कहने को अलेम्बिक लिमिटेड 104 साल पुरानी 30 जुलाई 1907 को बनी भारतीय दवा कंपनी है। ललित मोदी की जगह आईपीएल के चेयरमैन व कमिश्नर बने चिरायु अमीन इसके सीएमडी हैं। एक संयंत्र वडोदरा (गुजरात) तो दूसरा संयंत्र बड्डी (हिमाचल प्रदेश) में है। दुनिया के लगभग 75 देशों में उसकी पहुंच है। कल उसने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक जून 2011 में खत्म तिमाही में उसने 39.55 करोड़ रुपए की आय पर 2.87 करोड़ रुपए का घाटा उठाया है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में भी उसे 201.93 करोड़ रुपए की आय पर 11.06 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
घाटे की घोषणा के बावजूद कल अलेम्बिक का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 506235) में 5 फीसदी और एनएसई (कोड – ALEMBICLTD) में 5.48 फीसदी बढ़कर 23.10 रुपए पर बंद हुआ। बी ग्रुप के इस शेयर में सर्किट ब्रेकर 20 फीसदी का है। यानी, एक दिन में यह 20 फीसदी ऊपर-नीचे हो सकता है। कल इसमें वोल्यूम भी जबरदस्त हुआ। बीएसई में ट्रेड हुए 11.25 लाख शेयरों में से 27.55 फीसदी डिलीवरी के लिए थे तो एनएसई में ट्रेड हुए 15.71 लाख शेयरो में से 24 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। यानी, इसमें दिन के दिन में सौदे काट लेनेवाले डे-ट्रेडर भी खूब सक्रिय हैं क्योंकि करीब तीन चौथाई सौदे तो उन्हीं के जरिए हुए हैं।
यही नहीं, सालाना नतीजों की घोषणा से पहले 11 अप्रैल 2011 को इसका शेयर 52 हफ्तों के शिखर 39.80 रुपए पर पहुंच गया था। लेकिन करीब ढाई महीने बाद ही वह 24 जून 2011 को 52 हफ्तों की तलहटी 17.60 रुपए पर पहुंच गया। आखिर हो क्या रहा है इस मशहूर, इतनी पुरानी दवा कंपनी में? असल में अब इस कंपनी से इसका असली सत्व ही निकाल लिया गया है। दवा व्यवसाय को इससे अलग कर एलेम्बिक फार्मा लिमिटेड (एपीएल) नाम की अलग कंपनी में डाल दिया है जिसकी अलग से लिस्टिंग कराई जाएगी। 14 अप्रैल 2011 तक जिसके पास भी अलेम्बिक के शेयर रहे होंगे, उन्हें अपने हर शेयर पर अलेम्बिक फार्मा का एक शेयर दिया जाएगा।
इस तरह मूल कंपनी अलेम्बिक लिमिटेड के पास वडोदरा में पेनसिलीन-जी बनाने वाली घाटे में चल रही इकाई, निजी खपत के लिए 16 मेगावॉट बिजली बनाने की क्षमता और रीयल एस्टेट का धंधा ही बचा है। उसके पास वडोदरा में 115 एकड़ जमीन है, जिसमे से 45 एकड़ में तो पेनसिलीन-जी इकाई फैली हुई है। कंपनी ने आवासीय रीयल एस्टेट का धंधा शुरू किया है। लेकिन अभी तक उससे कोई आय या मुनाफा नहीं हुआ है। पर संभावना काफी है। शायद इसीलिए उसका शेयर कल खराब नतीजों की घोषणा के बावजूद बढ़ गया। लेकिन यह वजह भी पूरी नहीं, आधी-अधूरी लगती है। अलेम्बिक फार्मा की लिस्टिंग मई के तीसरे हफ्ते तक हो जानी थी। लेकिन अभी तक न तो बीएसई और न ही एनएसई में इसका कोई सुराग मिला है।
वैसे, कंपनी ने कल अलेम्बिक फार्मा के नतीजे अलग से घोषित किए हैं। इसके मुताबिक 30 जून 2011 की तिमाही में अलेम्बिक फार्मा की बिक्री तुलनात्मक रूप से 34 फीसदी बढ़कर 257 करोड़ रुपए से 345 करोड़ रुपए हो गई है, जबकि शुद्ध लाभ 27.56 करोड़ रुपए रहा है। जाहिर है कि जब यह कंपनी लिस्ट हो तो उसमें निवेश के बारे में सोचा जा सकता है। बाकी मूल अलेम्बिक को तो रीयल एस्टेट की असली औकात साबित करने में वक्त लगेगा। तब तक उससे दूर रहने में ही भला है।
डीमर्जर के बाद अलेम्बिक की इक्विटी तो 26.70 करोड़ रुपए पर यथावत रहेगी। लेकिन उसका रिजर्व 289.04 करोड़ रुपए से घटकर 75.22 करोड़ रुपए रह जाएगा। ताजा नतीजों में तो उसके पास 62.64 करोड़ का ही रिजर्व दिखाया गया है। नई कंपनी अलेम्बिक फार्मा की इक्विटी 37.70 करोड़ रुपए होगी और 176.12 करोड़ रुपए का रिजर्व पुरानी कंपनी से उसके खाते में चला जाएगा।