मंदड़ियों को किसी कुर्सीवाले की शह!

निफ्टी टूटकर 5225 और सेंसेक्स 17508 तक चला गया। लेकिन मुझे जरा-सा भी गफलत नहीं है। मंदड़िये अपने हमले से बाजार का रुख बदल सकते हैं, मेरी राय नहीं। हालांकि मुझे यह मानने में कोई हिचक नहीं कि अब बाजार की नई तलहटी बनाने का काम मंदड़िये करेंगे क्योंकि इस समय सब कुछ उनके हाथ, उनके शिकंजे में है। इस बीच एलआईसी ने बाजार में खरीद शुरू कर दी है और अगले 30 दिनों में वह 15,000 करोड़ रुपए की खरीद करनेवाला है। एफआईआई की बिक्री अधिक से अधिक आधा अरब डॉलर (2250 करोड़ रुपए) से ज्यादा होने की उम्मीद नहीं है। इसलिए उसकी बिक्री पूरी तरह घरेलू संस्थाओं की खरीद से सोख ली जाएगी।

एलआईसी निफ्टी में 5200 के स्तर को बाजार में खरीद का स्तर मानता है, जबकि बहुत से उस्ताद 5000 से 5400 को खरीद का अच्छा स्तर मानते हैं। मंदड़िये अभी अपनी एक-एक दमड़ी लगाकर बाजार को तोड़ने की कोशिश में लगे है। लेकिन जिस दिन उनकी बिक्री पूरी तरह सोख ली जाएगी और बाजार बढ़ने लगेगा, उसी दिन से वे अपने शॉर्ट सौदे काटने लग जाएंगे। क्या हम 5000, 4800 या 6000 का स्तर पहले देखेंगे, यह केवल वक्त ही बताएगा। लेकिन मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे जैसी तमाम बुरी आशंकाओं के असर को बाजार मौजूदा स्थिति में गिन चुका है। इससे ज्यादा और बुरा क्या हो सकता है? यहां तक कि बाजार लोक-लुभावन और बेकार व प्रतिकूल बजट तक को डिस्काउंट करके चल रहा है।

हमारे राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि सीएजी (कैग) व सीबीआई से लेकर आयकर विभाग व सुप्रीम कोर्ट तक सत्ताधारी पार्टी के अधीन आते हैं। फिर भी अगर ये संस्थाएं घोटालों को बेपरदा कर रही हैं तो इसका मतलब है कि सत्ता में ही बैठा कोई राजनीतिक शख्स यह सब करा रहा है। बाजार (सेंसेक्स) 3500 अंक गिर चुका है। फिर भी वित्त मंत्री ने बाजार पर एक शब्द भी नहीं बोला है। क्यों? कुछ राजनीतिक ताकतें मंदड़ियों के साथ हैं जो भारतीय डेरिवेटिव सिस्टम की कमजोरी का फायदा उठाकर बिकवाली का दबाव पैदा कर रही हैं।

इसरो के तथाकथित घोटाले ने दरअसल इस तथ्य को उजागर किया है कि सरकार के पास और दो लाख करोड़ रुपए की आस्तियां हैं जो उसे अगले कुछ सालों में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3 फीसदी तक लाने में मददगार साबित होंगी। हम मुद्रास्फीति के बारे में कुछ ज्यादा ही शोर मचा रहे हैं। मेरा कहा नोट कर लें कि कुछ हफ्ते में ही बाजार फिर से 5700 के पार चला जाएगा और तब चर्चा तो दूर, कोई मुद्रास्फीति को याद भी नहीं रखेगा।

मैं मानता हूं कि वक्त आ गया है कि शेयर बाजार अपनी आवाज बुलंद करे और मांग करे कि बाजार को अवांछित तत्वों व प्रभावों से मुक्त किया जाए। मैं पूरी तरह इक्विटी में अपना निवेश बनाए रखूंगा और सोने व चांदी पर दांव घटा दूंगा।

रहस्य हमें आश्चर्य में डाल देता है और आश्चर्य ही इंसान की जानने-समझने की इच्छा या जिज्ञासा के मूल में है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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