दो दिन पहले तक वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कह रहे थे कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश की आर्थिक विकास दर घटकर 7.3 फीसदी पर आ जाएगी। लेकिन अब उनका कहना है कि यह दर 7.5 फीसदी रहेगी जो इस साल के बजट में बताए गए 9 फीसदी के अनुमान से काफी कम है।
मुखर्जी ने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि मुझे भरोसा है कि हम वृद्धि दर में आई गिरावट की कुछ भरपाई कर पाएंगे और 2011-12 में अर्थव्यवस्था 7.5 फीसदी से अधिक की दर से बढ़ेगी। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 8.5 फीसदी रही थी।
बता दें कि बुधवार को घोषित आंकड़ों के अनुसार जुलाई-सितंबर 2011 के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर 6.9 फीसदी रही है, जो पिछले दो साल की सबसे कम वृद्धि दर है। वैसे, पहली छमाही (अप्रैल–सितंबर) की औसत वृद्धि दर 7.3 फीसदी दर्ज की गई है।
वित्त मंत्री ने 2011-12 के बजट में चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 9 फीसदी के 0.25 फीसदी ऊपर या नीचे रहने का अनुमान लगाया था। मुखर्जी ने कहा कि मेरा वृद्धि दर का अनुमान 2008 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के तत्काल बाद हासिल उपलब्धियों पर आधारित था। मैं इस मामले नरमी दिखाउंगा। मैं यह नहीं कह सकता कि हम उस आंकड़े पर पहुंच जाएंगे, जिसका अनुमान बजट में लगाया गया है।
वित्त मंत्री ने कहा, “हम यह नहीं उम्मीद कर सकते कि एक झटके में 9 फीसदी की ऊंची वृद्धि दर पर पहुंच जाएंगे। हमें इस साल कम वृद्धि दर पर संतोष करना होगा। अगले साल हम वृद्धि दर के आंकड़े को सुधारने का प्रयास करेंगे। इस साल वृद्धि दर एक फीसदी कम रह सकती है। हमें घरेलू मांग आधारित वृद्धि की रणनीति पर ध्यान देना होगा।”
इससे पहले इसी सप्ताह वित्त मंत्री ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक और राष्ट्रीय समस्याओं से जूझ रही है, जिसका असर वृद्धि के आंकड़ों में दिख रहा है। फिलहाल सकल मुद्रास्फीति दिसंबर, 2010 के बाद से 9 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। अक्तूबर में यह 9.73 फीसदी पर थी। 19 नवंबर को समाप्त सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति घटकर 8 फीसदी पर आ गई है।
वित्त मंत्री ने कहा कि लघु और मध्यम अवधि में देश को घरेलू मांग पर आधारित आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमने वित्तीय एकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि यह मुश्किल नजर आता है, लेकिन मुझे भरोसा है कि चालू वित्त वर्ष के लिए वित्तीय संतुलन का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। राज्य सरकारों को भी वित्तीय स्थायित्व के लिए काम करना होगा।”