रिलायंस की ललकार में छिपा सच, लाभ 21.2% गिरा, लाभांश बेकार

बाजार पूंजीकरण के लिहाज से अब भी देश की सबसे बड़ी कंपनी है रिलायंस इंडस्ट्रीज। कोल इंडिया का बाजार पूंजीकरण 2,28,999 करोड़ रुपए है तो रिलायंस इंडस्ट्रीज का 2,39,516 करोड़ रुपए। लेकिन आंकड़ों की झूठी ललकार में भी रिलायंस का कोई तोड़ नहीं। शुक्रवार को 2011-12 के सालाना नतीजों की घोषणा करते हुए उसने कहा: 3,39,792 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड राजस्व, 19,724 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड कंसोलिडेटेड शुद्ध लाभ और अब तक का सबसे ज्यादा 2,08,042 करोड़ रुपए (40.9 अरब डॉलर) का निर्यात जो भारत के कुल निर्यात का 14 फीसदी है।

पहली बात, भारत का निर्यात 2011-12 में 303.7 करोड़ रुपए का रहा है। रिलायंस का 40.9 अरब डॉलर का निर्यात इसका 13.47 फीसदी बनता है, न कि 14 फीसदी। दूसरी बात यह सच है कि कंपनी का कंसोलिडेटेड शुद्ध लाभ 19,724 करोड़ रुपए है जो अब का सबसे बड़ा आंकड़ा है। लेकिन 2011-12 में कंपनी का स्टैंड-एलोन शुद्ध लाभ इससे ज्यादा 20,040 करोड़ रुपए है जो पिछले साल 2010-11 के शुद्ध लाभ 20,286 करोड़ रुपए से 1.21 फीसदी कम है। हालांकि इस दौरान कंपनी का सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) 8.4 डॉलर प्रति बैरल से सुधरकर 8.6 डॉलर प्रति बैरल हो गया है।

यह सच है कि 2011-12 में उसका राजस्व या टर्नओवर साल भर पहले से 31.4 फीसदी बढ़कर 3,39,792 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन इसी दौरान उसके सकल लाभ से लेकर ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) तक में गिरावट आई है। ईपीएस पहले 62 रुपए था। अब 61.2 रुपए हो गया है। निवेशकों को कंपनी के धंधे से ज्यादा वास्ता इस बात से होता है कि उसका मुनाफा कितना रहा है। और, जब पिछली तीन तिमाहियों के नतीजे पता हों तो असली फर्क ताजा तिमाही के नतीजों से पड़ता है। इस मायने में रिलायंस इंडस्ट्रीज की उपलब्धि उम्मीद से भी ज्यादा घटिया रही है।

बाजार व विश्लेषकों को उम्मीद थी कि मार्च 2012 की तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 4330 करोड़ रुपए रहेगा। लेकिन असलियत में उसका शुद्ध लाभ 4236 करोड़ रुपए रहा है जो मार्च 2011 की तिमाही के शुद्ध लाभ 5376 करोड़ रुपए से पूरे 21.2 फीसदी कम है। उसका जीआरएम इस बार 7.6 डॉलर प्रति बैरल रहा है, जबकि मार्च 2011 की तिमाही में यह 9.2 डॉलर प्रति बैरल था। चौथी तिमाही में कंपनी का टर्नओवर जरूर 16.7 फीसदी बढ़कर 75,283 करोड़ रुपए से 87,833 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा उसके खर्चों में इजाफा हो गया है।

शुक्र है कि कंपनी ने प्रति शेयर 8.5 रुपए के लाभांश की घोषणा की है। लेकिन पिछले साल भर में जिस तरह उसका शेयर 1044 रुपए (21 अप्रैल 2011) से घटकर अभी 731 रुपए पर आया है, उस पर प्रति शेयर हुए 313 रुपए की भरपाई 8.5 रुपए का यह लाभांश कैसे कर सकता है? बाजार को रिलायंस के खराब नतीजों का अंदाजा पहले से था। इसलिए बराबर यह शेयर पिछले कई दिनों से गिरता-गिरता शुक्रवार को और 1.39 फीसदी गिर गया।

निवेशकों व शेयरधारकों में निराशा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि रिलायंस समूह के मुखिया मुकेश अंबानी अब भी आशा से विभोर हैं। ताजा नतीजों की घोषणा के बाद उन्होंने कहा, “हमने भावी विकास के लिए मजबूत बुनियाद तैयार की है और भारत में अपने मुख्य अपस्ट्रीम व पेट्रोकेमिकल बिजनेस में निवेश कर रहे हैं। हमारे संगठित रिटेल बिजनेस को मिला प्रतिसाद बहुत उत्साहवर्धक रहा है। हम ब्रॉडबैंड एक्सेस बिजनेस के जरिए विश्वस्तरीय, हाई स्पीड वायरलेस डाटा सेवाएं देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास 31 मार्च 2012 तक 70,252 करोड़ रुपए का कैश बैलेंस है जो उसने मुख्य रूप से बैंकों के एफडी, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, म्यूचुअल फंडों और सरकारी बांडों में लगा रखा है। कंपनी के ऊपर 31 मार्च 2012 तक 68,259 रुपए का ऋण है जो साल भर पहले 67,397 करोड़ रुपए का था। लेकिन उसका कहना है कि 31 मार्च 2011 को 13.5 फीसदी के ‘गेयरिंग स्तर’ की तुलना में वह शुद्ध रूप से ऋण-मुक्त कंपनी है। यह बात अपनी तो समझ में नहीं आई। आपको इसका सूत्र पता हो तो जरूर बताइएगा।

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