बढ़ती मुद्रास्फीति ने आखिरकार रिजर्व बैंक को बेचैन कर ही दिया और उसने आज, शुक्रवार को ब्याज दरें बढ़ाकर मांग को घटाने का उपाय कर डाला। रिजर्व बैंक ने तत्काल प्रभाव से रेपो दर (रिजर्व बैंक से सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में रकम उधार लेने की ब्याज दर) 5.25 फीसदी से बढ़ाकर 5.50 फीसदी और रिवर्स रेपो दर (रिजर्व बैंक के पास धन जमा कराने पर बैंकों को मिलनेवाली ब्याज दर) 3.75 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदी कर दी है। इस समय बैंक रिवर्स रेपो में बहुत कम राशि रिजर्व बैंक के पास जमा करा रहे हैं और रेपो के तहत ज्यादा रकम उठा रहे हैं। इसलिए प्रभावी नीतिगत ब्याज दर रेपो को माना जाएगा जो बढ़कर 5.50 फीसदी हो गई है।
रेपो और रिवर्स रेपो दर पर धन लेने-देने की सहूलितय बैंकों को चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत दी जाती है। लेकिन रिजर्व बैंक इस समय यह भी मानता है कि बैंकों को अतिरिक्त तरलता उपलब्ध कराने की जरूरत है। इसलिए उसने एलएएफ के तहत बैंकों को 28 मई से दी गई कुल जमा के 0.5 फीसदी तक रकम उधार लेने की सुविधा 16 जुलाई 2010 तक बढ़ा दी गई है और दिन में दो दिन एलएएफ खिड़की खुली रहने की सहूलियत भी 16 जुलाई तक उपलब्ध रहेगी। पहले दी गई इस सहूलियत की मीयाद आज 2 जुलाई को खत्म हो रही थी।
रिजर्व बैंक का कहना है, “इन मौद्रिक उपायों से जहां मुद्रास्फीति और उसके बढ़ने की अपेक्षाओं को काबू में किया जा सकेगा, वहीं इससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया भी सलामत रहेगी। एक साथ तरलता बढ़ाने और ब्याज दरें बढ़ाने के कदम ऊपर-ऊपर एक-दूसरे के विरोधी लग सकते हैं। लेकिन तरलता बढ़ाने का उपाय तात्कालिक किस्म का है। हमारा जोर विकास को चोट पहुंचाए बगैर मुद्रास्फीति को काबू करने पर है।” आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक व सीईओ चंदा कोचर भी मानती हैं कि रिजर्व बैंक का यह कदम आर्थिक विकास में बिना कोई व्यवधान डाले नीतिगत दरों को धीरे-धीरे सामान्य स्तर पर लाने का प्रयास है।
रिजर्व बैंक के मुताबिक मुद्रास्फीति का बढ़ना कई चिंताओं को जन्म देता है। मई में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर अप्रैल के 9.6 फीसदी से बढ़कर 10.2 फीसदी हो गई। खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति में थोड़ी कमी आई है, लेकिन इनका सूचकांक बढ़ता जा रहा है। लेकिन समस्या यह है कि गैर-खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ रही है। नवंबर 2009 में यह शून्य से 0.4 फीसदी नीचे थी। लेकिन मार्च 2010 में यह तेजी से बढ़कर 5.4 फीसदी और मई 2010 में 6.6 फीसदी हो गई है। इस दौरान ईंधन मूल्यों की वृद्धि भी (-) 0.8 फीसदी से पहले 12.7 फीसदी हुई और मई में 13.1 फीसदी पर पहुंच गई। मई की मुद्रास्फीति में दो-तिहाई योगदान गैर-खाद्य वस्तुओं का है। इसलिए मांग की तरफ से पड़नेवाले दबाव को बांधना जरूरी हो गया था।
यह सारे हालात को जून मध्य तक स्पष्ट हो गए थे। फिर इतनी देरी से कदम क्यों उठाए गए? इसके जवाब में रिजर्व बैंक का कहना है कि उस समय वित्तीय प्रणाली तरलता का दबाव झेल रही थी। 3 जी स्पेक्ट्रम और ब्रॉडैबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) की नीलामी की राशि कंपनियों को बैंकों से लेकर देनी थी। बैंक एलएएफ सुविधा से ज्यादा से ज्यादा रकम निकालते रहे। कॉल मनी मार्केट में भी ब्याज दरें बढ़ गईं। लेकिन अब तरलता की स्थिति थोड़ी ठीक हो चुकी है। इसीलिए तरलता देने की सुविधा कुछ और समय के लिए जारी रखते हुए ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला अब जाकर लिया गया है। वैसे, आपको बता दें कि पिछले दो हफ्ते से ब्याज दरें बढ़ाए जाने की उम्मीद लगाई जा रही थी। पिछले हफ्ते शुक्रवार को तो लगा था कि कभी भी ब्याज दर बढ़ाने की घोषणा रिजर्व बैंक कर सकता है।