सरकार की सफाई, लकवे का शिकार कहना बेतुका

सरकार ने खुद को लकवा का शिकार कहने को सरासर गलत बताया है। उसके बचाव का मोर्चा संभाला है गृह मंत्री पी चिदम्‍बरम और संसदीय कार्य व जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने। उन्हीं के शब्दों में, “यह कहना कि सरकार को लकवे ने जकड़ रखा है, पूरी तरह से ग़लत, अस्‍वीकार्य और बेतुका तर्क है।”

इन मंत्रीगणों से गुरुवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में उन विधेयकों के बारे में विस्तार से बताया जो संसद के शीत सत्र में कहीं न कहीं अटके रह गए। चिदंबरम का कहना था कि भ्रष्टाचार रोकने से जुड़े छह विधेयकों में से केवल लोकपाल व लोकायुक्‍त विधेयक और व्हिसल ब्‍लोअर्स प्रोटेक्‍शन बिल को लोकसभा ने पास किया और अब वे राज्‍यसभा के सामने हैं। एक विधेयक पर स्‍थाई समिति ने रिपोर्ट ने दे दी है और अन्‍य तीन विधेयक स्‍थाई समिति के पास हैं। शिक्षा से जुड़े नौ विधेयकों में से चार विधेयक लोकसभा ने पास किए और वे राज्‍यसभा के सामने हैं। अन्‍य पांच विधेयक या तो स्‍थाई समिति की विचाराधीन हैं या विधेयक के बारे में स्‍थाई समिति की रिपोर्ट मिल गई है।

सबसे खराब स्थिति आर्थिक व वित्तीय मामलों से संबंधित 11 विधेयकों की है। इनमें शामिल हैं: प्रत्‍यक्ष कर संहिता विधेयक 2010, कंपनी विधेयक 2011, खान व खनिज (विकास एवं नियमन) विधेयक 2011, भारतीय न्‍यास (संशोधन) विधेयक 2009, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (संशोधन) विधेयक 2009, पेंशन फंड नियामक व विकास प्राधिकरण विधेयक 2011, फॉरवर्ड कांट्रैक्ट रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक 2011, कोयला खान (राष्‍ट्रीयकरण) (संशोधन) विधेयक 2000, खान (संशोधन) विधेयक 2011, बीमा कानून (संशोधन) विधेयक 2008 और धन शोधन या मनी लॉन्डरिंग रोकथाम (संशोधन) विधेयक 2011।

इनमें से कोई भी विधेयक लोकसभा या राज्‍यसभा में पास नहीं हुआ है। सभी विधेयक विभिन्‍न स्‍तरों पर विचाराधीन हैं। चिदंबरम का कहना था उपरोक्‍त विधायी प्रस्‍तावों की सूची से निश्चित रूप से यह साबित होता है कि सरकार कामकाज के लिए सक्रिय थी और चाहती थी कि आवश्‍यक कानून बन जाएं।

उन्होंने सफाई दी कि हमारे संसदीय लोकतंत्र में सभी अधिशासी कामों के लिए कानून का समर्थन होना जरूरी है। सरकार योजनाएं बना सकती है, सरकार स्‍कीमें तैयार कर सकती है। लेकिन योजनाओं और स्‍कीमों के लिए कानूनों का समर्थन जरूरी है, जिनमें धन व्‍यवस्‍था, प्रशासन और प्रवर्तन के प्रावधान होते हैं। इसलिए अधिकतर मामलों में अधिशासी काम तब तक अधूरे ही रहेंगे, जब तक उनके लिए कानूनी समर्थन नहीं होगा।

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