ग्रीस का संकट हमारे नीति-नियामकों को भी परेशान किए हुए है, लेकिन सभी एक स्वर से कहने में लगे हैं कि इसका भारत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पहले यह बात वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और वित्त सचिव अशोक चावला बोल चुके हैं। अब रिजर्व बैंक के गर्वरन डी सुब्बाराव ने भी कह दिया है कि ग्रीस संकट के चलते भारत के बाह्य क्षेत्र के सामने कोई समस्या नहीं आएगी।
सुब्बाराव मंगलवार को पुणे में रिजर्व बैंक के आर्काइव म्यूजियम के उद्घाटन समारोह के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति बनाते वक्त दुनिया के घटनाक्रम को भी ध्यान में रखेगा। उनका कहना था कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार काफी संतोषजनक स्तर पर है और हम किसी भी आकस्मिकता से आसानी से निपट सकते हैं। देश से डॉलर के बाहर जाने पर भी ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। यह वित्तीय बाजारों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है वे हमारे सुरक्षित ठोर की दिशा में भागते हैं।
हालांकि रिजर्व बैंक गवर्नर ने माना कि मुद्रास्फीति की मौजूदा दर अपेक्षित स्तर से ऊपर बनी हुई है। उनकी इस स्वीकारोक्ति से माना जा रहा है कि 27 जुलाई की समीक्षा में रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति को कठोर बना सकता है। दूसरे शब्दों में ब्याज दरों (रेपो व रिवर्स रेपो दर) में इजाफा हो सकता है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर इस साल फरवरी में 16 महीनों के उच्चतम स्तर 10 फीसदी पर पहुंच गई थी। हालांकि उसके बाद अप्रैल में यह घटकर 9.59 फीसदी पर आ गई है।
सुब्बाराव के मुताबिक 2009-10 में जीडीपी का 7.4 फीसदी बढ़ना उत्साहवर्धक है, लेकिन चौंकानेवाला नहीं। उनका कहना है कि रिजर्व बैंक ने तो अप्रैल में सालाना मौद्रिक नीति पेश करते वक्त ही कह दिया था कि 2009-10 में जीडीपी की विकास दर 7.5 फीसदी के आसपास रहेगी।
इस बीच वाणिज्य मंत्रालय ने अप्रैल माह में देश के विदेशी व्यापार के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक इस अप्रैल में हमारा निर्यात 16.89 अरब डॉलर का रहा है, जो अप्रैल 2009 के निर्यात 12.39 अरब डॉलर से 36.2 फीसदी ज्यादा है। यह हमारे निर्यात में लगातार छठे महीने हुई वृद्धि है। लेकिन यूरोप का संकट हमारे लिए थोड़ी परेशानी पैदा कर सकता है क्योंकि हमारे लगभग 20 फीसदी निर्यात यूरोपीय संघ के देशों को जाते हैं। वैसे, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष ए शक्तिवेल का कहना है कि हमारे बड़े खरीदार जर्मनी, इटली और फ्रांस हैं। इसलिए ग्रीस के संकट का हम पर बेहद मामूली असर पड़ेगा।