निराशावादी चिंतन का कोई अंत नहीं है। निवेश फंडों या ब्रोकरेज हाउसों के सरगना अपने निहित स्वार्थों के चलते बाजार को लेकर जैसी निराशा फैला रहे हैं, उसका भी कोई अंत नहीं है। लेकिन मैं इनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करता क्योंकि मैं कोई ब्रोकिंग के धंधे में तो हूं नहीं। फंड अपने फैसलों को जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि वे जन-धन का प्रबंधन कर रहे हैं। सच यह है कि फंड कुछ कमाए या न कमाए, फंड मैनेजर मजे में मोटी तनख्वाह पीटता रहता है। बीएमडब्ल्यू से चलता है। पॉश इलाके में समुद्र का नजारा दिखानेवाले फ्लैट में रहता है। निवेशक घाटा उठाए या उसकी पूंजी डूब जाए, इससे फंड मैनेजर की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
खैर, इनको दुरुस्त करना न तो मेरा काम है और न ही यह मेरे वश में है। एडवांस टैक्स के आंकड़े साफ दिखाते हैं कि कंपनियों का मुनाफा अच्छा-खासा बढ़ा है और कहीं कोई सुस्ती या धीमापन नहीं है। रिजर्व बैंक ने पहली बार ब्याज दरे मार्च 2010 में बढ़ाई थीं। उसके साल भर बाद भी भारत में कॉरपोरेट क्षेत्र का मुनाफा जबरदस्त है और विकास शानदार है। हालांकि ब्याज पर अदायगी बढ़ी है, लेकिन दिए गए ब्याज और हासिल बिक्री का अनुपात घट गया है जो दिखाता है कि दरों में वृद्धि धंधे में विकास के द्वारा पूरी तरह सोख ली गई है। चौथी तिमाही में कॉरपोरेट क्षेत्र की औसत विकास दर 25 फीसदी रहेगी, जबकि अभी तक अनुमान 22 फीसदी का ही लगाया जा रहा था।
यह एक निर्णायक बिंदु हो सकता है। कारण, बहुत सारे विश्लेषकों ने नए वित्त वर्ष 2011-12 में लाभ में वृद्धि को कमतर आंका है। कुछ कह रहे हैं कि यह दर घटकर 15 से 18 फीसदी तक आ सकती है। लेकिन चौथी तिमाही में 25 फीसदी के आंकड़ों के बाद मुझे कोई शक नहीं है कि हम वित्त वर्ष 2011-12 में कम से कम 20 फीसदी वृद्धि दर हासिल कर लेंगे। और, 20 फीसदी वृद्धि दर के आधार पर सेंसेक्स 24,000 से 25,000 तक पहुंच सकता है।
नकारात्मक सोच ने तरह-तरह के सूत्र व सिद्धांत पेश कर दिए हैं। जैसे, जापान अब समूची दुनिया से अपना धन खींच लेगा ताकि उसे देश के भीतर फिर से निवेश किया जा सके। यह सब बकवास है। 69 सालों का इतिहास बताता है कि किसी भी संकट के वक्त जापान ने बाहर से कोई धन वापस नहीं खींचा है। मैंने छह महीने पहले अपने ब्लॉग पर लिखा था कि जापान आर्थिक विकास की अगली पांत में होगा। अब इस आपदा ने जापान में उस स्थिति तक पहुंचने का माद्दा भर दिया है। याद करें, दूसरे विश्व युद्ध की तबाही ने जापान में वो जुनून भर दिया था कि वह दुनिया की नंबर-1 अर्थव्यवस्था बन गया।
भूकंप व सुनामी की त्रासदी जापान की उस ताकत को फिर से जगाएगी और अपेक्षा से कम समय में वह अपने को संभाल लेगा। लेहमान संकट ने अमेरिका को तोड़कर बैठा दिया था। लेकिन दो साल बीतते-बीतते अमेरिका पटरी पर आ गया। कोई शक नहीं कि इस तरह की क्रांति में दो साल लग सकते हैं। लेकिन इतना तय है कि जापान वापस अपने रंग में आएगा और तब हम 2012 से लेकर 2015 तक शेयर बाजार में अब तक की सबसे बड़ी तेजी का दौर देखेंगे। सेंसेक्स तब 45,000 की मंजिल चूम लेगा।
यह वक्त अपने स्टॉक्स को बेचने का नहीं है। अगर आप जापान को भौतिक और वित्तीय रूप से मदद नहीं कर सकते तो कम से कम अफवाहें फैलाने के गंदे खेल से तो तौबा करें क्योंकि इससे हमारे ही लोगों को भारी नुकसान हो रहा है।
अगले दो हफ्ते तक खुद को संभाले रखें। मेरी बात नोट कर लें कि मंदडियों के हमलों के बावजूद अगर बाजार मौजूदा स्तर पर बना रहता है तो समझिए कि यह तलहटी फिर नहीं आनेवाली और फिर आपको अप्रैल या मई तक खरीदने की कोई मौका नहीं मिलेगा।
मैं प्रकृति की दया पर कितना भी निर्भर हूं, लेकिन मैं दुखों के आगे हथियार नहीं डालूंगा। मेरा यकीन है कि हम में से हर कोई दुखों के पहाड़ को काटने में थोड़ा योगदान तो कर ही सकता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)