सारा बाजार, तमाम अर्थशास्त्री और बैंकर यही मान रहे हैं कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को जस का तस 6 फीसदी पर रखेगा और रेपो व रिवर्स रेपो दर में 0.25 फीसदी की वृद्धि कर सकता है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक रिजर्व बैंक फिलहाल चौंकाने के मूड में है और वह सीआरआर को तो नहीं छेड़ेगा, पर रेपो और रिवर्स रेपो में 0.25 फीसदी की जगह 0.50 फीसदी की वृद्धि करने जा रहा है। हो सकता है कि रेपो में 0.25 फीसदी की ही वृद्धि की जाए, लेकिन रिवर्स रेपो में 0.50 फीसदी की वृद्धि लगभग तय है। अभी रेपो की दर 5.50 फीसदी और रिवर्स रेपो की दर 4 फीसदी है, जिसे बढ़ाकर क्रमशः 5.75 या 6 फीसदी और 4.50 फीसदी किए जाने के आसार हैं।
सीआरआर बैंकों की कुल जमाराशि का वह हिस्सा है जिसे बैंकों को रिजर्व बैंक के पास हमेशा कैश के रूप में रखना होता है। अभी बैंकों ने सीआरआर में रिजर्व बैंक के पास 2,96,872 करोड़ रुपए रख रखे हैं। रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक अमूमन एक या तीन दिनों के लिए बैंकों को रकम मुहैया कराता है, जबकि रिवर्स रेपो वह ब्याज दर जो रिजर्व बैंक एक या दिनों के लिए बैंकों द्वारा जमा कराई गई रकम पर देता है।
असल में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रिजर्व बैंक के लिए असली चुनौती बन गया है। इस साल फरवरी से ही मुद्रास्फीति की दर दहाई अंकों में चल रही है। जून महीने में इसके अंतरिम आंकड़े 10.55 फीसदी के रहे हैं। सरकार की तरफ से भी मुद्रास्फीति पर जल्द से जल्द काबू पाने का दबाव है। अब यह भी साफ हो गया है कि केवल खाद्य पदार्थों में ही नहीं, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से बनी चीजों में भी महंगाई का दौर शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन भी तीन दिन पहले ब्याज दरें बढ़ाने की वकालत कर चुके हैं। इसलिए रेपो और रिवर्स रेपो दर का बढ़ना तय है। लेकिन रिजर्व बैंक अपना गंभीर व प्रो-एक्टिव रुख दिखाने के लिए इनमें 0.25 फीसदी के बजाय 0.50 फीसदी की वृद्धि कर सकता है।
वैसे भी बैंक इस समय रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो में बहुत मामूली रकम जमा करा रहे हैं। जैसे, उन्होंने शुक्रवार 23 जुलाई के रिवर्स रेपो में केवल 135 करोड़ रुपए जमा कराए थे और आज सोमवार को सुबह के चल निधि समायोजन (एलएएफ) में यह रकम शून्य रही है। इसलिए यह दर 4 फीसदी रहे या 4.50 फीसदी, इसका व्यावहारिक रूप से महज सांकेतिक महत्व है। दूसरी तरफ 23 जुलाई को बैंकों ने रेपो दर पर रिजर्व बैंक से 68,180 करोड़ रुपए उधार लिए थे और आज सोमवार को पहले एलएएफ में ही 35,785 करोड़ रुपए ले चुके हैं। दूसरे एलएएफ में इसमें कम से कम 30,000 करोड़ रुपए और बढ़ जाएंगे।
इसलिए रेपो दर ही असली व्यावहारिक ब्याज दर है। इसे बढ़ाकर 5.75 या 6 फीसदी कर देने के रिजर्व बैंक साफ संकेत देगा कि वह धन की उपलब्धता को महंगा कर रहा है। इससे आसान धन से उपजनेवाली मांग पर काबू लगेगा और सप्लाई की स्थिति पहले जैसी रहने पर भी मांग घट जाएगी जिससे मुद्रास्फीति कम हो सकती है। आगे मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं भी ज्यादा आधार न पकड़ पाएं, इसलिए रिजर्व बैंक रेपो में 0.25 फीसदी के बजाय 0.50 फीसदी की वृद्धि की सोच रहा है।
जानकारों का कहना है कि अक्टूबर 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के उजागर होने से समय रेपो की दर 9 फीसदी और रिवर्स रेपो की दर 6 फीसदी थी। इसलिए रिजर्व बैंक रेपो को 6 फीसदी और रिवर्स रेपो को 4.50 फीसदी पर लाकर प्रोत्साहन के बीच दृढ़ता का संकेत देना चाहता है। इसकी दो वजहें हैं। एक तो भारतीय अर्थव्यवस्था अब पूरी तरह पटरी पर आ गई है। दूसरे, कॉल मनी मार्केट में भी ब्याज दर 4 से 5.53 फीसदी है। रेंज 1.50 फीसदी के अंतर की है। इसलिए रिवर्स रेपो को सांकेतिक तौर पर 4.50 फीसदी करने पर रेपो दर का 6 फीसदी करना लाजिमी है।
हालांकि बैंकर इन गणनाओं से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। यूनियन बैंक के चेयरमैन एमवी नायर का कहना है कि यह साफ है कि मुद्रास्फीति का स्तर अब भी काफी ज्यादा है तो उस पर काबू पाया जाना जरूरी है। रेपो व रिवर्स रेपो 0.25 फीसदी बढ़ सकती हैं। एचडीएफसी की प्रबंध निदेशक रेणु सूद कर्नाड के मुताबिक रेपो और रिवर्स रेपो में 0.25 फीसदी की छोटी वृद्धि होने की संभावना है। बता दें कि रिजर्व बैंक ने इसी महीने 2 जुलाई से रिवर्स व रेपो दर में 0.25 फीसदी का इजाफा किया है। उससे पहले रेपो की दर 5.25 फीसदी और रिवर्स रेपो की दर 3.75 फीसदी थी।