प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री तक भले ही लघु उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र का गुणगान करते रहते हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि सरकार अपनी सालाना 1,70,000 करोड़ रुपए की खरीद में से महज 4.5 फीसदी एमएसएमई क्षेत्र से खरीदती है।
ऐसी हालत में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने जोर दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अपनी जरूरत की कम से कम 20 फीसदी खरीद लघु व मझोली इकाइयों से करनी चाहिए। मंत्रालय ने इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप की मांग की है।
सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम मांग कर रहे हैं कि सरकार को अपने सभी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सरकार द्वारा वित्त पोषित ढांचागत परियोजनाओं के लिए यह अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे अपनी जरूरत का 20 फीसदी सामान लघु व मझोली इकाइयों से खरीदें।
सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्री वीरभद्र सिंह ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट को बताया, ‘‘हमने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से उद्योग की इस मांग पर विचार करने का अनुरोध किया है।’’ उद्योग विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकारी एजेंसियां बोली आमंत्रित करते समय न्यूनतम कारोबार और विशेष ब्रांड जैसे मानदंड रखती हैं जिसे पूरा करना लघु व मझोले उद्यमियों के लिए मुश्किल होता है।
देश के कुल निर्यात में सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योग का योगदान 40 फीसदी से अधिक है। इस बीच सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के सचिव उदय कुमार वर्मा ने कहा कि यह क्षेत्र आसान ऋण की उपलब्धता, आधुनिक प्रौद्योगिकी और उत्पादों की उचित मार्केटिंग जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।