अगर किसी लिस्टेड कंपनी में प्रवर्तकों की शेयरधारिता से बचे हिस्से का कम से कम 50 फीसदी भाग डीमैट (डीमैटरियलाइज्ड) रूप में नहीं हुआ तो 31 अक्टूबर 2010 के बाद उनके शेयरों में ट्रेडिंग सामान्य सेगमेंट में नहीं हो सकती। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने यह सर्कुलर गुरुवार को सभी स्टॉक एक्सचेंजों को भेजा है। हालांकि इसे सार्वजनिक शुक्रवार को किया गया।
सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों से कहा है कि 31 अक्टूबर तक कंपनियों से यह जरूरत पूरी करवा लें, अन्यथा उनके शेयर ट्रेड फॉर ट्रेड या ट्रेड टू ट्रेड (टीएफटी) श्रेणी में डाल दिए जाएंगे। इस श्रेणी में डालने का मतलब होगा कि इन शेयरों में इंट्रा-डे ट्रेडिंग नहीं हो सकती। खरीद और बिक्री के सौदों को आपस में काटा नहीं जा सकता। सेबी और एक्सचेंज कहते हैं कि किसी भी शेयर को इस श्रेणी में डालने का मकसद पूरी तरह बाजार निगरानी सिस्टम के तहत किया जाता है।
लेकिन बाजार के लोग इसे किसी शेयर को फांसी लगा देने जैसा मानते हैं क्योंकि ट्रेडरों की गतिविधि रुक जाने के कारण इस श्रेणी में डाले गए शेयर एक तरह से इल्लिक्विड हो जाते हैं। उनके खरीद-फरोख्त लगभग बंद हो जाती है और आम निवेशक अपने शेयर निकाल नहीं पाते। वैसे भी अगस्त माह की ट्रेडिंग गतिविधियों के आधार पर बीएसई की 1422 कंपनियां इस समय इल्लिक्विड पड़ी हैं।
सेबी ने अपने सर्कुलर में कहा है कि कंपनियों के शेयरों के भावों में तेज और अस्थिर करनेवाले उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए उसने स्टॉक एक्सचेंजों से सलाह-मशविरे के बाद कई उपाय किए हैं। ये उपाय उन कंपनियों पर लागू नही होंगे जिनके शेयरों में डेरिवेटिव सौदों की इजाजत है या जो स्टॉक एक्सचेंज के उन सूचकांकों में शामिल हैं जिनमें डेरिवेटिव (फ्यूचर्स या ऑप्शंस) सौदे होते हैं।
सेबी ने तय किया है कि अगर इनसे भिन्न किसी कंपनी में मर्जर, डीमर्जर, पूंजी में कमी, बीआईएफआर (बोर्ड ऑफ इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रीकंस्ट्रक्शन) का पुनर्वास पैकेज, रिजर्व बैंक की अनुमति से सीडीआर (कॉरपोरेट डेट रीस्ट्रक्चरिंग) जैसे काम शुरू होते हैं तो उनके शेयरों को फौरन दस दिनों के लिए टीएफटी सेगमेंट में डाल दिया जाएगा। इनमें से पहले दिन तो इन पर कोई सर्किट ब्रेकर या प्राइस बैंड नहीं लगेगा, लेकिन बाकी नौ दिनों पर इन पर सर्किट ब्रेकर लगा रहेगा।
अगर कोई कंपनी किसी दूसरे स्टॉक एक्सचेंज से नए स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट की जा रही है या दोबारा लिस्ट हो रही है तो उस पर यह नियम लागू होगा। अगर ट्रेडिंग से सस्पेंड की गई किसी कंपनी में फिर से ट्रेडिंग की इजाजत दी जाती है तो उसे भी दस दिन के लिए टीएफटी में रहना होगा। असल में पिछले दिनों दोबारा लिस्टिंग के कई ऐसे मामले हुए हैं जिसमें पहले दिन कंपनी के शेयरों में भारी उछाल आ गया। जैसे, 5 अगस्त को कई सालों के बाद दोबारा लिस्ट होने के पहले ही दिन एमवाईएम टेक्नोलॉजीज के शेयर करीब 1300 फीसदी और सीएमआई लिमिटेड के शेयर 2700 फीसदी बढ़ गए थे।
माना जा रहा था कि सेबी और स्टॉक एक्सचेंज पहले दिन के इस तूफान को रोकने के लिए कुछ करेंगे। लेकिन सेबी के सर्कुलर में दोबारा लिस्टिंग पर कोई प्राइस बैंड या सर्किट ब्रेकर नहीं रखा गया है। हालांकि टीएफटी सेगमेंट में डाल देने के कारण शायद उनमें सट्टेबाजी न हो पाए और सौदों की डिवीलरी लेने या देने की बाध्यता के कारण शायद इतना ज्यादा उतार-चढ़ाव न आए।