शेयर बाज़ार के डेरिवेटिव सेगमेंट का निर्मम सच यही है कि इसमें सबसे ज्यादा कारोबार निफ्टी ऑप्शंस में होता है जिसमें ज्यादातर आम ट्रेडर आप्शंस बेचते नहीं, खरीदते हैं। लेकिन दो-तिहाई से लेकर तीन-चौथाई से ज्यादा मामलों (मोटे तौर पर दस में से आठ) में आप्शंस खरीदने नहीं, बल्कि बेचने वालों को फायदा होता है। कमाल की बात यह है कि यह किसी साजिश या समझ के चलते नहीं, बल्कि ऑप्शंस के भाव निर्धारण के तरीके में निहित लोचे के कारण होता है।
पहली बात एक बार फिर दोहरा लें कि स्टॉक ऑप्शंस को अमेरिकी पद्धति की वजह से एक्सपायरी के पहले भी बेचा जा सकता है। लेकिन यूरोपीय पद्धति होने के कारण इंडेक्स ऑप्शंस में रोज़-ब-रोज़ के बढ़ते-गिरते भावों से ऑप्शंस खरीद चुके ट्रेडरों का रत्ती भर भी वास्ता या लेना-देना नहीं। ये भाव होते ही उनके लिए होते हैं, जिन्हें ऑप्शंस बेचने होते हैं। ऑप्शंस के भावों की संरचना दोबारा उदाहरण से समझते हैं। मसलन आज, 23 अप्रैल 2020 को एक्सपायर हो रहे 9200 स्ट्राइक प्राइस के निफ्टी कॉल ऑप्शन का भाव या प्रीमियम कल 73.70 प्रतिशत बढ़कर 72 रुपए हो गया। इस तरह 9200 स्ट्राइक प्राइस का कॉल ऑप्शन बेचनेवाले या राइटर को 75 के एक लॉट पर 41.45 x 75 = 3108.75 रुपए के बजाय 72 x 75 = 5400 रुपए का प्रीमियम मिला। आज अगर निफ्टी 9200 या इससे नीचे बंद होता है तो सारा का सारा प्रीमियम कॉल ऑप्शन राइटर के मुनाफा खाते में चला जाएगा।
मान लीजिए कि निफ्टी अगर 9250 पर बंद होता है तब अगर 9200 के स्ट्राइक प्राइस वाला कॉल ऑप्शन धारक निफ्टी को खरीदने के अधिकार का पालन करता है तब भी उसकी लागत प्रीमियम + स्ट्राइक मूल्य = 72 + 9200 = 9272 पड़ेगी। जाहिर है कि वह निफ्टी को बंद भाव से ज्यादा में खरीदने की मूर्खता नहीं करेगा तो वह अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करेगा। तब भी प्रीमियम कॉल ऑप्शन राइटर की जेब में चला जाएगा। वहीं, निफ्टी अगर 9300 पर बंद होता है, तब कॉल ऑप्शन धारक के लाभ की गणना फॉर्मूले के हिसाब से करते हैं:
π = max [(Spot Price – Strike Price), 0] – Premium या ऑप्शन का भाव
π = max [(9300 – 9200), 0] – 72 = 100 – 72 = 28 रुपए
इस तरह 72 रुपए लगाने पर 28 रुपए यानी 38.89 प्रतिशत का फायदा। वह निफ्टी को 9200 पर खरीदने के अधिकार का प्रयोग करेगा और कैश सेटलमेंट के नाते उसे 75 के लॉट पर लगाए गए 5400 रुपए के एवज में (निफ्टी की प्रति यूनिट पर 100 का अंतर) 7500 रुपए मिल जाएंगे। इससे उसे 2100 रुपए का फायदा हो जाएगा। चूंकि ऑप्शन सौदे में भी ज़ीरो-सम गेम चलता है। इसलिए इस सौदे में 2100 रुपए का ही नुकसान ऑप्शन बेचने वाले या राइटर को हो जाएगा।
ध्यान दें कि कॉल ऑप्शन राइटर या बेचनेवाले को अधिकतम लाभ तब होता है जब निफ्टी का सेटलमेंट या स्पॉट भाव, स्ट्राइक प्राइस के बराबर या उससे कम रहता है। लेकिन जैसे ही सेटलमेंट या स्पॉट भाव स्ट्राइक प्राइस से ऊपर जाने लगता है, उसका घाटा बढ़ता चला जाता है। कॉल ऑप्शन खरीदनेवाले का घाटा तो दिए गए भाव या प्रीमियम तक सीमित है, जबकि बेचनेवाले के घाटे की कोई सीमा नहीं है। हालांकि व्यवहार में ऑप्शन बेचनेवाले ही अधिकांशतया मुनाफा कमाते हैं।
अब एक पुट ऑप्शन का उदाहरण लेकर आज की बात समाप्त करते हैं। आज 23 अप्रैल 2020 को एक्सपाय़र हो रहे निफ्टी में 9500 के स्ट्राइक प्राइस वाले पुट ऑप्शन का भाव या प्रीमियम 231.70 प्रतिशत घटकर 322.55 रुपए हो गया। इस तरह 9500 के स्ट्राइक प्राइस का पुट ऑप्शन बेचनेवाले या राइटर को 75 के एक लॉट पर 544.25 x 75 = 41,568.75 रुपए के बजाय 322.55 x 75 = 24,191.25 रुपए का ही प्रीमियम मिला। आज निफ्टी अगर 9500 के स्ट्राइक प्राइस के बराबर या उससे ऊपर बंद होता है तो पुट ऑप्शन बेचनेवाले को सारा का सारा प्रीमियम मिल जाएगा और उसे फायदा होगा। याद रखें कि पुट ऑप्शन विक्रेता या राइटर के लिए प्रति यूनिट लाभ का फॉर्मूला है:
π = Premium – max [(Strike Price – Spot Price), 0]
= Premium – max [(Intrinsic Value), 0]
अगर निफ्टी का सेटलमेंट या स्पॉट मूल्य आज 9550 रहता है तो इस ऑप्शन के राइटर का लाभ होगा…
π = 322.55 – max [(9500 – 9550), 0] = 322.55 – max [-50, 0] = 322.55 रुपए
निफ्टी ऑप्शन के 75 के लॉट पर उसका कुल फायदा 24,191.25 रुपए, जबकि यह ऑप्शन खरीदनेवाले को इतने का ही घाटा हो जाएगा क्योकि इस सौदे के लिए उसने इतनी ही रकम बतौर प्रीमियम दी थी।
लेकिन अगर आज निफ्टी 9200 रुपए पर बंद होता है. तब 9500 के स्ट्राइक प्राइस वाले निफ्टी पुट ऑप्शन खरीदनेवाले को कितना फायदा होगा, इसकी गणना करते हैं। उसके लाभ का फॉर्मूला है:
π = max [(Strike Price – Spot Price), 0] – Premium या ऑप्शन का भाव
= max [(9500 – 9200), 0] – 322.55 = max [300, 0] – 322.55
= 300 – 322.55 = -22.55 रुपए
जाहिर है कि कोई भी ट्रेडर 322.55 रुपए प्रति यूनिट का प्रीमियम देने पर ऊपर से 22.55 रुपए का घाटा कतई नहीं उठाएगा। इसलिए वह 9500 के भाव पर निफ्टी बेचने के अधिकार का प्रयोग नहीं करेगा तो प्रति यूनिट 322.55 रुपए का प्रीमियम ऑप्शन राइटर के खाते में चला जाएगा।
अब शायद आपको समझ में आ गया होगा कि हमने इस लेख के शुरू में ही क्यों कहा था कि दो-तिहाई से लेकर तीन-चौथाई से ज्यादा मामलों में आप्शंस खरीदनेवालों को नहीं, बल्कि बेचनेवालों को फायदा होता है। यह किसी साजिश या समझदारी का नतीजा नहीं, बल्कि ऑप्शंस के भाव-निर्धारण के तरीके में ही ऐसा लोचा है।
बाज़ार के पहुंचे हुए विशेषज्ञ कहते हैं कि आम ट्रेडरों में रिस्क लेने की क्षमता कम है तो उन्हें ऑप्शन खरीदने की ही रणनीति अपनानी चाहिए। ऑप्शन बेचने या राइटिंग का काम ज्यादा परिष्कृत, मंजे हुए व गहरी जेब वाले ट्रेडरों को करना चाहिए क्योंकि ऑप्शन बेचने में रिवॉर्ड की तुलना में रिस्क ज्यादा है। लेकिन व्यावहारिक बात यह है कि ऑप्शन राइटर बनने में ज्यादा फायदा है। हालांकि ऑप्शन राइटर बनना कतई आसान नहीं। कैसे, यह बताएंगे कल के पाठ या लेख में।