राजनीति की नाभिनाल, सूखते कमल

बाजार लोगों का झुंड नहीं होता, भीड़ नहीं होता। वह आगा-पीछा, भूत-भविष्य देख अपना फायदा सोचकर चलनेवालों का सामूहिक विवेक होता है। ठीक उसी तरह जैसे चुनावों में अवाम का फैसला भीड़ का नहीं, बल्कि सामूहिक विवेक का फैसला होता है। हां, पहले बूथ कैप्चरिंग वगैरह चलती थी तो अवाम की सही चाहत सामने नहीं आ पाती थी। ईवीएम मशीनें आने व चुनिंदा चुनाव सुधारों के बाद हालात पहले से बेहतर हुए हैं। इसी तरह हमारे बाजार में भी अभी ‘बूथ-कैप्चरिंग’ चलती है। वित्त मंत्रालय व सेबी जैसे-जैसे जरूरी सुधार अपनाते जाएंगे, बाजार का सामूहिक विवेक निखरता जाएगा। लेकिन तब तक इसी से काम चलाना पड़ेगा। इसे फेंका नहीं जा सकता क्योंकि इसकी खामियों को दूर कर इसके भीतर से ही नए का जन्म होगा।

यह भी तथ्य है कि बाजार का सामूहिक विवेक बदलता रहता है। किसी समय राजनीतिक छत्रछाया रखनेवाली कंपनियों को खास तवज्जो मिलती थी। किसी बड़े नेता से करीबी रिश्ते होना अच्छी बात मानी जानी थी। ऐसे कंपनियों के शेयर भाव शान बखारते हुए चढ़े रहते थे। लेकिन पिछले कई महीनों से चल रहे घोटालों के दौर ने राजनीतिक रिश्तों वाली कंपनियों की शान को मिट्टी में मिला दिया है।

इस हफ्ते सन टीवी और स्पाइसजेट के साथ हमें यही देखने को मिला। तलहटा की रिपोर्ट पर राजनीतिक शोर उठने के बाद गुरुवार, 2 जून को सन टीवी के शेयर में 27.9 फीसदी और स्पाइसजेट के शेयर में 16.06 की भारी गिरावट आ गई। कारण, बाजार को लगता है कि केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन की हरकतों का खामियाजा उनके बड़े भाई कलानिधि मारन को भुगतना पड़ेगा। वैसे भी, आरोप यही है कि दयानिधि मारन से टेलिकॉम मंत्री रहते हुए मलयेशिया के जिस मैक्सिस ग्रुप (एयरसेल के नए मालिक) पर कृपा की है, उसने कलानिधि मारन की कंपनी सन डायरेक्ट में 20 फीसदी इक्विटी के रूप में 599 करोड़ रुपए लगाए हैं।

फिर मारन बंधु डीएमके प्रमुख करुणानिधि के भतीजे हैं। चुनावों में हराने के बाद जयललिता करुणानिधि और उनसे जुड़े लोगों से कायदे से निपटेंगी। वे तमिलनाडु में केबल टीवी वितरण का राष्ट्रीयकरण महज इसलिए करना चाहती हैं क्योंकि राज्य में इस धंधे पर सन टीवी का एकाधिकार है। स्पाइसजेट का दयानिधि मारन के घपलों-घोटालों से कोई लेना-देना नहीं है। वह प्रोफेशनली चलाई जा रही कंपनी है। लेकिन मारन को कुछ हुआ तो उसके प्रति बाजार की धारणा बदल जाएगी, जिसका असर शेयर के भावों पर पड़ेगा।

हमने इसी कॉलम में 31 मई को जब स्पाइसजेट के बारे में लिखा था, तब तहलका रिपोर्ट का लिंक देते हुए आगाह भी किया था कि दुर्घटना से सावधानी भली। असल में फिलहाल राजनीतिक रिश्तों वाली कंपनियों से दूर रहने में भी भलाई है। कुछ महीनों पहले एचसीसी का बुरा हश्र हुआ क्योंकि उसके मालिक अजित गुलाबचंद कृषि मंत्री शरद पवार के करीबी हैं। पवार के करीबियों में आईआरबी इंफ्रा के सीएमडी वीरेंद्र डी म्हैसकर भी शामिल हैं। जेपी समूह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का करीबी माना जाता है। एचडीआईएल के मालिक सारंग वाधवा कांग्रेस और शिवसेना दोनों के करीबी हैं।

इन सभी कंपनियों के शेयर पिछले कुछ महीनों में काफी पिटे हैं। इससे पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी के निधन के बाद आईवीआरसीएल और नागार्जुन कंस्ट्रक्शन (एनसीसी) का बुरा हाल हो चुका है। इन सबने साबित कर दिया है कि राजनीतिक वरदहस्त होना पहले जहां अच्छी बात मानी जाती थी, वहीं इसके बारे में बाजार की धारणा अब बदल गई है। इसलिए निवेशकों को राजनीतिक संपर्क वाली कंपनियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।

अब कुछ फुटकर-फुटकर बातें जो इस हफ्ते चर्चा-ए-खास के दौरान सामने आती रहीं…

  • बी ग्रुप के ज्यादातर शेयरों में लांग टर्म या दीर्घकालिक निवेश का खास फायदा नहीं होता। वे इतने चंचल होते हैं कि उनमें जमकर ऊंच-नीच होता रहता है। इसलिए बी ग्रुप के शेयरों को फेंटते रहना चाहिए। ए ग्रुप के शेयरों में लंबी अवधि के निवेश करना चाहिए और गिरने पर उन्हें फिर खरीद कर अपनी औसत लागत घटाते रहना चाहिए। लेकिन बी ग्रुप के लिए साथ यह करना चाहिए कि जब भी लक्षित फायदा हासिल हो, बेचकर मुनाफा कमा लेना चाहिए।
  • कुछ जानकारों का कहना है कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के स्टॉक्स में एफआईआई के निवेश पर रोक लगा देनी चाहिए। लेकिन ऐसा संभव नहीं है क्योंकि ऐसा हो गया तो एफआईआई हल्ला मचाकर पूरे बाजार को ही धूल चटा सकते हैं। फिर भी देर-सबेर तो एफआईआई को उनकी औकात बतानी ही पड़ेगी न!!!
  • सबकी अपनी-अपनी गणनाएं हैं। कंपनियां भी उत्साह से भविष्य की शानदार तस्वीर पेश करती रहती हैं। लेकिन इन सारी गणनाओं के बीच आपकी गणना क्या कहती है? देखभाल लीजिए। तभी निवेश का फैसला कीजिए।

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