एक तरफ वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पिछले शुक्रवार को पेश बजट में पेट्रोलियम सब्सिडी को 25,000 करोड़ रुपए घटाकर डीजल के दाम बढ़ाने का इरादा साफ-साफ जाहिर कर दिया था। वहीं दूसरी तरफ इस शुक्रवार को हमारे पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने दावा किया कि सरकार का कोई इरादा डीजल को मूल्य नियंत्रण व्यवस्था से बाहर निकालने का नहीं है।
रेड्डी ने राजधानी दिल्ली में सातवें एशियाई गैस भागीदारी सम्मेलन में संवाददाताओं से अगल से बात करते हुए यह भी स्वीकार किया कि पेट्रोल की कीमत को नियंत्रण-मुक्त करने की व्यवस्था भी कुछ समय से ‘एक तरह से’ भंग हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘अभी डीजल की कीमत को नियंत्रण-मुक्त करने का हमारा कोई इरादा नहीं है।’’ अगर सरकार डीजल को नियंत्रण मुक्त करती है तो सरकारी तेल कंपनियों को इसकी कीमत 14.73 रुपए प्रति लीटर बढ़ानी होगी।
पेट्रोल को जून 2010 में मूल्य नियंत्रण व्यवस्था से मुक्त किया गया था। इसके तहत तेल मार्केटिंग कंपनियां (इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम) इसका दाम आयातित पेट्रोल की लागत के बराबर रख सकती है। लेकिन यह केवल सिद्धांत की बात है, व्यवहार की नहीं। वे पेट्रोल के दाम बिना सरकार से पूछे नहीं बढ़ा सकती हैं क्योंकि ये पूरी तरह सरकारी कंपनियां हैं। इन्हें फिलहाल पेट्रोल पर प्रति लीटर 7.72 रुपए का नुकसान हो रहा है।
रेड्डी ने कहा, ‘‘पेट्रोल कीमत की नियंत्रण मुक्त व्यवस्था भी एक तरह से कुछ भंग हुई है। लेकिन इसे फिर से मूल्य नियंत्रण में लाने का हमारा कोई इरादा नहीं है।’’ तेल कंपनियों ने मांग की है कि चूंकि वे लागत के अनुरूप पेट्रोल की कीमत नहीं बढ़ा सकतीं, इसलिए इसकी बिक्री में हो रही 4500 करोड़ रुपए की अंडर-रिकवरी की भरपाई सरकार करे। फिलहाल सरकार इन कंपनियों को डीजल, घरेलू गैस और केरोसिन की बिक्री से होनेवाले नुकसान के लिए आंशिक भरपाई करती है।
पेट्रोलियम मंत्री ने बताया, ‘‘तेल कंपनियों ने निस्संदेह कुछ सुझाव दिए हैं। लेकिन पेट्रोलियम मंत्रालय के पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। मैं उचित समय पर अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह के सामने इस मामले को उठाऊंगा।’’