सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसी, सीबीआई का यह सुझाव खारिज कर दिया है कि उसे 2जी स्पेक्ट्रम मामले में अपना फैसला और निर्देश सीलबंद कवर में जारी करना चाहिए। मामले पर गौर कर रही जस्टिस जी एस सिंघवी और ए के गांगुली की खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि य़ह फैसला खुली अदालत में आएगा और सीलबंद कवर में आदेश देना न्याय के हित में नहीं होगा। इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि इससे जबरदस्त कयासबाजी शुरू हो सकती है।
खंडपीठ का कहना था कि कोर्ट का कामकाज, मामले की सुनवाई या कोर्ट का आदेश किसी आलोचना से प्रभावित नहीं होता। चाहे वो मुंसिफ कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट, उसे संविधान और जनहित को ध्यान में रखते हुए अपने विवेक से काम करना होता है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 2जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई खुली अदालत में हो रही है और वहां जो कुछ भी होता है, उसे रिपोर्ट करना होगा। हालांकि मीडिया में कुछ गलत रिपोर्टिंग भी हो जाती है, लेकिन इस सब का कोर्ट की कार्यवाही पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इस मामले में एक और बात सामने आई है कि सीबीआई साल 2008 में 2जी टेलिकॉम लाइसेंस पानेवाली कंपनियों के बैंक ऋणों की भी तहकीकात कर रही है। मामले से संबद्ध वकील प्रशांत भूषण ने यह जानकारी दी। उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से खास तौर पर कहा है कि वह चार टेलिकॉम कंपनियों को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा दिए 10,000 करोड़ रुपए के ऋण की जांच करे। कोर्ट का कहना था कि, “इस मुकदमे में उठाया गया मसला 1.76 लाख करोड़ रुपए तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका फलक काफी बड़ा है। हम जांच में कोई पूर्वाग्रह नहीं डालना चाहते। लेकिन 2001 में क्या हुआ, उस पर भी गौर करने की जरूरत है। सीबीआई इसकी जांच करे और सही तथ्य सामने लाए।”
जस्टिस जी एस सिंघवी और ए के गांगुली की खंडपीठ की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा कहते रहे हैं कि उन्होंने 2001 से चली आ रही नीति का पालन किया था। 2001 में नीलामी नहीं, बल्कि पहले आओ – पहले पाओ की नीति के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटित किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने एक और मुद्दे पर आश्चर्य जताया कि दोहरी तकनीक (सीडीएमए और जीएसएम) के ट्रांसफर की अधिसूचना 19 अक्टूबर 2009 को जारी की गई थी, लेकिन एक कंपनी को इसकी इजाजत एक दिन पहले ही कैसे दे दी गई? कोर्ट के मुताबिक सीएजी ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में दोहरी तकनीक के मसले पर गौर नहीं किया है।
इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने घोटाले की अपनी जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दी है। यह रिपोर्ट सौंपते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता हरेन रावल ने खंडपीठ को बताया कि इसमें फेमा और प्रिवेंशन प मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत 9 मार्च 2010 को मामला दर्ज करने के बाद की सारी तहकीकात का ब्यौरा दिया गया है।