नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा को वर्ष 2008 में नई कंपनियों को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटित करने में प्रधानमंत्री, वित्त मंत्रालय और विधि मंत्रालय की सलाह को नजरअंदाज करने का दोषी करार दिया है। मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में इस मामले में पेश कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार, दूरसंचार मंत्री के रूप में राजा के इस रवैये से सरकार को 1. 76 लाख करोड़ रुपए के संभावित राजस्व का नुकसान हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संचार एवं आईटी मंत्रालय ने कंपनियों को लाइसेंस के लिए आशय पत्र (एलओआई) जारी करने की तारीख को मनमाने तरीके से पहले कर 25 सितंबर, 2007 रख दिया। साथ ही मंत्रालय ने यह भी फैसला कर दिया कि स्पेक्ट्रम आवंटन ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नवंबर 2007 में दूरसंचार मंत्रालय को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि इसके लिए पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया को अपनाया जाए और स्पेक्ट्रम की कमी व अधिक संख्या में आवेदन मिलने के मद्देनजर ‘प्रवेश शुल्क में संशोधन’ किया जाए। कैग ने इस बात का खासकर तौर पर उल्लेख किया है कि विधि मंत्रालय ने बड़ी संख्या में मिले आवेदनों और स्पेक्ट्रम के मूल्य पर विचार करने के लिए मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) के गठन का सुझाव दिया था। पर दूरसंचार मंत्रालय ने उसे खारिज कर दिया।
उधर चेन्नई से मिली खबर के अनुसार ए राजा के आका और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने कहा है कि आलोचना करने के मामले में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी या कैग) को निष्पक्ष व पूर्वाग्रह रहित होना चाहिए। करुणानिधि ने कहा कि कैग ने 2जी आवंटन मामले में जिस दिन रिपोर्ट सार्वजनिक की, उस दिन शीर्ष लेखापरीक्षक की आलोचना की शक्ति बड़ी खुलकर सामने आई, जबकि इससे पहले वो दहबी-दबी रहती थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का पद सृजित किए जाने के 150 साल पूरे होने पर करुणानिधि का भाषण उनके पुत्र व उप-मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने पढ़कर सुनाया।