एक कदम पीछे, दो कदम आगे, प्रणब के पिटारे से निकले जादू का इंतज़ार

घटती विकास दर की हकीकत और आगे बढ़ जाने की उम्मीद के बाद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी देश का 81वां आम बजट शुक्रवार को संसद में पेश कर रहे हैं। आम नौकरीपेशा लोगों को उम्मीद है कि आयकर छूट की सीमा 1.80 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपए की जा सकती है तो कॉरपोरेट क्षेत्र को लगता है कि एक्साइज ड्यूटी को 10 से 12 करके उनको पहले दी गई राहत वापस ले ली जाएगी। वहीं अर्थशास्त्री गौर से यह देखने में लगे हैं कि प्रणब मुखर्जी सरकारी खजाने की बिगड़ती हालत को कैसे संभालते हैं। राजकोषीय घाटा, सब्सिडी, प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, मनरेगा, गरीबों का कल्याण और किसानों के उद्धार जैसे जुमले शुक्रवार की फिजां में देर शाम तक छाए रहेगी। लेकिन इनके बीच सबसे बड़ी चिंता है कि औद्योगिक विकास की रफ्तार के धीमे पड़ जाने की।

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को लोकसभा में आर्थिक समीक्षा 2011-12 पेश करते हुए बताया कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश की औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर घटकर 4-5 फीसदी पर आ जाएगी। जनवरी में भले ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 6.8 फीसदी बढ़ा हो, लेकिन इसके पीछे ज़र्दा जैसे उत्पादों का उत्पादन 127.3 फीसदी बढ़ने का ज्यादा योगदान रहा है। नहीं तो देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 27 फीसदी योगदान देनेवाले इस क्षेत्र की विकास दर अप्रैल-दिसंबर 2011 के नौ महीनों में 3.6 फीसदी ही रही है, जबकि बीते वर्ष की इसी अवधि के दौरान यह 8.3 फीसदी थी।
सुखद यह है कि इस साल कृषि व संबद्ध क्षेत्रों में 2.5 फीसदी की विकास दर पाने का अनुमान लगाया गया है। लेकिन जीडीपी में फिलहाल कृषि व इससे संबंधित गतिविधियों का योगदान घटकर 13.9 फीसदी पर आ जाने की उम्मीद है। अच्छी बात यह भी है कि सेवा क्षेत्र का निष्पादन निरन्तर बढ़ रहा है और जीडीपी में वर्ष 2010-11 में इसका योगदान 58 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 59 फीसदी हो गया है। सेवा क्षेत्र की विकास दर इस समय 9.4 फीसदी चल रही है, जबकि बीते वित्त वर्ष में भी यह 9.3 फीसदी थी।

यह कुछ खास बाते हैं जिन्हें वित्त वर्ष 2011-12 की आर्थिक समीक्षा में पेश किया गया है। इसका कहना है कि अगर वर्ष 2011-12 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 6.9 फीसदी वृद्धि का अनुमान किया गया है तो इसका मुख्य कारण औद्योगिक क्षेत्र का धीमा विकास है। 2010-11 में आर्थिक विकास दर 8.4 फीसदी रही थी। चिंता की बात यह है कि वर्ष 2008-09 के दौरान आर्थिक मंदी के समय 6.7 फीसदी विकास दर को छोड़कर वर्ष 2003 से लेकर 2011 तक की तुलना में इस बार विकास दर कम रहेगी।

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक वर्ष 2012-13 में जीडीपी में 7.6 फीसदी और वर्ष 2013-14 में 8.6 फीसदी वृद्धि का अनुमान है। उसका कहना है कि कृषि और सेवा क्षेत्र के निरन्तर बेहतर प्रगति के साथ बाकी कमियों को संभाल लिया जाएगा। समीक्षा में कहा गया कि इस साल की अनुमानित 6.9 फीसदी की कम विकास दर के बावजूद भी भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

आर्थिक समीक्षा में संकेत दिया गया है कि बचत खातों पर ब्याज दरों को बाजार शक्तियों के हवाले कर दिए जाने से वित्तीय बचत में वृद्धि होगी और मौद्रिक नीति के असर के नीचे तक पहुंचने में मदद मिलेगी। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू वित्तीय बाजारो की गहराई, विशेषकर कॉरपोरेट बांड बाजार को मजबूत बनाना जरूरी है। समीक्षा में कहा गया है कि भारत अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ और भी अधिक निकटता के साथ जुड़ गया है क्योंकि जिंसों व सेवाओं का व्यापार और जीडीपी का अनुपात 1990 से लेकर 2010 के बीच तीन गुना हो चुका है।

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