रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने को प्राथमिकता मानते हुए ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला किया है। उसने मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा में रेपो दर में 0.25 फीसदी और रिवर्स रेपो में 0.50 फीसदी की वृद्धि कर दी है। गौर करें कल शाम को लिखी गई अर्थकाम की खबर के पहले पैरा का आखिरी वाक्य, “हो सकता है कि रेपो में 0.25 फीसदी की ही वृद्धि की जाए, लेकिन रिवर्स रेपो में 0.50 फीसदी की वृद्धि लगभग तय है।” यहां इसका उल्लेख इसलिए किया जा रहा है ताकि आपको यकीन हो जाए कि हिंदी की आर्थिक पत्रकारिता अंग्रेजी को मात कर सकती है। अंग्रेजी के किसी भी आर्थिक या बिजनेस अखबार ने मौद्रिक नीति के उपायों को लेकर इतना सटीक अनुमान नहीं लगाया था।
अभी रेपो की दर 5.50 फीसदी और रिवर्स रेपो की दर 4 फीसदी है, जिसे बढ़ाकर क्रमशः 5.75 फीसदी और 4.50 फीसदी कर दिया गया है। रिजर्व बैंक ने अनुमान के मुताबिक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 6 फीसदी पर जस का तस रखा है। बता दें कि सीआरआर बैंकों की कुल जमाराशि का वह हिस्सा है जिसे बैंकों को रिजर्व बैंक के पास हमेशा कैश के रूप में रखना होता है। रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक अमूमन एक या तीन दिनों के लिए बैंकों को रकम मुहैया कराता है, जबकि रिवर्स रेपो वह ब्याज दर जो रिजर्व बैंक एक या दिनों के लिए बैंकों द्वारा जमा कराई गई रकम पर देता है।
रिजर्व बैंक का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब अक्टूबर 2009 में वैश्विक संकट के उभरने से पहले वाले विकास की डगर अपनाने लगी है। ऐसा तब जबकि विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 8.5 फीसदी कर दिया है। अप्रैल में उसने इसके 8 फीसदी रखा था। लेकिन मुद्रास्फीति के दबाव बढ़ते जा रहे हैं। सप्लाई के बजाय अब मांग की तरफ से आनेवाले दबाव साफ दिखने लगे हैं। कई क्षेत्रों में क्षमता की सीमाएं नजर आ रही हैं और उत्पादकों के पास दाम तय करने की ताकत वापस आ गई है। ऐसे में मांग की तरफ से आनेवाले मुद्रास्फीति के दबाव को रोकना जरूरी हो गया है। रिजर्व बैंक मार्च 2011 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 5.5 फीसदी से बढ़ाकर अब 6 फीसदी कर दिया है।
रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव ने मंगलवार को बैंक प्रमुखों के साथ हुई बैठक में पेश वक्तव्य में कहा कि पिछले कुछ महीनों में नीतिगत दरों (रेपो व रिवर्स रेपो) में 0.75 फीसदी की वृद्धि के बावजूद उनका व्यावहारिक असर नहीं दिख रहा है। ऐसे में उन्हें वर्तमान स्तर पर बनाए रखना गलत संकेत देगा। इसलिए हम नीतिगत उपायों को सामान्य स्तर पर ला रहे हैं ताकि अर्थव्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया भी जारी रहे और मुद्रास्फीति पर भी काबू पाया जा सके।
रिजर्व बैंक ने नीतिगत उपाय करते वक्त यह भी ध्यान रखा है कि सिस्टम में तरलता की कोई दिक्कत न होने पाए। मौजूदा बाजार स्थितियों से संकेत मिलता है कि आगे तरलता पर दबाव कम होगा, लेकिन फिलहाल तो इसकी मांग ज्यादा है। अभी बैंक हर दिन रिजर्व बैंक के पास रकम जमा कराने के बजाय उससे चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत उधार ले रहे हैं। ऐसे में रेपो दर ही वास्तविक नीतिगत दर बन गई है। इसलिए बैंकों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए इसमें केवल 0.25 फीसदी की ही वृद्धि की गई है।