कि जब कंपनियां सेबी की इजाजत से पूंजी बाजार का फायदा उठाकर निवेशकों की गाढ़ी कमाई लेकर चंपत हो गईं तो उन पर अब बंदिश लगाओ या न लगाओ, इससे क्या फर्क पड़ता है। सेबी कितनी बेध्यान रहती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि धर्नेंद्र इंइडस्ट्रीज व धर्नेंद्र ओवरसीज के ही प्रवर्तकों की एक और कंपनी है धर्नेंद्र एग्रो फूड्स। इसमें भी ट्रेडिंग बंद है। लेकिन उसका नाम सेबी ने अपने नए आदेश में कहीं नहीं लिया है।
इनके एक निवेशक डॉ. अवतार सिंह का कहना है कि, “बाजार से इन्हें रोक देना पर्याप्त नहीं है। धर्नेंद्र गांधी एंड कंपनी की तीनों कंपनियों में हमने जमकर निवेश किया। आज कोई नहीं जानता कि इन कंपनियों का क्या हुआ। हमें भारी नुकसान हुआ है। ये तो अपराधी हैं और इन्हें कानून के तहत दंडित किया जाना चाहिए।”
सेबी के पूर्णकालिक निदेशक के एम अब्राहम की तरफ से इन पांचों कंपनियों के खिलाफ जारी 5-6 पन्नों के आदेश में गिनाया गया है कि कैसे इन्हें नोटिस भेजे गए, उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया और अब आखिरकार इन पर बंदिश लगानी पड़ी है। यह बंदिश निवेशकों की शिकायतों का निपटारा होने तक जारी रहेगी। लेकिन यह तो किसी मरे हुए आदमी से जवाब मांगने जैसी बात हो गई।
जो कंपनियां सारा डकार चुकीं हैं, जो प्रवर्तक माल काटकर किनारे हो लिए हैं, वे क्यों आएंगे सेबी का जवाब देने या निवेशकों की शिकायतों का निपटारा करने? क्या सेबी एक्ट या कंपनी कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि इन कंपनियों के प्रवर्तकों से निवेशकों को पैसा वसूल कर उन्हें कम से कम एफडी के ब्याज समेत वापस कर दिया जाए? अगर ऐसा नहीं है तो सेबी या सरकार किस दम पर आम निवेशकों को पूंजी बाजार में खींचकर लाना चाहती हैं?
सेबी के आदेश के मुताबिक सॉलिड कार्बाइड टूल्स के खिलाफ निवेशकों की 61 बकाया शिकायते हैं, जबकि धर्नेंद्र इंडस्ट्रीज के खिलाफ 101, धर्नेंद्र ओवरसीज के खिलाफ 122, आशी इंडस्ट्रीज के खिलाफ 416 और एईसी एंटरप्राइसेज के खिलाफ 61 शिकायतें लंबित हैं। इनमें से एक कंपनी महाराष्ट्र, एक मध्य प्रदेश और तीन कंपनियां गुजरात की हैं। क्या राज्य सरकारें इनके प्रवर्तकों के खिलाफ धोखाधड़ी व ठगी के अपराध में मुकदमा नहीं चला सकतीं?