कोई भी कह सकता है कि लगातार नौ सत्रों तक घाटा खाने के बाद सेंसेक्स का उठना लाजिमी था और इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद तो मरी हुई बिल्ली भी थोड़ा उछलती है। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। जब कुछ भी सामान्य नहीं रहा तो बेचारे निवेशक गफलत में पड़ गए कि सब कुछ बाहर से आ रही बुरी खबरों का नतीजा है। तभी अचानक उन्हें अहसास होता है कि ऐसा नहीं था तो झटका लगना और उनका पलटकर उठना स्वाभाविक है। निफ्टी आज अगर 0.71 फीसदी बढ़कर 4812.35 और सेंसेक्स 0.75 फीसदी बढ़कर 16,065.42 अंक पर बंद हुआ है तो इसकी खास वजह यही है।
यह बहुत ऊंचाई से गिरकर मरी हुई बिल्ली के उछलने का मामला नहीं है। यह बाजार के उस्तादों द्वारा हमारे सिस्टम के दुरुपयोग की पराकाष्ठा और उसका नतीजा है। अगर डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट की व्यवस्था रहती है तो मैं शर्त लगा सकता हूं कि ऐसी भयावह गिरावट आ ही नहीं सकती थी क्योंकि अभी की हालत में उस्ताद लोग जो काम मजे में कर ले जाते हैं, वह फिजिकल सेटलमेंट की सूरत उनकी ही जेब पर भारी पड़ जाता। लेकिन परवाह किसे है? ये खेल धन से लबालब डीआईआई व म्यूचुअल फंडों को निचोड़ने के लिए है नहीं। रिटेल निवेशकों का तो पहली दीवाला पिट चुका है। ऐसे में कोई उनको निचोड़ भी कितना सकता है?
सारा मसला रुपए का है जिसने शेयर बाजार में खलबली मचा रखी है। लेहमान संकट के वक्त एफआईआई ने बाजार से 14 अरब डॉलर निकाले थे, जिससे डॉलर उस वक्त 52 रुपए का हो गया था। इस बार एफआईआई की तरफ से 3 अरब डॉलर से भी कम की बिकवाली हुई है जिसे ‘असामान्य’ नहीं माना जाएगा। फिर भी डॉलर के सापेक्ष रुपया कमजोर होकर 52.76 तक पहुंच गया। साफ मतलब है कि एफआईआई के अलावा कुछ कॉरपोरेट हाउस व बैंक हैं जिन्होंने हाल-फिलहाल भारत से 15 अरब डॉलर से ज्यादा निकाले हैं।
इसने रिजर्व बैंक को भी पसोपेश में डाल दिया है। लेकिन यह तो उसी का किया धरा है। मुद्रा बाजार में जो प्रणाली है, उसमें कोई भी उससे खेल सकता है क्योंकि वहां डिलीवरी का कोई विकल्प ही नहीं है। शेयर बाजार और मुद्रा बाजार दोनों ही एक ही रोग के शिकार हैं। लेकिन न तो रिजर्व बैंक और न ही सरकार शेयर बाजार के बारे में कुछ कह सकती है क्योंकि इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं हो रहा। पर, मुद्रा बाजार के बारे में इन्होंने अपनी चिंता जता दी है।
रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव सौदों में डिलीवरी का विकल्प लाने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है ताकि वह रुपए की चाल को नियंत्रित कर सके। इस समय तो कोई और ही रुपए की चाल को नियंत्रित करता दिख रहा है। असल में भारतीय कंपनियों को इससे 8000 करोड़ रुपए की आमदनी का नुकसान हुआ है, जबकि पूंजी खाते के नुकसान का पता नहीं। इस स्थिति से कुछ लोगों का फायदा हुआ है। हालांकि कोई नहीं जानता कि फायदा उठानेवाले हैं कौन। अगस्त से नवंबर तक के विदेशी मुद्रा हेजिंग के आंकड़े रिजर्व बैंक को ही पता हैं और ये आंकड़े यकीकन फायदा उठानेवाले का भेद खोल सकते हैं।
रुपया काफी ज्यादा गिर चुका है। फिर भी चर्चा है कि डॉलर 60 रुपए का हो सकता है। हालांकि मेरा मानना है कि पुराने निचले स्तर को अब तोड़ देने के बाद यह बहुत तेजी से वापस 48 रुपए के स्तर पर आ जाएगा। आप इस मसले की गंभीरता इस तथ्य से समझी जा सकती है कि भारत इकलौता देश है जिसकी मुद्रा का मूल्य 12 फीसदी (वास्तिवक नुकसान 20 फीसदी से ज्यादा) गिरा है, जबकि दुनिया के किसी अन्य देश की मुद्रा 3 फीसदी से ज्यादा नहीं गिरी है जिसका मतलब है कि इसके पीछे कोई न कोई जोड़तोड़ या खेल जरूर है।
रुपए की इस दुर्गति ने शेयर बाजार पर आघात किया है। अब वक्त है कि भारत में कुछ बड़े स्तर का विदेशी पूंजी निवेश आए और बाजार तब फिर से उठेगा क्योंकि रुपए के 53 से 48 पर पहुंचने का मतलब 10 फीसदी और 43 पर पहुंचने का मतलब निवेश पर सीधा 20 फीसदी रिटर्न है। शायद रिटर्न की यह दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसलिए जीडीपी की विकास दर 6 फीसदी रहने पर भी भारत निवेश का सबसे सुरक्षित गंतव्य हो सकता है।
यह एफआईआई और विदेशी निवेशकों के लिए सुनहरा अवसर है। मैं तो यहां तक कह सकता हूं कि अब भारतीयों का सारा काला धन भारत में बोगस निर्यात आय या निवेश के जरिए वापस आएगा और इसमें 20 फीसदी बढ़त उनकी सारी कर अदायगी के बोझ को बराबर कर देगी।
निवेश बनाए रखें। रोलओवर का चक्र अपना काम कर रहा है। फिजिकल सेटलमेंट के न होने पर कोई भी हल्ला नहीं मचाने जा रहा। इसलिए आपको यह तकलीफ उठानी ही पड़ेगी। लेकिन मेरा मानना है कि जो भी इस वक्त निवेश करेंगे, उन्हें इक्विटी पर सबसे अच्छा रिटर्न मिलेगा।
रीयल्टी के धंधे की तेजी अपने आखिरी चरण में है। इसकी तुलना पेनी स्टॉक्स की रैली से की जा सकती है जहां गुब्बारा बड़ी तेजी से फूटा था। वहीं सोना भी अपने चरम पर पहुंचा हुआ है। हर टियर-3 शहर में इसमें डब्बा ट्रेडिंग जमकर हो रही है। सोने पर वहां कितना ज्यादा दांव लगा है, इसका भरोसा करना मुश्किल है। एक नए म्यूचुअल फंड ने 280 करोड़ रुपए का सोना खरीदा है जिससे लगता है कि इसमें ओवरबॉट की स्थिति आ चुकी है। रीयल्टी और सोने में भारी गिरावट का अंदेशा है। अभी जो लोग इनके सौदों में मजे ले रहे हैं, उन्हें आनेवाले महीनों में शेयर बाजार की तरह कत्लोगारद का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, शेयर बाजार की हालत अब बलात्कार की शिकार महिला की हो चुकी है, जिसके पास गंवाने को कुछ नहीं बचा। अब सब कुछ गिरेगा। केवल इक्विटी शेयर ही इस वक्त निवेश का सबसे सुरक्षित ठिकाना रह गए हैं।
सामान्य होना ऐसी कोई चीज नहीं है जिसकी तमन्ना की जाए। यह तो एक तरह का बौनापन है जिससे हमेशा बचने की कोशिश करनी चाहिए।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)
sirji, aap ne acha likha he, aap har wak delivery or derivative sode ki baat karte he, magar sebi ke kaan me or sarkar ki kaan me kyu ye bate nahi aati, aap govt, ko batate kyu nahi, hamari desh ki halat share mkt se paise chale jane se hoti he, agar aaj wo physical hota to hamara mkt stronge hota , kyu sirji