पहले लंगोटी हुआ करती थी। कहा जाता था कि भागते भूत ही लंगोटी ही भली। लंगोटी फिर चड्ढी हो गई। और, अब चड्ढी में भी तमाम ब्रांड हो गए। लोकल से लेकर ग्लोबल तक। अमेरिका का ऐसा ही ब्रांड है जॉकी। देखे होंगे आपने इसके विज्ञापन। अमेरिकी कंपनी जॉकी इंटरनेशनल के इस ब्रांड को भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल व संयुक्त अरब अमीरात में बेचने का इकलौता लाइसेंस मिला हुआ है पेज़ इंडस्ट्रीज़ को, जिसके एवज में उसे पांच फीसदी रॉयल्टी अमेरिकी कंपनी को देनी होती है। आज हम इसी कंपनी की चर्चा करने जा रहे हैं। वैसे, क्या बात है! नाम है पेज़ इंडस्ट्रीज़ और बेचती है चड्ढी। शेख्सपियर ने ठीक ही लिखा था कि नाम में क्या रखा है।
यूं तो चड्ढी जैसी चीज़ में कोई चमत्कारी तकनीक नहीं होती जिसके लिए बाहर को मुंह जोहना पड़े। लेकिन ब्रांडों को लेकर मरी जा रही इस दुनिया में धंधे में ब्रांड बहुत काम का होता है। जॉकी करीब 130 साल पुराना ब्रांड है। दुनिया के सौ से ज्याद देशों में पहुंचा हुआ है। पेज़ इंडस्ट्रीज़ ने मौका देखकर इसे पकड़ लिया। बड़ा सीधा आसान-सा धंधा है। कुछ भी हो जाए, कितनी भी मंदी या महामंदी आ जाए, लोग अंडरवियर तो पहनना छोडेंगे नहीं और उसमें भी ग्लोबल होती इस दुनिया में भारत का बढ़ता मध्यवर्ग दुकान में जाते ही बड़ा ब्रांड तो देखता ही है।
1995 में बैगलोर से पेज़ इंडस्ट्रीज़ की शुरुआत हुई। वैसे तो प्रदीप जयपुरिया कंपनी के चेयरमैन हैं। लेकिन कंपनी का असली कर्ताधर्ता जेनोमल परिवार है। यह परिवार 50 सालों तक फिलीपींस में जॉकी ब्रांड का इकलौता लाइसेंसी रहा है। वहां एक और ब्रांड स्पीडो उसके पास 1988 से था। साल 2011 से उसने भारत के लिए भी स्पीडो ब्रांड का लाइसेंस हासिल कर लिया। पेज़ इंडस्ट्रीज के आठ सदस्यीय निदेशक बोर्ड के तीन सदस्य जेनोमल परिवार के हैं। सुंदर जेनोमल उसके प्रबंध निदेशक हैं।
कंपनी ने जॉकी ब्रांड के अंडवियर बनाने के लिए बैंगलोर में आठ इकाइयां लगा रखी हैं जो करीब 7.35 लाख वर्ग फुट में फैली हैं। इन्हें बनाने में करीब 13,000 लोग लगे हैं। उसने बैंगलोर में ही अपनी नौंवी इकाई में व्यावसायिक उत्पादन महीने भर पहले 12 मार्च से शुरू किया है। वितरण तंत्र की बात करें तो देश के 1200 से ज्यादा नगरों व शहरों में लगभग 20,000 रिटेल स्टोरों पर उसका माल बिकता है। इसके अलावा देश भर में जॉकी के 70 एक्सक्लूसिव ब्रांड आउटलेट हैं।
पिछले तीन सालों में कंपनी की बिक्री 37.78 फीसदी और शुद्ध लाभ 34.90 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। उसने साल 2010-11 में 491.56 करोड़ रुपए की बिक्री पर 58.55 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। बीते साल 2011-12 में दिसंबर तक के नौ महीनों में ही वह 529.12 करोड़ रुपए की बिक्री पर 72.94 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमा चुकी है। 2011-12 के लिए वह अभी तक मई, नवंबर व फरवरी तीन अंतरिम लाभांश घोषित कर चुकी है। दस रुपए के शेयर पर कुल अंतरिम लाभांश 27 रुपए (270 फीसदी) है।
लेकिन इतने ज्यादा लाभांश के बावजूद उसका लाभांश यील्ड मात्र 0.96 फीसदी है। कारण उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर अभी 2700 रुपए के ऊपर चल रहा है। कल यह बीएसई (कोड – 532827) में 2718 रुपए और एनएसई (कोड – PAGEIND) में 2718.60 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू 111 रुपए है। दिसंबर तक के नतीजों के आधार पर उसका तब तक के बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 76.95 रुपए है। इस तरह यह शेयर फिलहाल 35.28 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।
यह निश्चित रूप से काफी महंगा है। लेकिन एक प्रमुख इक्विटी रिसर्च फर्म के अनुसार 2014-15 में कंपनी का ईपीएस 162.6 रुपए रहने का अनुमान है। तब के ईपीएस को देखते हुए उसका शेयर अभी 16.72 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसलिए इसमें वे लोग ही निवेश करें जो इसे कम से कम चार साल तक लगाए रखना चाहते हैं। बता दें कि पेज़ इंडस्ट्रीज़ का आईपीओ फरवरी 2007 में आया था जिसमें इसके दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर 360 रुपए पर जारी किए गए थे। निवेशकों की पूंजी पिछले पांच साल में यह स्टॉक 7.55 गुना कर चुका है। अगले पांच सालों में कोई अनहोनी नहीं हुई तो दोगुना तो कर ही सकता है।
यकीनन यह ऐसा धंधा जिसमें कोई भी घुस सकता है। पेज़ इंडस्ट्रीज का नियोजित पूंजी पर रिटर्न 48.19 फीसदी और इक्विटी पर रिटर्न 52.56 फीसदी है। इतना पाने की कोशिश कौन नहीं रहेगा। यहां कोई एंट्री-बैरियर भी नहीं है। लेकिन जहां ब्रांडों की तूती बोलती हो, वहां किसी के लिए भी जॉकी जैसा अंतरराष्ट्रीय बांड पकड़ना कठिन होगा।
यह शेयर इसी साल 6 फरवरी 2012 को 3018.90 रुपए तक चला गया था जो इसका अब तक उच्चतम स्तर है। वहीं पिछले साल 4 मई 2011 को इसका 52 हफ्तों का न्यूनतम स्तर 1575 रुपए का रहा है। किसी वजह से घटकर 2000 रुपए के आसपास आ जाए तो इसे लेने में कोई हर्ज नहीं है। कंपनी की 11.15 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 59.70 फीसदी है, जबकि एफआईआई ने इसके 14.87 फीसदी और डीआईआई ने 19.4 फीसदी शेयर ले रखे हैं। इस तरह आम पब्लिक व अन्य निवेशकों के पास इसके मात्र 6 फीसदी शेयर ही है।