उम्मीद है कि रुपया पिछले कुछ महीनों से चल रही गिरावट का सिलसिला तोड़कर अब स्थिर हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो उसमें आई तेज हलचल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने को तैयार है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने गुरुवार को सिंगापुर में आयोजित एक समारोह में यह बात कही। उन्होंने कहा, “हम किसी भी तेज एकतरफा हलचल को रोकने के लिए मजबूत कदम उठाएंगे।”
उन्होंने बताया कि अनिवासी भारतीयों की जमा पर ब्याज दर बढ़ाने और फॉरवर्ड हेजिंग सौदों पर बंदिशें लगाने से रुपए की विनिमय दर में स्थिरता लाने में मदद मिली है। बता दें कि सितंबर से मध्य-दिसंबर तक डॉलर के सापेक्ष रुपया 15 फीसदी से ज्यादा गिरा है, जबकि पूरे साल 2011 में यह गिरावट 18.8 फीसदी रही है। एशियाई देशों की मुद्रा में सबसे बुरा हाल भारतीय रुपए का ही रहा है। कोटक महिंद्रा बैंक के आकलन के हिसाब से नवंबर माह में रिजर्व बैंक ने रुपए का संभालने के लिए 4 से 5 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में बेचे हैं।
मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के संदर्भ में सुबीर गोकर्ण का कहना था कि मौद्रिक चक्र अपने शीर्ष पर पहुंच चुका है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ब्याज दरें फटाफट नीचे ले आई जाएंगी क्योंकि मुद्रास्फीति का जोखिम अब भी नजर आ रहा है। उनका कहना था कि कमजोर होते रुपए और कच्चे तेल के दामों में आ रही बढ़त ने मौद्रिक नीति में ढील देने की गुंजाइश कम कर दी है।
मुंबई में सक्रिय बारक्लेज कैपिटल के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल का भी मानना है कि रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में ज्यादा कटौती करना आसान नहीं है। मुद्रास्फीति अब भी ज्यादा है। दुनिया में कच्चे तेल जैसे जिंसों के भाव अब भी चढ़े हुए हैं। ऊपर से कमजोर रुपया आयातित चीजों के दाम और बढ़ा दे रहा है। नोट करने की बात यह है कि तुर्की व थाईलैंड समेत तमाम उभरते बाजारों वाले देश ब्याज दरों को पहले ही नीचे ला चुके हैं। लेकिन भारत में इसकी गुंजाइश कम है। कारण, ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) में सबसे ज्यादा मुद्रास्फीति भारत में ही चल रही है।